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Bharatiya Itihas Kosh

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पंगुल की लड़ाई
१४२० ई. में बहमनी सुल्तान फीरोज़शाह और विजयनगर के राजा देवराय के बीच हुई। इस लड़ाई में सुल्तान हार गया और विजयनगर की सेना ने बहमनी राज्य के कुछ पूर्वी तथा दक्षिणी जिलों पर अधिकार कर लिया। इस हार से सुल्तान बहुत खिन्न हो गया, उसने शासन से हाथ खींच लिया और कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गयी।

पंजदेह
अफगान सीमा का एक गाँव तथा जिला और सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण मर्व (दे.) नगर से सौ मील दक्षिण में स्थित। १८८४ ई. में रूसियों ने मर्व पर अधिकार कर लिया, जो अफगानिस्तान की सीमा से १५० मील की दूरी पर स्थित है। कुछ अंग्रेज सैनिक अधिकारी तथा राजनीतिज्ञ झूठमूठ इस नगर को बहुत अधिक सामरिक महत्त्व प्रदान कर रहे थे। अतएव मर्व पर रूस का अधिकार हो जाने से इंग्लैण्ड में भारी खलबली मच गयी। १८८५ ई. में रूसी अफगान सीमा की ओर और अधिक आगे बढ़े और उन्होंने मार्च १८८५ ई. में आफगानों को पंजदेह से निकाल दिया। इससे इंग्लैण्ड में बेचैनी और बढ़ गयी। अंग्रेजों को अफगानिस्तान पर रूसी हमले का भय होने लगा। अतएव उन्होंने अफगानिस्तान के मित्र तथा रक्षक होने का नाटक करके, किंतु वास्तव में अफगानिस्तान होकर भारत की दिशा में आगे बढ़ने से रोकने के लिए, रूसियों की इस कार्रवाई पर गहरी नाराजी प्रकट की और इस बात की आशंका की जाने लगी कि पंजदेह के प्रश्न को लेकर इंग्लैण्ड और रूस में लड़ाई छिड़ जायगी। अमीर अब्दुर्रहमान (दे.) की बुद्धिमत्ता से यह लड़ाई टल गयी।उसने दूरदर्शिता से यह समझ लिया था कि यदि पंजदेह के प्रश्न पर इंग्लैण्ड और रूस के बीच लड़ाई हुई तो अफगानिस्तान युद्धभूमि बन जायगा और वह इस विपत्ति को दूर रखना चाहता था। उसने घोषणा की कि यह निश्चय नहीं है कि पंजदेह वास्तव में अफगानिस्तान का हिस्सा है और यदि पंजदेह और अफगानिस्तान के बीच जुल्फिकार दर्रे पर उसका अधिकार मान लिया जाय ता उसे संतोष हो जायगा। अमीर अब्दुर्रहमान के इस समझौतापरक रवैये से ब्रिटिश सरकार को भी अपना रवैया बदलना पड़ा। इंग्लैण्ड और रूस का संयुक्त सीमा कमीशन नियुक्त किया गया। उसने जिस सीमा-रेखा की सिफारिश की, उसे १८८७ ई. में स्वीकार कर लिया गया। इस सीमारेखा के अनुसार पंजदेह पर रूसियों का अधिकार और जुल्फिकार दर्रे पर अपगानिस्तान का अधिकार मान लिया गया। इस सिफारिश के अनुसार पामीर की दिशा में रूसियों के बढ़ाव पर कोई रोकटोक नहीं लगायी गयी।

पंजाब
पाँच नदियों का देश। पाँच नदियाँ हैं- झेलम, चिनाब, रावी, व्यास तथा सतलज, जो सभी सिंधु में मिल जाती हैं। यह त्रिकोणात्मक प्रदेश है। सिंधु और सतलज इसकी दो भुजाएँ और हिमालय इसका आधार है। उत्तर-पश्चिम में यह हिमालय के उस पार के देशों के साथ चार दर्रों से जुड़ा हुआ है, जिनमें खैबर दर्रा मुख्य है। अतएव पश्चिम से सभी युगों में सभी जातियों के लोग यहाँ आकर बसते रहे हैं। इसे जातियों का संगम-स्थल कहा जा सकता है। समुद्र मार्ग से यूरोपीयों के आगमन से पूर्व सभी आक्रमणकारी पंजाब होकर भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करते रहे हैं और उसकी आबादी पर अपने चिह्र छोड़ते रहे हैं। पंजाब में अत्यंत प्राचीन काल से सभ्यता फलती-फूलती रही है, जिसके अवशेष हाल में सिंधु घाटी सभ्यता (दे.) के रूप में मिले हैं। ऐतिहासिक काल में पंजाब पांचवी शताब्दी ई. पू. में हरवामनी वंश के सम्राट् दारयबहु प्रथम (दे.) के साम्राज्य में सम्मिलित था। ३२६ ई. पू. में जब मकदूनिया के राजा सिकन्दर ने हमला किया, पंजाब कई छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था, जिन्हें सिकन्दर ने जीत लिया। परंतु वह पंजाब में अपने पैर नहीं जमा सका और उकी मृत्यु के बाद ही पंजाब मौर्य साम्राज्य (दे.) का एक भाग बन गया। मौर्य साम्राज्य के अपकर्ष तथा पतन के बाद पंजाब पर क्रमिक रीति से बाख्त्री (बैक्ट्रिया) के यूनानियों (यवनों), शकों, कुषाणओं तथा हूणों ने आक्रमण किया और उसपर अधिकार कर लिया।

