logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Bharatiya Itihas Kosh

Please click here to read PDF file Bharatiya Itihas Kosh

तीसरा आंग्ल-अफगान युद्ध
(अप्रैल-मई १९१९) –बहुत थोड़े दिन चला। अमीर अब्दुर्रहमान ने जिसे लार्ड रिपन ने अफगानिस्तान का अमीर मान लिया था, उसने १९०१ ई. में मृत्युपर्यन्त शासन किया। उसके उत्तराधिकारी अमीर हबीबुल्लाह (१९०१-१९ ई.) ने अपने को अफगानिस्तान का शाह घोषित किया और उसने भारत की अंग्रेजी सरकार से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध रखा। लेकिन उसके बेटे और उत्तराधिकारी शाह अमानुल्लाह (१९१९-२९ ई.) ने आंतरिक झगड़ों और अफगानिस्तान में व्याप्त अंग्रेज-विरोधी भावनाओं के कारण, गद्दी पर बैठने के बाद ही भारत की ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस तरह तीसरा तीसरा अंग्ल-अफगान युद्ध शुरू हो गया। युद्ध केवल दो महीने (अप्रैल-मई १९१९ ई.) चला। भारत की ब्रिटिश सेना ने बमों, विमानों, बेतार के तार की संचार व्यवस्था और आधुनिक शास्त्रास्त्रों का प्रयोग करके अफगानों को हरा दिया। अफगानों के पास आधुनिक शस्त्रास्त्र नहीं थे। उन्हें मजबूर होकर शान्ति-सन्धि के लिए झुकना पड़ा। परिणामस्वरूप रावलपिंडी की सन्धि (अगस्त १९१९) हुई। इस सन्धि के द्वारा तय हुआ कि अफगानिस्तान भारत के मार्ग से शस्त्रास्त्रों का आयात नहीं करेगा। अफगानिस्तान के शाह को भारत से दी जानेवाली आर्थिक सहायता भी बंद कर दी गयी और अफगास्तान, दोनों ने एक दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान करने का निश्चय किया। अन्त में यह भी तय हुआ कि अफगानिस्तान अपना राजदूत लन्दन में रखेगा और इंग्लैण्ड का राजदूत काबुल में रखा जायगा। इसके बाद से आंग्ल-अफगान सम्बन्ध प्रायः मैत्रीपूर्ण रहा।

तक्षशिला
अति प्राचीन नगर, जो पश्चिमी पंजाब में रावलपिण्डी से उत्तर-पश्चिम की ओर २० मील की दूरी पर सरायकला नामक रेलवे स्टेशन के निकट स्थित था। सिकन्दर के आक्रमण के समय, यह राजा आम्भि (दे.) की राजधानी थी और चिकित्साशास्त्र के केन्द्र के रूप में विख्यात था। कहा जाता है कि राजा बिम्बसार (दे.) के चिकित्सक जीवक ने तक्षशिला में सात वर्ष वैद्यकशास्त्र का प्रशिक्षण प्राप्त किया था। इस स्थान पर विस्तृत पुरातत्त्विक पर्यवेक्षण के परिणामस्वरूप प्राक्-मौर्य, यवन और कुषाणकालीन स्मारकों का उद्घाटन हुआ है। हिन्दू, जैन एवं बौद्ध साहित्य में तक्षशिला का विशेष उल्लेख हुआ है। अपोलोनियस नामक यूनानी यात्री ने जिसने ४३-४४ ईसवी में तक्षशिला का भ्रमण किया था, नगर का विस्तृत विवरण लिखा है। अशोक (दे.) के काल में तक्षशिला में राजप्रतिनिधि (उपराजा) रहता था। यवन और कृषाण (दे.) शासकों के काल में भी यह राजनीतिक केन्द्र रहा। सातवीं शताब्दी में यह कश्मीर राज्य का अंग हो गया। ११वीं शताब्दी के प्रारंभ में सुल्तान महमूद (दे.) की पंजाब-विजय के उपरान्त तक्षशिला का महत्त्व कम होता गया और वह एक वीरान स्थल बन गया। (सर जॉन मार्शल कृत 'गाइड टू टैक्शिला')

