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Bharatiya Itihas Kosh

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फखरुद्दीन
सुल्तान बलबन के शासनकाल में दिल्ली का कोतवाल। वह बड़ा ऐशपरस्त था और प्रतिदिन पोशाक बदलता था। जब बलबन ने अमीरों की शक्ति को कुचलने के लिए दोआब के दो हजार शमसी घुड़सवारों की भुमि के पट्टों का नियमन और भूमि के पुराने अनुदानों को इस आधार पर रद्द करना शुरू किया कि उनलोगों ने सैनिक सेवा प्रदान करना बंद कर दिया है, फखरुद्दीन भूस्वामियों के हितों का मुख्य संरक्षक और प्रवक्ता बन गया।

फखरुद्दीन अब्दुल अजीज कूफी
नैशापुर का काजी था जिसने एक गुलाम बालक खरीदा और उसे अपने लड़कों के साथ धार्मिक एवं सैनिक शिक्षा दी। यही बालक आगे चलकर कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम से प्रसिद्ध हुआ जो दिल्ली का प्रथम सुल्तान और गुलाम वंश का संस्थापक बना। फखरुद्दीन के लड़कों ने इस गुलाम बालक को एक व्यापारी के हाथ बेच दिया। इस व्यापारी ने उसे गजनी में बेच दिया।

फकरुद्दीन मुबारक शाह
सुल्तान मुहम्मद तुगलक (१३२५-५१ ई.) के जमाने में सोनारगाँव (बंगाल) के सूबेदार बहराम खाँ (जो तातार खाँ के नाम से भी जाना जाता था ) का जिरहबख्तर बरदार। १३३६ ई. में बहराम खाँ के मरने के पश्चात् उसने अपने को सीनार गाँव का शासक घोषित कर दिया और फखरुद्दीन मुबारक शाह की पदवी धारण की। इस प्रकार उसने बंगाल में स्वतन्त्र सल्तनत की स्थापना की। उसने लगभग दस वर्ष तक शासन किया। (भट्टसाली, पृष्ठ १५)।

फखरुद्दीन मुहम्मद जूना खाँ
देखिये, 'मुहम्मद तुगलक'।

फजलुलहक, अब्दुल कासिम (१८७३-१९६२)
भूतपूर्व पूर्वी पाकिस्तान (अब बंगलादेश) का गवर्नर। उसका जन्म बरीसाल में हुआ। पहले वह डिप्टी मजिस्ट्रेट के पद पर था, किन्तु शीघ्र ही उसे छोड़कर कलकत्ता हाईकोर्ट में वकालत शुरू कर दी। उसका जीवन विविधतापूर्ण और विलक्षण रहा। १९०४ ई. में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुआ, किन्तु शीघ्र ही कांग्रेस को छोड़कर मुस्लिम लीग में शामिल हो गया और उसका अध्यक्ष भी रहा। गोलमेज सम्मेलन (दे.) के पहले और दूसरे अधिवेशनों में उसने मुस्लिम लीग का प्रतिनिधित्व किया। वह १९३७ से ४३ ई. तक अविभाजित बंगाल का मुख्यमंत्री और कृषक प्रजा पार्टी का नेता रहा। देश विभाजन के बाद वह पूर्वी पाकिस्तान चला गया। वहाँ पर वह मुख्यमंत्री और गवर्नर भी रहा।

फतेहउल्ला, इमादशाह
जिसने हिन्दू धर्म को छोड़कर इस्लाम अपना लिया, चौदहवें बहमनी सुल्तान महमूद (१४८२-१५१८ ई.) के शासनकाल में बरार का सूबेदार। सुल्तान के नाबालिग होने और महमूद खाँ की हत्या के बाद उत्पन्न अराजकता और विघटन की स्थिति का लाभ उठा कर फतेहउल्ला १४८४ ई. में बरार का शासक बन बैठा और उसने 'इमादुल्मुल्क' की उपाधि धारण की। इस प्रकार इमादशाही वंश का सूत्रपात हुआ। इस वंश ने १५७४ ई. तक बरार में शासन किया। इसके बाद बरार को अहमदनगर में मिला लिया गया।

फतेहखाँ
सुल्तान फीरोज़शाह तुगलक का सबसे बड़ा पुत्र (१३५१-८८ )। उसकी मृत्यु फीरोज़ से पहले ही हो गयी थी। फतेहखाँ का बड़ा लड़का गयासुद्दीन तुगलक अपने बाबा सुल्तान फीरोजशाह की मृत्यु के तत्काल बाद गद्दी पर बैठा, किन्तु कुछ ही महीनों बाद उसे अपदस्थ कर उसकी हत्या कर दी गयी। फतेहखाँ का दूसरा लड़का नसरतशाह तुगलक वंश का उपांतिम सुल्तान था, जिसने १३९५ से १३९९ ई. तक शासन किया।

