चार वेदों में सबसे प्राचीन। कट्टर हिन्दू वेदों को अपौरुषेय मानते हैं और उनके अनुसार वैदिक ऋचाओं के साथ जिन ऋषियों के नाम मिलते हैं वे उनका दर्शन करने वाले (द्रष्टा) थे। ऋग्वेद शब्द ऋक् (ऋचा अथवा मंत्र) तथा वेद (विद् अर्थात् ज्ञान) के संयोग से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है ज्ञान के सूक्त। ऋग्वेद भी अन्य तीन वेदों की भाँति चार भागों में विभाजित है : संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक तथा उपनिषद्। ऋग्वेद संहिता में १०१७ सूक्त हैं जो १० मंडलों के अंतर्गत मिलते हैं। ऋग्वेद के अनेक मंत्र यज्ञपरक हैं, किन्तु उसमें कुछ ऐसे मंत्र भी मिलते हैं जिन्हें आदिकालीन धार्मिक कविता का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण कहा जा सकता है। ऐतरेय एवं कौशीतक ब्राह्मण तथा आरण्यक ग्रंथ ऋग्वेद से सम्बन्धित हैं। ऋग्वेद का रचनाकाल सभी सुनिश्चित नहीं हो सका है। स्भवतः उसकी रचना ई. पू. २५०० से लेकर ई. पू. १५०० तक होती रही। उसका रचनाकाल चाहे जो भी निर्धारित हो, इतना निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि ऋग्वेद में भारतीय आर्यों के प्राचीनतम युग का इतिहास और उस युग की धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक अवस्था का ज्ञान प्राप्त होता है। (देखो, वेद) (कैम्ब्रिज, भाग १, खंड ४, ए. सी. दास-रिगवेदिक इंडिया तथा ए. केगी- रिगवेद)।
ऋषि
वेद मंत्रों के द्रष्टा माने गंये हैं। इन्हीं ऋषियों की परंपरा में व्यास हुए जिन्होंने वेदों का संग्रह व सम्पादन किया तथा पुराण, महाभारत, भागवत आदि हिन्दू धर्म ग्रंथों की रचना की। इसी परंपरा में अगस्त्य जैसे ऋषि हुए जिन्होंने भारत के विभिन्न भागों में आर्य सभ्यता का प्रसार किया। जनश्रुतियों के अनुसार दक्षिण भारत में आर्य सभ्यता का प्रसार करनेवाले अगस्त्य ऋषि थे।