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Bharatiya Itihas Kosh

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अगेसिलोस्
एक यवन अधिकारी, जो कुषाण राजा कनिष्क के निर्माण कार्यों का निरीक्षक अभियंता था। पेशावर में कनिष्क के आदेश से निर्मित स्तूप के ध्वंसावशेषों में प्राप्त धातु पात्र से उसके नाम का पता चलता है। (जर्नल आफ दि रायल एशियाटिक सोसाइटी, १९०८ पृ. ११०९)

अग्निकुल
राजपूतों की चार जातियों, पवार (परमार), परिहार (प्रतिहार), चौहान (चाहमान) और सोलंकी अथवा चालुक्य की गणना अग्निकुल के क्षत्रियों में होती है। चंदबरदाई के रासो के अनुसार अग्निकुलके इन चार राजपूतों के पूर्व पुरुष दक्षिणी राजपूताने के आबू पहाड़ में यज्ञ के अग्निकुंड से प्रकट हुए थे। इससे इनके दक्षिण राजस्‍थान से सम्बन्धित होने का पता चलता है। कुछ लोगों का मत है कि यह यज्ञ विदेशी जातियों को वर्णाश्रम व्यवस्था में लेने के लिए किया गया था और इस प्रकार इन जातियों को उच्च क्षत्रिय वर्ण में स्थान दिया गया था। (जर्नल आफ दि रायल एन्थ्रोपालिजिकल इंस्टीट्यूट, पृ. ४२)

अग्निपुराण
१८ पुराणों में से एक। उसमें भारतीय ऐतिहासिक जनुश्रुतियों का सबसे क्रमबद्ध उल्लेख है।

अग्निमित्र
शुंगवंश (दे.) के संस्थापक पुष्यमित्र का पुत्र और उत्तराधिकारी। अपने पिता के राज्यकाल में वह नर्मदा प्रदेश का उपराजा था और उसने अपनी राजधानी विदिशा में रखी थी। विदिशा को आजकल भिलसा कहा जाता है। उसने अपने दक्षिणी पड़ोसी विदर्भ (बरार) के राजा को पराजित किया और शुंग राज्य को वर्धा नदी के तटतक फैला दिया। १४९ ई. पू. में वह अपने पिता का उत्तराधिकारी बना और पुराणों के अनुसार उसने आठ वर्ष राज्य किया। कालिदासके प्रसिद्ध नाटक 'मालविकाग्निमित्र' में इसी अग्निमित्र की प्रेमकथा का वर्णन है। इसके नाम के अनेक सिक्के भी मिले हैं। (पर्जीटर-डायनेस्टीज आफ दि कलि एज, पृष्ठ सं. ३०-७०)

अग्रमस
कर्टियस आदि यूनानी इतिहासकारों ने सिकंदर के आक्रमण के समय मगध के राजा का नाम अग्रमस अथवा क्सैन्द्रमस लिखा है। सिकंदर को उसके राज्य पर आक्रमण करने का साहस नहीं हुआ। वह एक नाई का पुत्र था। उसके पिता ने मगध के सिंहासन पर बलात् अधिकार करके अपने को 'प्रेस्मिप्राई' (प्राच्य देश) का राजा घोषित कर दिया था। अग्रमस नाम संस्कृत औग्रसैन्य का यूनानी अपभ्रंश मालूम होता है। औग्रसैन्यका अर्थ है उग्रसेनका पुत्र। 'महाबोधिवंश' के अनुसार उग्रसेन नन्दवंश का संस्थापक था। (पी. एच. ए. आई., पृष्ठ २३२, मैक् क्रिंडिल-दि इन्वेजन आफ इण्डिया बाइ एलेक्जेंडर, पृष्ठ २२२)

अग्रमहिषी
शक राजाओं के समय में पटरानी को अग्रमहिषी की उपाधि से विभूषित किया जाता था, उदाहरण के लिए 'नागनिको'। (पी. एच. ए. आई., पृष्ठ ५१७)

अग्रोनोमोई
यूनानी लेखक स्त्रावो के अनुसार, चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में अग्रोनोमोइ नामक अधिकारी नदियों की देखभाल, भूमि की नापजोख, जलाशयों का निरीक्षण और नहरों की देखभाल करते थे, ताकि सभी लोगों को पानी ठीक से मिल सके। यह अधिकारी शिकारियों पर भी नियंत्रण रखता था और उसको लोगों को पुरस्कृत और दंड देने का अधिकार था। वह कर वसूलता था और भूमि के स्वामित्व सम्बन्धी मामलों का भी निरीक्षण करता था। सार्वजनिक सड़कों का निर्माण और दस-दस स्टैडिया की दूरी पर स्तंभ लगाने के काम का निरीक्षण भी यही अधिकारी करता था। वह ग्रामों का शासन भी करता था। इसकी पहचान कौटिल्य अर्थशास्त्र में वर्णित 'अध्यक्ष' और अशोक के शिलालेखों में वर्णित 'राजुक' से की जाती है। (स्त्रावो, खंड ३, पृष्ठ १०३ और पी. एच. ए. आई., पृष्ठ संख्या ३८४ और ३१८)

अच्‍युत
आर्यावर्त के राजाओं में से एक। प्रयाग-स्तम्भ लेख के अनुसार समुद्रगुप्त (३३०-३७५) ने उसको पराजित कर उसका राज्य छीन लिया। अच्युत सम्भवतः अहिच्छत्रा (उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में आधुनिक रामनगर) का राजा था।

अच्युतराय
1528 से 1542 ई. तक विजय नगर का शासक। वह कृष्‍णदेव राय (1509 से 1529 तक) का भाई और उत्तराधिकारी था। वह बलहीन और अत्याचारी स्वभाव का था। उसमें शौर्य का अभाव था। बीजापुर के सुल्तान इस्माइल आदिल शाह ने उसे हराकर मुदगल और रायचुर दुर्ग पर कब्जा कर लिया था।

अजन्ता गुफाएँ और भित्ति चित्र
भारत में भित्ति चित्रकला के चरम विकास के उदाहरण। बम्बई (महाराष्ट्र) राज्य की अजन्ता घाटी में अनेक गुफाएँ हैं जिनमें मानव जीवन, पशु-पक्षी जगत् और प्रकृति का बहुरंगी चित्रण मिलता है। इन चित्रों की रचना पाँचवीं शताब्दी ई. में शुरू हुई और सातवीं शताब्दी ई. तक होती रही। इन चित्रों की रेखाएँ बड़ी जीवंत हैं और इनमें रंगों के सम्मिश्रण में ऊँचे दर्जे का कौशल प्रदर्शित किया गया है। इन चित्रों में मुख्यतः अलंकरण कला का प्रदर्शन किया गया है और उसका स्तर समकालीन इतालवी और दक्षिण यूरोपीय कला से उच्चकोटि का है। अजन्ता के भित्ति चित्रों में जो मानवीय आकृतियाँ और प्राकृतिक दृश्य अंकित हैं वे दाक्षिणात्य शैली के हैं। वहां की वास्तुकला भी दक्षिण की है और उसका सम्बन्ध उत्तर भारत की वास्तुकला और भित्तिचित्र कला से नगण्य है। (फर्गूसन एंड बर्जेज- 'दि केव टेम्पिल आफ इंडिया; हरवेल' - इंडियन स्कल्पचर एंड पेंटिंग; स्मिथ-हिस्ट्री आफ फाईन आर्ट्स इन इंडिया एंड सीलोन; अजन्ता फ्रेस्कोस)


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