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Bharatiya Itihas Kosh

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इंग्लिश कम्पनी ट्रेडिंग टु दि ईस्ट इण्डीज
१६९८ ई. में स्थापित। यह ईस्ट इण्डिया कम्पनी की प्रतिद्वन्द्वी कम्पनी थी। दोनों में जबर्दस्त व्यापारिक प्रतियोगिता रहती थी। फलतः ईस्ट इण्डिया कम्पनी लगभग बर्बाद हो गयी। अन्त में १८०२ ई. में दोनों कम्पनियों के बीच समझौता हो गया और दोनों ने आपस में एकीकरण कर लिया। इसके अनुसार नयी कम्पनी का नाम पूर्व में व्यापार करनेवाली "यूनाइटेड कम्पनी आफ मर्चेण्ट्स आफ इंग्लैण्ड" पड़ा, लेकिन सामान्यजनों में वह ईस्ट इंडिया कम्पनी के नाम से ही विख्यात हुई।
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इंडियन एसोसिएशन
स्थापना जुलाई १८७६ ई. में कलकत्ता में। इसका उद्देश्य भारत में शक्तिशाली जनमत का निर्माण करना तथा समान राजनीतिक हितों और महत्त्वाकांक्षाओं के आधार पर विविध भारतीय जातियों तथा वर्गों का एकीकरण था। अपने जन्मकाल से इस एसोसिएशन ने देश के सामने उपस्थित राजनीतिक प्रश्नों पर भारतीय जनमत संगठित तथा अभिव्यक्त करने का प्रयास किया। इस एसोसिएशन की स्थापना सुरेन्द्रनाथ बनर्जी (दे.) ने की थी, जो उस समय उग्रवादी समझे जाते थे। परंतु यह एसोसिएशन वास्तव में नरम दल वालों का संगठन बना रहा और आज भी इसका यही रूप है।

इंडियन एसोसिएशन फार दि कल्टीवेशन आफ साइन्स
प्रसिद्ध होम्योपैथ डा. महेन्द्रलाल सरकार के दान से १८७६ ई. में कलकत्ता में स्थापना। भारतीयों को वैज्ञानिक शोध की सुविधाएँ प्रदान करनेवाला यह पहला संस्थान था। सर सी. बी. रमन ने अपना प्रसिद्ध किरण-सम्बन्धी अधिकांश शोध कार्य इसी संस्थान में किया।

इंडियन कौंसिल एक्ट
पहली बार १८६१ ई. में पारित। दूसरा ऐक्ट १८९२ ई. में और तीसरा १९०९ में पारित हुआ। ये ऐक्ट (कानून) भारत की प्रशासनिक व्यवस्था का क्रमिक विकास सूचित करते हैं, जिनके द्वारा प्रशासन में भारतीय जनता को भी कुछ राय देने की सुविधा प्रदान की गयी। १८६१ ई. के इंडियन कौंसिल ऐक्ट के द्वारा गवर्नर-जनरल की एक्जीक्यूटिव कौंसिल में पाँचवें सदस्य की नियुक्ति की गयी और कौंसिल के प्रत्येक सदस्य को विभिन्न विभागों की जिम्मेदारी सौंप देने की प्रथा आरम्भ हुई। एक्ट के द्वारा लेजिस्लेटिव कौंसिल का पुनर्गठन किया गया और अतिरिक्त सदस्यों की संख्या छह से बढ़ाकर बारह कर दी गयी। इन बारह सदस्यों में से आधे गैरसरकारी होते थे।
१८९२ ई. के इंडियन कौंसिल ऐक्ट के द्वारा इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्यों की संख्या बारह से बढ़ाकर सोलह कर दी गयी और उनके मनोनयन की प्रथा इस प्रकार बना दी गयी कि वे विविध वर्गों तथा हितों का प्रतिनिधित्व कर सकें। यद्यपि विधानमंडलों में सरकारी सदस्यों का बहुमत कायम रखा गया, तथापि सदस्यों की नियुक्ति में यदि निर्वाचन प्रणाली का नहीं, तो प्रतिनिधित्व प्रणाली का श्रीगणेश अवश्य कर दिया गया। विधानमंडलों को वार्षिक बजट पर बहस करने तथा प्रश्न पूछने के व्यापक अधिकार प्रदान किये गये। १९०९ ई. का इंडियन कौंसिल ऐक्ट मार्ल-मिण्टो सुधारों (दे.) पर आधृत था। इस ऐक्ट के द्वारा इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौंसिल तथा प्रांतीय विधानमंडलों के सदस्यों की संख्या और बढ़ा दी गयी। ऐक्ट के अनुसार विधानमंडलों के गैरसरकारी सदस्यों की संख्या भी बढ़ गयी और उनमें से कुछ सदस्यों के अप्रत्यक्ष रीति से निर्वाचित किये जाने की व्यवस्था हुई। एक्ट के द्वारा मुसलमानों के लिए पृथक् साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की प्रथा शुरू की गयी और इस प्रकार भारत के विभाजन का बीजवपन कर दिया गया।

