बंगाल के नवाब अलीवर्दी खां (१७४०-५६) की सबसे बड़ी पुत्री। वह अपने चचेरे भाई नवाजिश मुहम्मद को ब्याही थी। नवाजिश को ढाका का हाकिम नियुक्त किया गया, जहाँ उसकी मृत्यु हो गयी। उसकी विधवा घसीटी बेगम मुर्शिदाबाद लौट आयी। राजवल्लभ उसका दीवान तथा हुसेन कुली खां उसका विश्वस्त गुमाश्ता था। अलीवर्दी खां के पश्चात् घसीटी बेगम ने अपने भांजे सिराजुद्दौला को गद्दी पर बैठाने का समर्थन नहीं किया। उसने अपनी दूसरी छोटी बहन के पुत्र शौकतजंग को, जो पूर्णिया का हाकिम था, बंगाल का नवाब बनाना चाहा। सिराज ने इसी दौरान जब सुना कि घसीटी बेगम और हुसेन कुली खां के बीच अवैध संबंध है, तो वह आगबबूला हो गया और उसने मुर्शिदाबाद की सड़क पर खुलेआम हुसेनकुली खां की हत्या कर दी। इससे घसीटी बेगम और सिराज के बीच मनमुटाव और बढ़ गया। जब १७५६ ई. में अलीवर्दी खां बहुत बीमार था और उसके जीवित रहने की कोई आशा नहीं रही, घसीटी बेगम ने राजवल्लभ की सलाह पर मुर्शिदाबाद स्थित नवाब के महल को छोड़ दिया और नगर के बाहर दक्षिण में दो मील दूर मोती झील पर वह अपने १० हजार अंगरक्षकों के साथ रहकर सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगी। सिराज गद्दी पर बैठने के बाद बड़ी चतुराई से घसीटी बेगम को मोती झील से नवाब के महल में ले आया। राजवल्लभ घसीटी बेगम का बहुत-सा धन हड़पकर अंग्रेजों की शरण में चला गया, किंतु घसीटी बेगम अब सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड्यंत्रों में कोई सक्रिय भाग लेने की स्थिति में नहीं रह गयी थी। १७५६ ई. में सिराज ने घसीटी बेगम की छोटी बहन के पुत्र शौकतजंग को लड़ाई में हरा दिया और मार डाला। इसके बाद बंगाल की राजनीति पर घसीटी बेगम का प्रभाव समाप्त हो गया। आज भी मोतीझील के खंडहर विद्यमान हैं।
घोषा
वैदिक युग की एक प्रमुख ब्रह्मवादिनी नारी, जिसके नाम से ऋग्वेद में अनेक सूक्त मिलते हैं।