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Bharatiya Itihas Kosh

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अलेक्जेंड्रिया
नाम की दो बस्तियाँ सिकंदर ने भारत पर अपने हमले के दौरान स्थापित कीं, जिनमें एक अफगानिस्तान में काबुल के निकट थी और दूसरी सिन्ध में चनाब और सिन्धु के संगम के निकट। बाद में दोनों बस्तियाँ समाप्त हो गयीं।

अलेक्जेंडर, ए. वी.
(बाद में बाइकाउंट)- अप्रैल १९४६ ई. में लार्ड पैथिक लारेंस के नेतृत्व में भारत आनेवाले ब्रिटिश मंत्रिमंडल के प्रतिनिधि दल का सदस्य।

अलेक्जेंडर (एपिरसका)
(२७२-२५५ ई. पू.) सम्भवतः अशोक के शिलालेख-संख्या १३ में अलिक सुन्दर नाम से इसी का उल्लेख किया गया है। यह भी सम्भव है कि शिलालेख में वर्णित अलिक सुन्दर कोरिंथ का अलेक्जेंडर (२५२-२४४ ई. पू.) हो। जो भी हो, इससे अशोक के समय को निश्चित करने में मदद मिलती है।

अलेक्जेंडर महान
देखो, सिकंदर महान्।

अलोर
सिन्धके अन्तिम हिन्दू राजा दाहिर के समय सिन्ध की राजधानी। अरबों ने मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में उसे ७१२ ई. में जीतकर अपने कब्जे में कर लिया। इसके बाद सिन्ध पर मुसलानों का अधिकार हो गया।

अल्मीदा, डॉन फ्रांसिसको द
पूर्व में पुर्तगाली उपनिवेशों का पहला वायसराय (१५०५-०९ ई.) उसका विश्वास था कि पूर्व में पुर्तगालियों की सफलता उनकी नौसेना की शक्ति पर निर्भर है और पूर्व में पुर्तगाली सम्राज्य की स्थापना को वह कल्पना मात्र मानता था।

अल्लामी सादुल्ला खां
बादशाह शाहजहाँ का खास वजीर। वह कुशल प्रशासक और योग्य सेनापति था जिसने अनेक अवसरों पर मुगल सेना का नेतृत्व किया था। वह अपने पद पर काम करते हुए १६५६ ई. में मरा।