तबकाते अकबरी
सम्राट् अकबर के काल का आधिकारिक इतिहास ग्रन्थ। दरबारी इतिहासकार निजामुद्दीन अहमद ने इसे फारसी में लिखा था। तिथि तथा भौगोलिक वर्णन की दृष्टि से यह सर्वाधिक विश्वसनीय ग्रंथ है।

तबकाते नासिरी
यह मिनहाजुद्दीन सिराज (दे.) द्वारा लिखित दिल्ली के प्रारम्भिक सुल्तानों का इतिहास है। सिराज ने इस ग्रंथ की रचना अपने आश्रयदाता नासिरुद्दीन (दे.) के राज्यकाल में की थी।

तमिळगम्
तमिल देश, जिसके अंतर्गत तीन प्राचीन राज्य पाण्ड्य, चोल और चेर अथवा केरल स्थित थे। इसका विस्तार उत्तर में मद्रास के सौ मील उत्तर पश्चिम पुलीकट और तिरुपति पहाड़ियों तक, दक्षिण में केप कमोरिन तक, पूरब में कारोमण्डल घाट तक और पश्चिम में पश्चिमी घाट तक था। यहाँ अधिकांश लोग तमिल भाषा बोलते थे, जिसका साहित्य प्राचीन एवं समृद्ध है। यहाँ के प्राचीन निवासी अधिकांश द्रविड़ लोग थे, किन्तु बाद में बहुत से आर्य भी बस गये हैं। तमिल भाषा भी संस्कृत व्याकरण और वाक्य-विन्यास से प्रभावित और परिवर्तित है। तमिल साहित्य के सर्वाधिक प्रसिद्ध और लोकप्रिय ग्रंथ 'कुरल', और 'मणिबेकलै' हैं। इनमें से 'कुरल' गोदावरी के दक्षिण में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सम्मानित है।

तराइन का युद्ध
११९१ ई. और ११९२ ई. में दिल्ली और अजमेर के चौहान राजा पृथ्वीराज (दे.) और शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी के मध्य हुआ। तराइन के पहले युद्ध में पृथ्वीराज ने शहाबुद्दीन को परास्त किया। वह घायल होकर भाग खड़ा हुआ। परन्तु एक ही वर्ष बाद ११९२ ई. में होनेवाले दूसरे युद्ध में शहाबुद्दीन ने पृथ्वीराज को परास्त करके मार डाला। इस दूसरे युद्ध में विजय के बाद शहाबुद्दीन ने दिल्ली पर अपना अधिकार कर लिया। इसके फलस्वरूप पूरा उत्तरी भारत कई शताब्दियों तक मुसलमानों के शासन में रहा।

तरावड़ी का युद्ध
देखिये तराइन, जो तरावड़ी का दूसरा नाम है।

तर्पी वेग
एक मुगल सेनापति जिसे १५५५ ई. में हुमायूं (दे.) के मरने के तुरंत बाद बैरम खाँ (दे.) द्वारा दिल्ली की सुरक्षा का भार सौंपा गया था, परन्तु वह अपने कार्य में असफल रहा। दुष्परिणामस्वरूप १५५६ ई. में दिल्ली को हेमू (दे.) ने विजित कर अपने अधिकार में ले लिया। इस असफलता के लिए बैरमखां की आज्ञा से उसका वध कर दिया गया।

तर्मशीरी
मंगोलों की चगताई प्रशाखा का खान (शासक)। इसने १३२८-१३२९ ई. में भारत पर आक्रमण किया और दिल्ली के निकट तक पहुँच गया। मोहम्मद तुगलक ने उसे अपनी फौजें वापस ले जाने के लिए प्रेरित किया।

तहमस्प, शाह
फारस का बादशाह, जिसकी शरण १५४४ ई. में निर्वासित मुगल बादशाह हुमायूं (दे.) ने ली थी। शरण देने के साथ ही उसने मुगल बादशाह को सैन्य सहायता भी दी जिसके फलस्वरूप हुमायूं कंधार और काबुल को १५४५ ई. में अपने अधीन करने में समर्थ हो सका और अन्ततः भारतीय साम्राज्य का पुनः अधीश्वर हो गया।


logo