logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Bharatiya Itihas Kosh

Please click here to read PDF file Bharatiya Itihas Kosh

खजवा की लड़ाई
शाहजहां के दूसरे और तीसरे पुत्रों, शाहजादा शुजा (दे.) और शाहजादा औरंगजेब (दे.) के बीच १६५९ ई. में हुई। इस लड़ाई में शुजा हारकर भागा। उसे बंगाल से बाहर खदेड़ दिया गया। वह अराकान भाग गया, जहां उसकी मृत्यु हो गयी।

खजुराहो
चंदेलों (दे.) की धार्मिक राजधानी, जो बुंदेलखण्ड में छतरपुर से २७ मील पूर्व में स्थित है। खजुराहों में अनेक मंदिर बने हुए हैं जो चंदेलों के ऐश्वर्य और उनके कला, मूर्तिकला तथा वास्तुकला-प्रेम की साक्षी देते हैं। दसवीं और ग्यारहवीं शताब्दी में उत्तरी भारत में जिन मंदिरों का निर्माण किया गया, उनमें यहां के मंदिर सबसे भव्य माने जाते हैं। खजुराहो के मंदिरों में कंडरिया महादेव का मंदिर सबसे विशाल और सबसे सुन्दर है।

खड़की की लड़ाई
१८१७ ई. में तीसरे मराठा-युद्ध की शुरुआत इसी से हुई। पेशवा बाजीराव द्वितीय ने पूना में तैनात ब्रिटिश फौजों पर हमला बोल दिया। परन्तु एल्फिन्स्टन (दे.) ने उन फौजों का नेतृत्व बड़ी कुशलता से किया और खड़की की लड़ाई में पेशवा को हरा दिया।

खड़गसिंह
महाराज रणजीत सिंह (दे.) का पुत्र तथा उत्तराधिकारी। वह न केवल मंद-बुद्धि था, बल्कि उद्धत सिखों को वश में रखने की क्षमता से भी रहित था। गद्दी पर बैठने के साल भर बाद ही १८४० ई. में उसकी हत्या कर दी गयी।

खरोष्ठी
एक प्राचीन भारतीय लिपि जो ब्राह्मी लिपि के ठीक उलटे ढंग अर्थात् दाहिने से बायें लिखी जाती थी। अशोक ने अपने चतुर्दश शिलालेखों में से दो मानसेरा तथा शहवाजगढ़ी के शिलालेखों में खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया है। इससे मालूम पड़ता है कि तीसरी शताब्दी ई. पू. में भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्तों में ब्राह्मी लिपि के बजाय खरोष्‍ठी लिपि प्रचलित थी।

खर्डा की लड़ाई
१७९५ ई. में हैदराबाद के निजाम और मराठों के बीच हुई, जिसमें निजाम बुरी तरह हारा और उसे अत्यंत प्रतिकूल शर्तों पर संधि करने के लिए विवश होना पड़ा। मुख्यरूप से इस हार के कारण निजाम ने १७९८ ई. में भारत में अंग्रेजों के आश्रित होने की संधि कर ली और इस प्रकार अपनी स्वतंत्रता बेच कर जान बचा ली।

खलाफ हसन बसरी
एक विदेशी सौदागर, जो पन्द्रहवीं शताब्दी में बहमनी राज्य में आया और आठवें बहमनी सुल्तान फीरोज (दे.) के भाई शाहजादा अहमद को १४२२ ई. में फीरोज को गद्दी से उतार देने तथा उसकी हत्या कर डालने में मदद की। इसके बाद वह नये सुल्तान अहमद (१४२२-३५ ई.) का वजीर हो गया, परंतु, अगले सुल्तान अलाउद्दीन (१४३५-५७ ई.) के राज्यकाल में बहमनी राज्य में दक्खिनी तथा विलायती अमीरों के बीच एक दंगे के दौरान मार डाला गया।

खलीलुल्ला खां
उस फौज का एक सिपहसालार, जिसको लेकर बादशाह शाहजहां का सबसे बड़ा पुत्र शाहजादा दारा (दे.) अपने तीसरे और चौथे भाई शाहजादा औरंगजेब तथा शाहजादा मुराद से १६५८ ई. में आगरा के किले से ८ मील पूर्व सामूगढ़ में लड़ा। खलीलुल्ला खां की विश्वासघातपूर्ण सलाह पर ही शाहजादा दारा लड़ाई के नाजुक दौर में उस हाथी से उतर पड़ा, जिस पर वह लड़ाई के शुरू से सवार था और एक घोड़े पर सवार हो गया। हाथी की पीठ पर खाली हौदे को देखकर दारा के सिपाहियों ने समझा कि वह मारा गया है और वे सब भाग खड़े हुए। दारा वह लड़ाई तो हार ही गया, इसके साथ दिल्ली का ताज भी उसके हाथ से निकल गया।

खानजमां
एक उजबेक अमीर, जिसे बादशाह अकबर (१५५६-१६०५ ई.) की ईरानी चाल-ढाल पसंद नहीं थी। उसने १५६७ ई. में बादशाह के खिलाफ बगावत कर दी। बगावत शीघ्र कुचल दी गयी। इसकी वजह से अकबर की चितौड़ पर चढ़ाई में कुछ विलम्ब हो गया।

खानजहां बहादुर
बादशाह औरंगजेब (१६५९-१७०७ ई.) का एक अधिकारी, जिसने उसके मंदिरों को तोड़ने के हुक्म का बखूबी पालन किया। उसने १६७९ ई. में जोधपुर में अनेक हिन्दू मन्दिर तोड़ दिये और कई गाड़ी भर कर देवमूर्तियां जोधपुर से आगरा भेजीं। औरंगजेब ने उसे खूब शाबाशी दी।


logo