पंजाब भूमि-बेदखली कानून
१९०० ई. में वाइसराय लार्ड कर्जन की प्रेरणा से बनाया गया। इस कानून में महाजनों के पास भूमि गिरवी रख देनेवाले किसानों को बेदखली से सुरक्षा प्रदान की गयी। उसमें व्यवस्था की गयी कि वंश-परंपरा से भूमि जोतनेवाले किसानों को कर्जे की अदायगी के लिए अदालत से प्राप्त की गयी डिगरी के आधार पर भूमि से बेदखल नहीं किया जा सकेगा। इसके फलस्वरूप पंजाब के किसानों को भूमिहीन बनने से रोक दिया गया।

पंडितराव
शिवाजी (दे.) के अष्ट प्रधानों में से एक। वह राजपुरोहित था और मराठा राज्य का धर्म विभाग उनके अधीन था।

पंडित, श्रीमती विजयालक्ष्मी
जन्म १९०० ई. में। पंडित मोतीलाल नेहरू (दे.) की पुत्री तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू (दे.) की बहिन। भारत के राष्ट्रीय आंदोलन तथा स्वाधीनता संग्राम में मुख्य भाग लिया। वक्तृत्व कला में दक्ष हैं। भारत की स्वाधीनता के बाद अनेक उच्च पदों पर रह चुकी हैं। इंग्लैण्ड में भारत की उच्चायुक्त (१९५५-६१ ई.), सोवियत संघ (१९४७-४९ ई.) तथा अमरीका (१९४९-५१ ई.) में भारत की राजदूत रह चुकी हैं। १९५४ ई. में संयुक्त राष्ट्र जनरल असेम्बली की अध्यक्ष रहीं। १९६२ ई. में महाराष्ट्र की राज्यपाल नियुक्त हुईं। देश की राजनीति में सक्रिय भाग लेने के लिए अक्तूबर १९६४ ई. में इस पद से इस्तीफा दे दिया और पंडित नेहरू के फूलपुर निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभाकी सदस्य चुनी गयीं। १९६७ ई. में चौथे आम चुनाव में पुनः इसी क्षेत्र से विजयी हुईं। १९७१ ई. में राजनीति से अवकाश ग्रहण कर लिया।

पंडिता रमाबाई (१८५८-१९२२ ई.)
उन्नीसवीं शताब्दी की उन थोड़ी-सी भारतीय महिलाओं में मुख्य, जिन्होंने पश्चिमी शिक्षा प्राप्त की। वे बाल्यावस्था में ही विधवा हो गयी थीं। उन्होंने ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया और एक विधवाश्रम की स्थापना की। उन्होंने अमरीका में व्याख्यान दिये और भारतीय महिलाओं, विशेषरूप से हिन्दू विधवाओं के लिए एक शिक्षण संस्थान खोलने के निमित्त धन-संग्रह का प्रयास किया। पश्चिमी देशों में उनकी विद्वत्ता एवं वाग्मिता की बड़ी प्रसिद्ध थी और उन्हें 'सरस्वती' की उपाधि से विभषित किया जाता था।

पंत, गोविन्दवल्लभ
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख सदस्य तथा नेता। स्वाधीनता के बाद वे उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री हुए और पंडित नेहरू के केन्द्रीय मंत्रिमंडल में गृहमंत्री के रूप में सम्मिलित होने तक प्रांत का प्रशासन बड़ी योग्यता के साथ चलाते रहे। उन्होंने देश की महती सेवा की और जिस समय उनकी मृत्यु हुई, उस समय भी वे केन्द्रीय गृहमंत्री का पदभार संभाले हुए थे।

पंत प्रतिनिधि
यह पद पेशवा (दे.) से भी ऊँचा था। यह नया पद शिवाजी के दूसरे पुत्र राजाराम (दे.) ने उस समय बनाया जब उसने जिंजी के किले में शरण ले रखी थी। शाह (दे.) के राज्यकाल में पंत प्रतिनिधि के पद का महत्त्व घट गया और पेशवा के पद का महत्त्व बढ़ गया।

पटना
भारतीय गणराज्य के बिहार राज्य की राजधानी। गंगा के तट पर प्राचीन पाटलिपुत्र(दे.) नगरी के निकट स्थित है। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पटना में एक व्यापारिक केन्द्र खोल रखा था और मि. एलिस उसका प्रधान था। १७६३ ई. में उसने बंगाल के नवाब मीर कासिम से पटना छीन लेने की कोशिश की, जिसमें उसे सफलता नहीं मिली। इसके फलस्वरूप अंग्रेजों और मीर कासिम के बीच युद्ध शुरू हो गया। मीर कासिम के हार जाने पर तथा ईस्ट इंडिया कम्पनी को दीवानी मिल जाने पर पटना बिहार के पटना डिवीजन का मुख्यालय बना दिया गया। १९१२ ई. में यह बिहार तथा उड़ीसा के नवनिर्मित प्रांत की राजधानी बना दिया गया और यहां पृथक् उच्च न्यायालय तथा विश्वविद्यालय की सथापना कर दी गयी।


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