logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Bharatiya Itihas Kosh

Please click here to read PDF file Bharatiya Itihas Kosh

असंग
प्रसिद्ध बौद्ध पंडित भिक्षु और आचार्य जो गुप्त काल में ईसा की चौथी शताब्दी में हुआ। वह प्रसिद्ध आचार्य वसुबन्धु का भाई था जो दूसरे गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त (लगभग ३३०-३६० ई.) का अमात्य था। उसने योगाचार्य भूमिशास्त्र की रचना की जो महायान सम्प्रदाय का आधारभूत ग्रंथ माना जाता है।

असद खां
बीजापुर के सुल्तान इब्राहीम आदिलशाह प्रथम (१५३५-५७ ई.) का वजीर था। वह योग्य प्रशासक और कूटनीतिज्ञ था। उसने १५४३ ई. में अपने कूटनीतिक चातुर्य का अच्छा परिचय दिया। उस वर्ष अहमद नगर और गोलकुंडा के सुल्तानों ने संयुक्त रूप से बीजापुर पर हमला करने के लिए विजयनगर के हिन्दू राज्य से सुलह कर ली। असद खाँ ने अहमदनगर और विजयनगर से अलग अलग संधियाँ करके उस संयुक्त मोर्चे को तोड़ दिया और इस प्रकार बीजापुर की रक्षा हो गयी।

असद खां
बादशाह औरंगजेब (1659-1707ई.) के शासनाकाल के उत्तरार्द्ध में वजीर आजाम था। उनका बेटा जुल्फख़ार खाँ औरंगजेब का सबसे अच्छा सेनापति था।

असवाल
अहमदाबाद की स्थापना के पूर्व पुराने नगर का नाम था। इसी नगर को केन्द्र बनाकर १५ वीं शताब्दी में गुजरात (दे.) में मुसलमानी सल्तनत का विकास हुआ।

असहयोग आन्दोलन
महात्मा गांधी (दे.) ने १९१९-२० ई. में आरम्भ किया था। इसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार को उन संवैधानिक सुधारों को स्वीकार करने पर विवश करना था, जिनकी माँग भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कर रही थी। उन दिनों कांग्रेस का ध्येय भारत को औपनिवेशिक स्वराज्य दिलाना मात्र था। प्रथम महायुद्ध के उपरांत युरोप में तुर्की साम्राज्य छिन्न-भिन्न कर दिये जाने के कारण भारतीय मुसलमानों में असंतोष व्याप्त था। अतः इस असहयोग आन्दोलन को केवल हिन्दुओं का ही नहीं बल्कि भारतीय मुसलमानों का भी समर्थन प्राप्त हुआ। इस आन्दोलन का ध्येय अंग्रेज सरकार को किसी भी प्रकार का सहयोग न देना था। प्रारम्भ में इस अत्यधिक समर्थन मिला और सैकड़ों तथा हजारों की संख्या में लोगों ने सरकार से असहयोग आरम्भ कर दिया। लोगों ने सरकारी सेवाओं से त्यागपत्र दे दिया; न्यायालयों का बहिष्कार कर दिया; विद्यार्थियों ने विद्यालयों में जाना बंद कर दिया और १९१९ के गवर्नमेण्ट आफ इंडिया ऐक्ट के अंतर्गत होनेवाले चुनावों का बहिष्कार किया। महात्मा गांधी इस आंदोलन को पूर्ण रूप से अहिंसात्मक रखना चाहते थे, परन्तु सरकार के विरुद्ध ऐसे देशव्यापी आंदोलन में एकाध हिंसात्मक घटना का घट जाना स्वाभाविक था। सरकार ने इसे बलपूर्वक दबाने का प्रयत्न किया और कानून के अंतर्गत दण्ड देना प्रारम्भ कर दिया। सहस्त्रों की संख्या में लोगों ने जेलों को भर दिया और इससे सरकार के लिए एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो गयी। यह असहयोग आंदोलन १९२४ ई. तक तेजी से चला, परन्तु धीरे-धीरे भारतीय मुसलमानों के उदासीन हो जाने तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में मतभेद उत्पन्न हो जाने के कारण, यह समाप्तप्राय हो गया। कुछ कांग्रेसी लोगों ने पंडित मोतीलाल नेहरू (दे.) तथा देशबंधु चितरंजन दास (दे.) के नेतृत्व में अलग स्वराज्य पार्टी बना ली। इसके नेता चुनाव में भाग लेकर १९१९ ई. के गवर्नमेण्ट आफ इंडिया ऐक्ट के अंतर्गत बनायी गयी केन्द्रीय और प्रान्तीय विधान सभाओं में इस अभिप्राय से जाना चाहते थे कि वे कौसिलों में लड़ सकें और उनमें या ता सुधार करायें या उन्हें समाप्त करवा दें।
असहयोग आन्दोलन व्यर्थ नहीं गया। समाज के सभी वर्गों के सहस्त्रों भारतीयों को सामूहिक जेलयात्रा के फलस्वरूप लोगों के हृदय से जेल का भय निकल गया। साथ ही लाखों भारतीयों के हृदय से अंग्रेजी सरकार का भय भी समाप्त हो गया। एक जन-आन्दोलन के लिए यह छोटी उपलब्धि नहीं थी।

