logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Bharatiya Itihas Kosh

Please click here to read PDF file Bharatiya Itihas Kosh

अली गौहर, शाहजादा
देखो 'आलम शाह द्वितीय'।

अली नकी
गुजरात का दीवान, जबकि बादशाह शाहजहाँ का चौथा बेटा शाहजादा मुराद वहाँ का सूबेदार था। अली नकी की हत्या के झूठे अभियोग में मुराद को १६६१ ई. में मौत की सजा दी गयी।

अलीनगर की संधि
९ फरवरी १७५७ ई. को बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच हुई, जिसमें अंग्रेजों का प्रतिनिधित्व क्लाइव और वाटसन ने किया था। अंग्रेजों द्वारा कलकत्ते पर दुबारा अधिकार कर लेने के बाद यह सन्धि की गयी। इस सन्धि के द्वारा नवाब और ईस्ट इंडिया कम्पनी में निम्नलिखित शर्तों पर फिर से सुलह हो गयी :- ईस्ट इंडिया कम्पनी को मुगल बादशाह के फरमान के आधार पर व्यापार की समस्त सुविधाएँ फिर से दे दी गयीं ; कलकत्ते के किले की मरम्मत की इजाजत भी दे दी गयी ; कलकत्ते में सिक्के ढालने का अधिकार भी उन्हें दे दिया गया तथा नवाब द्वारा कलकत्ते पर अधिकार करने से अंग्रेजों को जो क्षति हुई थी उसका हरजाना देना स्वीकार किया गया और दोनों पक्षों ने शान्ति बनाये रखने का वादा किया। इस सन्धि पर हस्ताक्षर करने के एक महीने बाद अंग्रेजों ने उसका उल्लंघन कर, कलकत्ता से कुछ मील दूर गंगा के किनारे की फ्रांसीसी बस्ती चन्द्रनगर पर आक्रमण करके उस पर अधिकार कर लिया। उसके दूसरे महीने जून में अंग्रेजों ने मीरजाफ़र और नवाब के अन्य विरोधी अफसरों से मिलकर सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड्यंत्र रचा। इस पड़यंत्र के परिणामस्वरूप २३ जून १७५७ ई. को पलासी की लड़ाई हुई जिसमें सिराजुद्दौला हारा और मारा गया।

अली बरीद
बहमनी राज्य की एक शाखा बिदर के बरीदशाही वंश का तीसरा सुल्तान। वह कासिम बरीद का पौत्र था, जिसने १४९२ ई. में बरीदशाही राजवंश की स्थापना की। उसका पिता सुल्तान अमीर बरीद अपने राजवंश का दूसरा सुल्तान था। अली बरीद १५३९ ई. में गद्दी पर बैठा। बरीदशाही वंश का वह पहला शासक था जिसने अपने को सुल्तान घोषित किया।

अली मर्दान खिलजी
को सुल्तान कुतुबुद्दीन (दे.) ने १२०६ ई. में बंगाल का सूबेदार बनाकर भेजा। १२१० ई. में कुतुबुद्दीन की मृत्यु के बाद उसने अपने को बंगाल का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया और अलाउद्दीन का खिताब रखा। सुल्तान इल्तुतमिश (दे.) ने १२३० ई. में उसको पराजित कर दिया।

अली मुहम्मद रुहेला
ने अवध के पश्चिमोत्तर भाग, हिमालय के तराई क्षेत्र में स्थित रुहेलखंड में रुहेलों की सत्ता स्थापित की। १७७४ ई. में रुहेला युद्ध समाप्त होने पर और उनके नेता हाफिज रहमत खाँ के मरने पर ईस्ट-इंडिया कम्पनी ने उसके लड़के फैजुल्ला खाँ को रुहेल खंड के एक हिस्से का जिसमें रामपुर भी शामिल था, शासक बना दिया। इस प्रकार रामपुर के नवाबों के परिवार की शुरुआत हुई।

अली वर्दी खां
का मूल नाम मिर्जा मुहम्मद खाँ। उसको बंगाल के नवाब शुजाउद्दीन (१७२५-३९ ई.) ने मिट्टी से उठाकर आदमी बना दिया और वह अलीवर्दी या अलहवर्दी खाँ के नाम से मशहूर हुआ। नवाब शुजाउद्दौला की मृत्यु के समय अलीवर्दी खाँ बिहार में नायब नाजिम (वित्त विभाग का मुख्य अधिकारी) था, जो उस समय बंगाल का हिस्सा था। शुजाउद्दीन के बाद उसका बेटा सरफराज खाँ बंगाल का नवाब बना। इससे कुछ ही पहले नादिरशाह (दे.) की चढ़ाई हुई थी और उसने दिल्ली को लूटा था जिसके कारण पूरा मुगल प्रशासन हिल गया था। इस गड़बड़ी से लाभ उठाकर अली वर्दी खाँ ने घूस देकर दिल्ली से एक फरमान प्राप्त कर लिया जिसके द्वारा सरफराज खाँ को हटाकर उसकी जगह अली वर्दी खाँ को बंगाल का नवाब बनाया गया था। अपने भाई हाजी अहमद और जगत सेठ की सहायता से अली वर्दी खाँ ने नवाब सरफराज खाँ के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और १७४० ई. में राजमहल के निकट गिरिया की लड़ाई में उसे हराकर मार डाला और बंगाल के नवाब की मसनद (गद्दी ) पर काबिज हो गया। बादशाह को नजराने में कीमती चीजें भेजकर उसने दिल्ली दरबार से नवाब बंगाल के रूप में फिर से सनद प्राप्त कर ली। इसके बाद उसने बंगाल पर १६ वर्ष (१७४०-५६ ई.) तक लगभग एक स्वतंत्र शासक के रूप में राज्य किया और कभी दिल्ली को मालगुजारी नहीं भेजी। यद्यपि उसने नवाबी बेईमानी से प्राप्त की थी तथापि उसमें कुछ अच्छे गुण भी थे। अपने प्रारम्भिक जीवन में वह योग्य प्रशासक और वीर योद्धा था। बंगाल में जो यूरोपीय कम्पनियाँ व्यापार करती थीं उनके साथ पक्षपातहीन था। उसने उनको आपस में लड़कर राज्य की शान्ति भंग करने की इजाजत नहीं दी। लेकिन मराठे उसे बराबर परेशान करते रहे। वे प्रायः प्रतिवर्ष बंगाल पर आक्रमण करते थे। वह मराठा आक्रमण रोकने में असमर्थ रहा, हालांकि उसने मराठा सरदार भास्कर पंडित की दगाबाजी से हत्या कर दी। अंत में अलीवर्दी खाँ ने मराठों से १७५१ ई. में सुलह करके उन्हें उड़ीसा के राजस्व का एक हिस्सा और १२ लाख रुपया सालाना चौथ देना मंजूर कर लिया। उसके बाद उसने वर्ष शान्ति से राज्य किया और १७५६ ई. में ८० वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हुई। उसकी मृत्यु के बाद उसका नाती सिराजुद्दौला नवाब बना।

अलीवाल की लड़ाई
२८ जनवरी १८४८ ई. को प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध में हुई। इस लड़ाई में सिखों की हार हुई और उन्हें अपनी तोपों को छोड़कर सतलज नदी के उस पार भाग जाना पड़ा।

अली शाह
कश्मीर का सातवाँ सुल्तान (१४१६-२० ई.)। उसके बाद उसका भाई सुल्तान जैनुल आब्दीन (१४२०-७० ई.) गद्दी पर बैठा जो कश्मीर का अकबर माना जाता है।

अलीबंधु
देखो मुहम्मद अली तथा शौकत अली।


logo