इंडियन नेशनल कान्फ्रेंस
२८, २९ तथा ३० दिसम्बर १८८३ ई. को कलकत्ता के इंडियन एसोसिएशन के तत्त्वावधान में आयोजित। यह पहला सम्मेलन था, जिसमें सारे भारत के गैरसरकारी प्रतिनिधियों ने भाग लिया और सार्वजनिक प्रश्नों पर विचार-विमर्श किया। इसी के नमूने पर दो साल बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन किया गया। इस सम्मेलन में औद्योगिक तथा तकनीकी शिक्षा, इंडियन सिविल सर्विस में भारतीयों को अधिक स्थान देने, न्यायपालिका और कार्यपालिका के कार्यों को पृथक् करने, प्रतिनिधित्वपूर्ण सरकार की स्थापना करने तथा शस्त्र कानून के सम्बन्ध में विचार किया गया। इंडियन नेशनल कान्फ्रेंस का द्वितीय अधिवेशन भी कलकत्ता में १८८५ ई. में हुआ। यह पहले अधिवेशन से अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण था। इसमें सामयिक राजनीतिक प्रश्नों पर विचार किया गया। १८८५ ई. के बाद इंडियन नेशनल कान्फ्रेंस का विलयन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में कर दिया गया, जिसका पहला अधिवेशन १८८५ ई. में हुआ।

इंदौर
अट्टारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मल्हारराव होल्कर (दे.) द्वारा स्थापित राज्य की राजधानी।

इंसाफ की जंजीर
मुगल सम्राट जहाँगीर द्वारा १६०५ ई. में सिंहासनारूढ़ होने के तत्काल बाद लटकवायी गयी। इसमें ६० घण्टियाँ थीं। यह आगरा के किले में शाहबुरजी और यमुनातट पर स्थित एक पाषाणस्तम्भ के बीच स्थित थी। इस जंजीर को खींचने से सभी घण्टियाँ बज उठती थीं। इसके द्वारा जहाँगीर की प्रजा का छोटे से छोटा प्राणी भी अपनी शिकायत सीधे सम्राट् तक पहुँचा सकता था। इससे प्रजा के प्रति जहाँगीर के प्रेम और उसकी न्यायप्रियता का संकेत मिलता है।

इकबाल, सर मुहम्‍मद
(१८७६-१९३८ ई.) -आधुनिक भारतीय प्रसिद्ध मुसलमान कवि। इनकी रचनाएँ मुख्य रूप से फारसी में हैं और अंग्रेजी में केवल एक पुस्तक है, जिसका शीर्षक है 'सिक्स लेक्चर्स आन दि रिकन्सट्रक्शन आफ रिलीजस थाट' (धार्मिक चिंतन की नवव्याख्या के सम्बन्ध में छह व्याख्यान)। उनका मत था कि इसलाम रूहानी आजादी की जद्दोजहद के जज्बे का अलमबरदार है और सभी प्रकार के धार्मिक अनुभवों का निचोड़ है। वह कर्मवीरता का एक जीवंत सिद्धांत है जो जीवन को सोद्देश्य बनाता है। यूरोप धन और सत्ता के लिए पागल है। इसलाम ही एकमात्र धर्म है जो सच्चे जीवनमूल्यों का निर्माण कर सकता है और अनवरत संघर्ष के द्वारा प्रकृति के ऊपर मनुष्य को विजयी बना सकता है। उनकी रचनाओं ने भारत के मुसलमान युवकों में यह भावना भर दी कि उनकी एक पृथक् भूमिका है। इकबाल ने ही सबसे पहले १९३० ई. में भारत सिंध के भीतर उत्तर पश्चिमी सीमाप्रांत, बलूचिस्तान, सिंध तथा कश्मीर को मिलाकर एक नया मुसलिम राज्य बनाने का विचार रखा, जिसने पाकिस्तान को जन्म दिया। पाकिस्तान शब्द इकबाल का गढ़ा हुआ नहीं है। इसे १९३३ ई. में चौधरी रहमत अली ने गढ़ा था। इकबाल की काव्य प्रतिभा से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 'सर' की उपाधि प्रदान की।

इक्ष्वाकु
एक प्रसिद्ध पौराणिक राजा। रामायण के नायक रामचन्द्रजी के पिता तथा कोशल के राजा दशरथ उन्हीं के वंशज थे।

इख्तियारुद्दीन अल्तूनिया
रजिया बेगम (१२३६-४० ई.) (दे.) के शासनकाल के प्रारम्भ में भटिंडा का हाकिम। उसने १२४० ई. में रजिया के खिलाफ बगावत कर दी, उसे परास्त कर दिया और बंदी बना लिया। परंतु उसे बहराम से, जो नया सुल्तान बना था, यथेष्ट पुरस्कार नहीं मिला। इसलिए उसने रजिया को जेलखाने से रिहा कर दिया, उससे शादी कर ली और रजिया को फिर से गद्दी पर बिठानेके लिए एक बड़ी सेना के साथ दिल्ली पर चढ़ाई कर दी। परंतु वह कैथल की लड़ाई में पराजित हुआ और दूसरे दिन उसे और रजिया को मार डाला गया।


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