असाई की लड़ाई
दूसरे आंग्ल-मराठा युद्ध (१८०३-०५ ई.) के दौरान हुई। इस लड़ाई में अंग्रेजी सेना ने सर आर्थर वेल्जली के नेतृत्व में शिन्दे और भोंसले की विशाल सेना को २३ सितम्बर १८०३ ई. को पराजित कर दिया। शिन्दे की जिस सेना ने लड़ाई में भाग लिया उसको यूरोपीय अफसरों से यूरोपीय ढंग से ट्रेनिंग दिलायी गयी थी लेकिन वह छोटी-सी अंग्रेजी सेना से बुरी तरह पराजित हो गयी।

असिक्‍नी
नामक पंजाब की नदी, जिसका उल्लेख ऋग्वेदके नदी-सूक्त में है। यूनानी इतिहासकारों ने उसे 'अकेसिनीज' लिखा है। इसका आधुनिक नाम चिनाब है। पोरस, जिसने सिकंदर का रास्ता रोका था, चिनाब और झेलम नदियों के बीच के क्षेत्र में राज्य करता था।

असीरगढ़
खानदेश में ताप्ती नदी के तटपर स्थित एक दुर्जेय गढ़ समझा जाता है जो अनेक राजाओं के अधिकार में रह चुका है। प्रारम्भ में वह मालवा के हिून्‍दू राजाओं के अधीन था उसके बाद उसपर दिल्ली के मुसलमान सुल्तानों का अधिकार हो गया। मुहम्मद तुगलक की मृत्यु के बाद इस किले पर खानदेश के फार्रुखी राजवंश का अधिकार हो गया जिनसे १६०१ ई. में अकबर ने छीन लिया। मराठा शक्ति का उदय होने पर यह मराठों के अधिकार में आ गया और उसपर शिन्दे का कब्जा रहा। अन्त में १८०३ ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी की सेना ने शिन्दे और भोंसले की संयुक्त सेनाओं को असाई की लड़ाई में पराजित करके इस किले पर कब्जा कर लिया। उसके बाद वह भारत के अंग्रेजी राज्य का हिस्सा हो गया। आधुनिक समय में इस किले का सामरिक महत्त्व समाप्त हो गया है।

अस्करी
प्रथम गुगल सम्राट् बाबर (१५३६-३० ई.) का चौथा और सबसे छोटा बेटा था। अस्करी को उसके सबसे बड़े भाई हुमायूं (दे.) (१५३०-५६ ई.) ने सम्भल की जागीर दी थी। बाद में अस्करी १५३४ ई. में हुमायूं के गुजरात अभियान में उसके साथ रहा जहाँ आसानी से विजय मिलने के बाद वह ऐश-आराम में पड़ गया। वह हुमायूं के साथ दिल्ली लौट आया। जब हुमायूं १५३९ ई. में बंगाल के अभियान पर गया तो अस्करी उसके साथ नहीं गया और इस प्रकार बक्सर की लड़ाई में हुमायूं की पराजय में वह हिस्सेदार नहीं बना। जब हुमायूं बंगाल गया था तो दिल्ली में उसकी अनुपस्थिति में अस्करी ने गद्दी पर कब्जा करने की कोशिश की लेकिन पराजित हुमायूं के दिल्ली लौटने से उसकी योजना विफल हो गयी। १५४०-५४ ई. के बीच जब हुमायूं को कन्नौज की लड़ाई में पराजित होने के बाद दर-दर भटकना पड़ा और भारत छोड़कर भागना पड़ा तो अस्करी ने उसकी कोई मदद नहीं की। अस्करी ने शेरशाह के सामने आत्मसमर्पण करके अपने प्राण बचाये। हुमायूं ने जब दिल्ली पर फिर से कब्जा किया तो उसने अस्करी को क्षमा कर दिया लेकिन उसे मक्का चला जाना पड़ा जहाँ वह मर गया।

अस्सकेनोई गण
भारत पर सिकंदर महान् के आक्रमण के समय मलकंद दर्रे के निकट स्वातघाटी के एक हिस्से में रहता था। उनके पास एक बड़ी सेना थी और मस्सग दुर्ग उनकी राजधानी थी। यह दुर्ग प्राकृतिक दृष्टि से दुर्भेद्य था और उसकी रक्षा के लिए एक ऊँची प्राचीर और गहरी परिखा का निर्माण किया गया था। अस्सकेनोई लोगों ने सिकंदर से जमकर लोहा लिया और उनके एक तीर से सिकंदर घायल भी हो गया। लेकिन अन्त में सिकंदर की विजय हुई। उसने मस्सग दुर्ग पर अधिकार कर लिया और भयंकर नरसंहार के बाद अस्सकेनोई लोगों का दमन कर दिया। (संस्कृत में इस गण का नाम आश्वकायन अथवा अश्वक है। होगा। -संपादक)


logo