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Bharatiya Itihas Kosh

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लक्ष्मण
रामायण के नायक राम के छोटे भाई। चौदह वर्ष के वनवास काल में वे बड़े भाई के साथ रहे और आजीवन अपने बड़े भाई का अनुगमन किया। प्रतिहार (दे.) राजा अपने को उन्हीं का वंशज कहते थे।

लक्ष्‍मण सेन
बंगाल के राजा बल्लालसेन का पुत्र तथा उत्तराधिकारी। वह या तो ११८४-८५ ई. में या कुछ वर्ष पहले ११७८-७९ ई. में गद्दी पर बैठा। उसने अपने राज्यकाल के प्रारम्भिक वर्षों में कामरूप (आसाम) को अपने अधीन किया और बनारस के गाहड्वाल राजा को हराया। वह विद्वानों का आश्रयदाता था। 'गीतगोविन्द' के रचयिता जयदेव तथा पवनदूत के रचयिता धोई उसके राजकवि थे। प्रसिद्ध हिन्दू धर्मशास्त्रकार हलायुध का भी वह आश्रयदाता था।
परंतु बाद के जीवन में वह पुरुषार्थहीन हो गया था। अपनी राजधानी नदिया में वह जिस समय दोपहर को भोजन कर रहा था, मलिक इख्तियारुद्दीन मुहम्मद खिलजी ने या तो ११९९ ई. में य १२०२ ई. में अचानक हमला कर दिया। मुसलमान इतिहासकारों के अनुसार खिलजी सरदार अपने साथ केवल अठारह घुड़सवार ले गया था। उसने अचानक नदिया पर हमला बोल दिया। लक्ष्मण सेन (जिसका नाम मुसलमान इतिहासकारों ने राय लक्ष्मनिया लिखा है) अपने महल के चोर दरवाजे से भाग गया और पूर्वी बंगाल चला गया, जहाँ उसके वंशजों ने अगले पचास वर्षों तक अपना स्वतंत्र राज्य कायम रखा।

लक्ष्मणावती
देखिये, 'गौड़'।

लक्ष्मनिया राय
देखिये, 'लक्ष्मण सेन'।

लक्ष्मी कर्ण
चेदि (बुन्देलखंड) के कलचुरि राजा गांगेय देव (दे.) का पुत्र तथा उत्तराधिकारी, जिसने लगभग १०४०-१०७० ई. तक राज्य किया। लक्ष्मीकर्ण ने समूचे दक्षिणी दोआब को जीता, बंगाल के पाल राजा से संधि कर कलिंग तक राज्य का विस्तार कर लिया। परन्तु गुजरात, मालवा तथा दक्षिण के राजाओं ने मिलकर उसे युद्ध में परास्त कर दिया और मार डाला।

लक्ष्मीबाई
झाँसी की रानी, (दे.) जो इस बात से बहुत कुपित थी कि १८५३ ई. में उसके पति के मरने पर लार्ड डलहौजी ने जब्ती का सिद्धांत लागू करके उसका राज्य हड़प लिया। अतएव सिपाही-विद्रोह शुरू होने पर वह विद्रोहियों से मिल गयी और सर ह्यू रोज के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज का हटकर वीरतापूर्वक मुकाबिला किया। जब अंग्रेजी फौज किले में घुस गयी, लक्ष्मीबाई किला छोड़कर कालपी चली गयी और वहाँ से युद्ध जारी रखा। जब कालपी छिन गयी तो रानी लक्ष्मीबाई ने तांत्या टोपे (दे.) के सहयोग से शिन्दे की राजधानी ग्वालियर पर हमला बोला, जो अपनी फौज के साथ कम्पनी का वफादार बना हुआ था। लक्ष्मीबाई के हमला करने पर वह अपने प्राणों की रक्षा के लिए आगरा भागा और वहाँ अंग्रेजों की शरण ली। लक्ष्मीबाई की वीरता देखकर शिन्दे की फौज विद्रोहियों से मिल गयी। रानी लक्ष्मीबाई तथा उसके सहयोगियों ने नाना साहब (दे.) को पेशवा घोषित किया और महाराष्ट्र की ओर धावा मारने का मनसूबा बाँधा, ताकि मराठों में भी विद्रोहाग्नि फैल जाय। इस संकटपूर्ण घड़ी में सर ह्यू रोज तथा उसकी फौज ने रानी लक्ष्मीबाई को और अधिक सफलताएँ प्राप्त करने से रोकने के लिए जी-तोड़ कोशिश की। उसने ग्वालियर फिर से ले लिया और मुरार तथा कोटा की दो लड़ाइयों में रानी की सेना को पराजित किया। १७ जून १८५८ ई. की लड़ाई में रानी, जो एक घुड़सवार की पोशाक में थी, मारी गयी। विद्रोही सिपाहियों के सैनिक नेताओं में रानी सबसे श्रेष्ठ और बहादुर थी और उसकी मृत्यु से मध्य भारत में विद्रोह की रीढ़ टूट गयी।

लखनऊ
उत्तर प्रदेश में गोमती के तट पर स्थित एक प्रमुख नगर। यह अवध के नवाबों की राजधानी रहा है। उन्होंने यहाँ कई सुन्दर महल तथा मसजिदें बनावायीं। गदर (दे.) के समय लखनऊ ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। कुछ समय तक इस पर विप्लवियों का अधिकार रहा। नवम्बर १८५७ ई. में सर कालिन कैम्पबेल के नेतृत्व में एक ब्रिटिश सेना ने इस पर फिर अधिकार कर लिया। यहाँ एक विश्वविद्यालय भी स्थित है और अब यह उत्तर प्रदेश की राजधानी है।

लखनऊ समझौता
१९१६ ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुसलिम लीग के बीच हुआ। इसके द्वारा मुसलिम लीग ने पृथक् निर्वाचन क्षेत्र तथा दोनों सम्प्रदायों के बीच सीटों के न्यायोचित बँटवारे के आधार पर भारत को स्वराज्य दिलाने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को सहयोग देना स्वीकार कर लिया।

लखनौती
देखिये, 'गौड़'।

लगमान (अथवा लमगान)
अफगानिस्तान में जलालाबाद और काबुल नदी के उत्तरी तट पर स्थित स्थानीय नगर। उसने पास ही पुले दुरन्ता में आरामाई भाषा में अशोक का एक शिलालेख मिला है। इससे प्रमाणित होता है कि लगमान अशोक के साम्राज्य के अंतर्गत था। उसके लगभग एक हजार वर्ष बाद यह जयपाल (दे.) के राज्य में सम्मिलित था। लगभग ९९० ई. में अमीर सुबुक्तगीन ने इसे जयपाल से छीन लिया। इसके बाद से यह अफगानिस्तान के राज्य का एक भाग है।


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