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Bharatiya Itihas Kosh

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छतरसिंह
१८४८ ई. में दूसरा सिख-युद्ध छिड़ने के समय सिखों का एक प्रमुख सरदार। अग्रेजों के खिलाफ युद्ध में उसने तथा उसके पुत्र शेरसिंह ने प्रमुख भूमिका अदा की, लेकिन १८४९ ई. में गुजरात के युद्ध (दे.) में सिखों की पराजय के बाद उसने अंग्रजों के आगे आत्मसमर्पण कर दिया।

छत्रपति
एक राजकीय उपाधि, जो जून १६७४ ई. में स्वतंत्र शासक के रूप में अपने राज्याभिषेक के समय शिवाजी ने धारण की थी।

छत्रसाल
बुंदेला सरदार चम्पतराय का पुत्र और उत्तराधिकारी। छत्रसाल ने शिवाजी के विरुद्ध मुगल बादशाह औरंगजेब की फौजों का साथ दिया, लेकिन बाद में उसे इस मराठा नेता से प्रेरणा मिली। अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की आशा के साथ उसने शिवाजी की तरह साहस और जोखिमपूर्ण जीवन बिताने का फैसला किया। दक्षिण के फौजी अभियान से लौटने के बाद छत्रसाल ने बुंदेलखण्ड और मालवा के असंतुष्ट हिंदुओं के हितों की रक्षा का बीड़ा उठाया। मुगलों के खिलाफ उसने कई लड़ाइयां जीतीं और १६७१ ई. तक पूर्वी मालवा में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया। उसने अपनी राजधानी पन्ना को बनाया और १७३१ ई. तक मृत्युपर्यन्त शासन किया।


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