फतेहखाँ
मलिक अम्बर का पुत्र। मलिक अम्बर अहमद नगर के निजामशाहों का वर्षों तक वज़ीर रहा। फतेहखाँ में अपने बाप जैसी वफादारी नहीं थी। वह अहमदनगर के उपान्तिम शासक मुरतज़ा निजामशाह द्वितीय का वजीर था। उसने १६३० ई. में निजामशाह की हत्या कर उसके युवा पुत्र हुसेन को अहमदनगर का शासक घोषित कर दिया। १६३१ ई. में उसने बड़ी बहादुरी के साथ मुगल-सम्राट् शाहजहाँ की फौजों से दौलताबाद दुर्ग की रक्षा की। उसके पिता मलिक अम्बर ने दौलताबाद की बड़ी मजबूत किलेबन्दी की थी। १६३३ ई. में मुगल सम्राट् ने फतेहखाँ को लालच दिया जिससे उसने दौलताबाद का दुर्ग मुगल सम्राट् के हवाले कर दिया। शाहजहाँ ने अहमदनगर के अंतिम निजामशाह हुसेन को ग्वालियर के किले में आजीवन कैद रखा और फतेहखाँ को अपनी सेवा में ले लिया। वह मृत्युपर्यन्त बादशाह की सेवा में रहा। (कैम्ब्रिज., पृष्ठ २६५)

फतेहपुर सीकरी
आगरा से २३ मील पश्चिम में स्थित, यहाँ प्रसिद्ध मुस्लिम फकीर शेख सलीम चिश्ती रहता था। सम्राट् अकबर, जो संतान के लिए अधीर था, अपनी मुराद पूरी होनेके लिए चिश्ती से दुआ मांगने गया। १४६९ ई. में जब उसकी पहली हिन्दू बेगम जोधाबाई ने सीकरी में पुत्र (भावी सम्राट् जहाँगीर) को जन्म दिया, कृतज्ञ सम्राट् ने शेख के नाम पर उसका नाम सलीम रखा और सीकरी को राजधानी बनाने का निश्चय किया ताकि वह स्वयं वहाँ रह सके। सीकरी का निर्माण १५८० ई. में आरंभ हुआ और पूरा नगर अनेक आलीशान इमारतों के साथ कुछ ही वर्षों में बनकर तैयार हो गया। अकबर ने १५७३ ई. में सीकरी से ही गुजरात को फतह करने के लिए कूच किया था। इसलिए इसकी सफलता के उपलक्ष्य में उसने सीकरी का नाम फतेहपुर (विजयनगरी) रखा। तभी से सीकरी 'फतेहपुर सीकरी' के नाम से प्रसिद्ध हो गयी। लगभग १५ वर्षों तक यह अकबर की राजधानी बनी रही। इस अल्प अवधि में नगरी में अनेक विशाल भवनों का निर्माण किया गया। सभी भवन प्रायः लाल पत्थर से बनाये गये हैं। इन भवनों में सलीम चिश्ती का मकबरा, जामा मस्जिद, बुलंद दरवाजा, जोधाबाई का महल, हवाखाना, दीवानेखास, बीरबल महल, मरियम और तुर्की सुल्तानों के महल तथा इबादतखाना (उपासना गृह) विशेष उल्लेखनीय हैं। इबादतखाना को छोड़कर बाकी ये सभी इमारतें आज भी मौजूद हैं और सम्राट् अकबर के ललितकला प्रेम की भव्य प्रतीक हैं। (कुमार स्वामी., खण्ड द्वितीय, पृष्ठ २१७)।

फरायज़ी आन्दोलन
फरीदपुर (जो अब बंगलादेश में है) के हाजी शरियतुल्लाह ने चलाया। यह मुस्लिम पुनरुद्धार आन्दोलन था जिसका उद्देश्य इस्लाम का शुद्धीकरण था। इसने फरीदपुर जिले और उसके पास-पड़ोस के क्षेत्रों में रहनेवाले मुस्लिम काश्तकारों को भारी संख्या में आकर्षित किया। यह शान्तिपूर्ण आन्दोलन था जिसने बाद को कृषि आन्दोलन का रूप ले लिया। बाद धीरे-धीरे यह ठंडा पड़ गया।


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