अवध के नवाब आसफुद्दौला (१७७५-९७ ई.) का अवैध पुत्र। १७९७ ई. में पिता की मृत्यु के बाद उसे अवध का नवाब बनाया गया, परन्तु दूसरे ही वर्ष ब्रिटिश सरकार ने उसे पदच्युत कर दिया और उसके स्थान पर उसके चाचा सादत अली (१७९८-१८१४ ई.) को नवाब बनाया। बाद में वजीर अली ने ब्रिटिश रेजिडेंट मि. चेरी की हत्या करा दी और विद्रोह का प्रयास किया, किन्तु उसे दबा दिया गया।
वजीर खाँ
सरहिन्द का मुगल फौजदार, जो गुरु गोविन्दसिंह (दे.) के विरुद्ध लड़ा और जिसने उनके दो नाबालिग पुत्रों की हत्या कर दी। १७०८ ई. में गुरु गोविन्द सिंह के मरणोपरान्त वीर बंदा ने सरहिन्द पर आक्रमण किया और वजीर खां को परास्त कर मार डाला।
वजीरी
अविभाजित भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत का एक कबीला, जो ब्रिटिश शासन-काल में भारत-अफगान सीमा को विभाजित करनेवाली डूरंड रेखा के इस पार रहता था। वजीरी लोग स्वतन्त्रताप्रिय और लड़ाकू प्रकृति के होते हैं और उनको अपने अधीन रखने के लिए भारत की अंग्रेज सरकार को अनेक बार उनके विरुद्ध फौजी कार्रवाई करनी पड़ी।
वझिष्क
सम्भवतः कूषाण सम्राट् कनिष्क (दे.) का पिता था।
वनपाल, राणा
सन्तूर नामक छोटे से राज्य का शासक, जिसने सुल्तान नासिरुद्दीन (१२४६-६६) के विद्रोही और बयाना पूर्वी राजस्थान के शासक कुतलग खाँ को शरण दी थी। लिकिन कुतलग खाँ सुल्तान के प्रतिनिधि बलबन से वहाँ भी हार गया और उसे भागना पड़ा।
वनवासी (जिसे जयन्ती अथवा वैजयन्ती भी कहते हैं)
बम्बई राज्य के दक्षिणी भाग में तुङ्गभद्रा के उत्तरी तट पर स्थित प्रसिद्ध नगर। ई. तीसरी शताब्दी के मध्य में सातवाहनों की शक्ति क्षीण होने के बाद इस नगर का उत्कर्ष हुआ और कदम्ब राजवंश (दे.) की राजधानी के रूप में सुविख्यात हुआ, जिन्होंने इस क्षेत्र में तीसरी शताब्दी से लेकर छठीं शताब्दी तक शासन किया। यह नगर जयन्ती अथवा वैजयन्ती के नाम से भी जाना जाता है। कदम्ब वंश के पतन के बाद इसकी भी अवनति हो गयी।
वराहमिहिर
प्रसिद्ध हिन्दू खगोलवेत्ता, जो ५०७ से ५८७ ई. के मध्य हुआ। अनुश्रुति हे कि वह उज्जैन (दे.) के प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य के दरबार में था। उसके ग्रंथों में बहुत से यूनानी नाम मिलते हैं, जिससे पता चलता है कि वह यूनानी ज्योतिष सिद्धान्तों से परिचित था।
वरुण
एक वैदिक देवता। आकाश अथवा द्यौ: के देवताओं में उनका मुख्य स्थान था। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में वरुण की कई स्तुतियाँ मिलती हैं।
वर्थेमा लुडोविको डि
एक इतालवी यात्री सुल्तान महमूद बेगढ़ा के राज्यकाल (१४५९-१५११ ई.) में उसने गुजरात का भ्रमण किया। उसने अपने यात्रा-विवरण में सुल्तान की आदतों के विषय में अनेक विचित्र एवं अनोखी बातें लिखी हैं।