अवध
प्राचीन कोसल (दे.) राज्य का आधुनिक नाम। यह इलाहाबाद के उत्तर-पश्चिम में है। इस राज्य से होकर सरयू नदी बहती है जो गंगा में मिल जाती है। रामायण के अनुसार रामचंद्रजी के पिता राजा दशरथ कोसल के राजा थे और अयोध्या उनकी राजधानी थी। ऐतिहासिक काल में कोसल उत्तरी भारत के सोलह महाजनपदों (राज्यों) में से था और उसकी राजधानी श्रावस्ती थी। छठी शताब्दी ई. पू. में उसका राजा प्रसेनजित मगधराजा बिम्बसार तथा अजातशत्रु का समसामयिक और प्रतिद्वन्द्वी था। कोसल को बाद में मगध ने जीत लिया और नंदों तथा मौर्यों के मगध साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया गया। यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है कि कब सारा कोसल राज्य अयोध्या के नाम से विख्यात हो गया। उसका आधुनिक अवध नाम अयोध्या का ही विकृत रूप है।
लगभग १५६ ई. पू. में अवध तथा उसकी राजधानी साकेत पर एक 'दुरात्म वीर' यवन ने आक्रमण किया। इस यवन की पहचान मेनान्डर (दे.) तथा उसकी यवन (यूनानी) सेनाओं से की जाती है। ईसवी सन की चौथी शताब्दी में अवध गुप्त साम्राज्य का एक भाग था और अयोध्या संभवतः पाँचवी शताब्दी में गुप्त राजाओं की दूसरी राजधानी थी। सातवीं शताब्दी में यह हर्षवर्धन (दे.) के साम्राज्य में सम्मिलित था और नौवीं शताब्दी से यह गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य का भाग रहा।
तरावड़ी (दे.) (११९२ ई.) की दूसरी लड़ाई के बाद ही शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी (दे.) के एक सहायक मलिक हिसमुद्दीन आगुल बक ने अवध को जीत लिया। इसकी ऊर्वरा भूमि तथा स्वास्थ्यप्रद जलवायु से आकर्षित होकर बहुत-से मुसलमान अमीर क्रमिक रीति से अवध चले आये और वहीं बस गये। विशेष रूप से सुल्तान मुहम्मद तुगलक के राज्यकाल में बहुत से मुसलमान अमीर यहाँ आकर बस गये। १३४० ई. में ऐनुल-मुल्क ने, जो अवध का हाकिम था, और बड़ी योग्यता के साथ सूबे का शासन कर रहा था, सुल्तान मुहम्मद तुगलक के खिलाफ बगावत कर दी। उसकी बगावत कुचल दी गयी तथा उसे कैदखाने में डाल दिया गया। इसके बाद अवध दिल्ली की सल्तनत का एक भाग बना रहा, हालांकि उसका एक बड़ा हिस्सा जौनपूर राज्य (१३९९-१४७६ ई.) में मिला लिया गया था।
जौनपुर राज्य के पतन पर अवध फिर पूरी तौर से दिल्ली की सल्तनत का एक भाग बन गया। १५२६ ई. में इब्राहीम लोदी पर बाबर की विजय के बाद अवध पर मुगलों का शासन स्थापित हो गया। अकबर ने अपने साम्राज्य को जिन १५ सूबों में बाँटा था, उनमें अवध भी था। १७२४ ई. तक अवध मुगल साम्राज्य का एक महत्त्वपूर्ण सूबा रहा।
१७२४ ई. में अवध के मुगल सूबेदार सआदत खाँ ने अपने को लगभग स्वतंत्र कर लिया और अवध के नवाब वंश की स्थापना की। वह अपने को नवाब वजीर अर्थात् मुगल साम्राज्य का बड़ा वजीर कहता था। इन नवाब वजीरों की तीन पीढ़ियों ने अवध पर स्वतंत्र रीति से शासन किया। इनके नाम थे : (१) सआदत खाँ (१७२४-३९ ई.), (२) सफदरजंग (१७३९-५४ ई.) तथा शुजाउद्दौला (१७५४-७५ ई.)।

अवध काश्तकारी कानून
अधिकांशतः गवर्नर-जनरल सर जान लारेंस के समर्थन से १८६८ ई. में पास हुआ। अवध में नवाबों के शासनकाल में बहुत से प्रभावशाली ताल्लुकेदार नियुक्त हो गये थे जिनमें अधिकांशतः राजपूत थे। वे काश्तकारों का बुरी तरह शोषण करते थे। अधिकांश काश्तकार शिकमी थे जिन्हें जब चाहे तब बेदखल किया जा सकता था। अवध काश्तकारी कानून के द्वारा अवध के काश्तकारों की अवस्था, कुछ हदतक सुधारने की कोशिश की गयी। उन्हें कुछ विशेष शर्तों पर जमीन पर दखल रखने के अधिकार दे दिये गये। यह व्यवस्था की गयी कि लगान बढ़ाने पर किसानों ने भूमि में जो स्थायी सुधार किये होंगे उनके लिए उन्हें मुआवजा दिया जायगा और न्यायालय में दर्खास्त देने के बाद ही न्यायोचित आधार पर लगान बढ़ाया जा सकेगा। यह उपयोगी और किसानों के लिए हितकारी कानून था।

अवमुक्त
नामक राज्य का उल्लेख समुद्रगुप्त के प्रयाग स्तम्भ लेख में आया है। उसका राजा नीलराज बताया गया है जिसे समुद्रगुप्त ने पराजित किया था, परन्तु बाद में उसे उसका राज्य लौटा दिया था। अवमुक्त दक्षिण में था लेकिन उसकी ठीक स्थिति का पता नहीं चलता है।


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