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Bharatiya Itihas Kosh

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अस्सपेसिओई गण
भारत पर सिकंदर महान् के आक्रमण के समय पश्चिमोत्तर सीमा पर कुनड़ अथवा चित्राल नदी की घाटी में रहता था। इस गण ने यवन आक्रमणकारियों से हट कर मोर्चा लिया था। सिकंदर को इन लोगों से दो लड़ाइयाँ लड़नी पड़ीं और उसके बाद ही वह इनका दमन कर सका।

अहमदनगर
निजामशाही सुल्तानों की राजधानी थी जिन्होंने १४९० ई. में दक्खिन में बहमनी सल्तनत की एक नयी शाखा की स्थापना की। अहमदनगर की स्थापना इस वंश के पहले सुल्तान अहमद निजामशाह ने की। अकबर ने जब इसपर हमला किया तो चाँदबीबी ने उसकी सेनाओं का डटकर मुकाबिला किया, परन्तु अंत में अकबर की विजय हुई। १६३७ ई. में बादशाह शाहजहाँ ने अहमदनगर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया और उसके बाद इस नगर का महत्त्व घट गया। यह अब भी एक बड़ा नगर है और इसी नाम के जिले का मुख्यालय है।

अहमव निज़ामशाह
का असली नाम मलिक अहमद था। वह बिदर के दक्खिनी मुसलमानों के दल के नेता निजामुलमुल्क बहरी का बेटा था जिसने बहमनी सुल्तान के वजीर मुहम्मद गवां को १८४१ ई. में कत्ल करवा दिया। अपने पिता की मृत्यु के बाद मलिक अहमद ने बहमनी राज्य के आखिरी सुल्तान महमूद (१४८२-१५१८ ई.) को हराकर अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की और अपनी राजधानी का नाम अहमदनगर रखा। उसने अपना नाम अहमद निजामशाह और अपने राजवंश का नाम निजामशाही रखा। १४९९ ई. में उसने देवगिरि अथवा दौलताबाद किले को जीतकर उसपर अपना अधिकार कर लिया और इस प्रकार अपने राज्य को मजबूत बनाया। उसने १५०६ ई. तक राज्य किया।

अहमदशाह बहमनी
बहमनी सल्तन का नवाँ सुल्तान था जो १४२२ ई. में अपने भाई, आठवें सुल्तान फीरोज की हत्या करके तख्‍त पर बैठा था। उसने १४३५ ई. तक राज्य किया। उसने विजयनगर राज्य से लम्बी लड़ाई लड़ी; उस राज्य को बुरी तरह नष्ट किया और हजारों स्त्री-पुरुषों और बच्चों का कत्ल कर दिया। उसने वारंगल के हिन्दू राज्य को भी जीत लिया और मालवा तथा गुजरात के सुल्तानों तथा कोंकण के हिन्दू राजाओं से युद्ध किये। वह अपनी राजधानी गुलबर्ग से बिदर ले गया।

अहमदशाह, बादशाह
दिल्ली का १५ वाँ मुगल बादशाह (१७४८-५४ ई.) था। अपने पिता बादशाह मुहम्मदशाह के समय में जब वह शाहजादा था तो उसने अहमदशाह अब्दाली के पहले हमले को विफल कर दिया था। इसके महीने भर बाद ही मुहम्मदशाह की मृत्यु होने पर वह तख्तपर बैठा। अब्दाली ने १७५० ई. और उसके बाद १७५१ ई. में पुनः हमला किया और अहमदशाह को बाध्य होकर पंजाब उसे सौप देना पड़ा। अहमदशाह का राज्यकाल गौरवपूर्ण नहीं कहा जा सकता। १७५४ ई. में उसके वजीर गाजीउद्दीन ने उसे अंधा करके गद्दी से उतार दिया।

अहमदशाह दुर्रानी
देखो अहमदशाह अब्दाली।

अहमदशाह, सुल्तान
गुजरात का तीसरा सुल्तान (१४११-४१ ई.) था। उसके बाप और बाबा का राज्य तो अहमदाबाद के आसपास ही सीमित था, सुल्तान अहमदशाह ने उसका प्रसार पूरे गुजरात में किया और गुजरात की सल्तनत की नींव डाली। उसने मालवा के सुल्तानों और राज्यपूताना के राजाओं से अनेक युद्ध किये और किसी भी युद्ध में उसकी हार नहीं हुई। उसने पुराने हिन्दू नगर असवाल के निकट अहमदाबाद का निर्माण कराया और उसे एक सुन्दर भव्य नगर का रूप दिया।

अहमदाबाद
नाम के दो नगर हैं, एक गुजरात में और दूसरा दक्षिण में। दोनों की स्थापना अहमद नामक सुल्तानों ने की थी। दक्षिण के अहमदाबाद की स्थापना नवें बहमनी सुल्तान अहमदशाह ( दे. ) ( १४२२-३५ई.) ने की जो अपनी राजधानी गुलबर्ग से हटाकर बिदर ले आया और अपने नाम पर उसका नामकरण अहमदनगर किया। गुजरात के अहमदाबाद की स्थापना पुराने हिन्दू नगर असवाल के निकट गुजरात के सुल्तान अहमदशाह (दे.) (१४११-४१ ई.) ने की। १५ वीं शताब्दी में अपनी स्थापना के बाद से अहमदाबाद लगातार गुराजरात राज्य की राजधानी तबतक बना रहा जबतक वह बम्बई प्रदेश में शामिल नहीं कर दिया गया। सुल्तानों के बाद वह मुगलों के अधिकार में चला गया, अकबर ने १५७२ ई. में गुजरात को जीता और अपने राज्य में मिला लिया। १७५८ ई. में गुजरात और अहमदाबाद पर मराठों का अधिकार हो गया और अन्त में वह भारत के ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बना लिया गया। अहमदाबाद अपनी भव्य इमारतों के लिए प्रसिद्ध है और एक समय इसकी गणना संसार के मुख्य नगरों में होती थी। इसकी आबादी ९ लाख थी। यहाँ बहुत से करोड़पति रहते हैं। इस नगरकी समृद्धि रेशम, सुनहरे तार और सूत के कारण है। इस समय यह नगर गुजरात राज्यकी राजधानी है और सूती वस्त्र उद्योग का यह मुख्य केन्द्र है।

अहल्याबाई, रानी
इन्दौर के महाराजा मल्हार राव होल्कर (१७२८-१७६४ ई.) की विधवा पुत्रवधू थीं। मल्हार राव के जीवनकाल में ही उसके पुत्र खंडेराव का निधन १७५४ ई. में हो गया था। अतः मल्हार राव के निधन के बाद रानी अहिल्याबाई ने राज्य का शासनभार सम्हाला। रानी अहल्याबाई ने १७९५ ई. में अपनी मृत्युपर्यन्त बड़ी कुशलता से राज्य का शासन चलाया। उनकी गणना आदर्श शासकों में की जाती है। वे अपनी उदारता और प्रजावत्सलता के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने भारत के भिन्न-भिन्न भागों में अनेक मंदिरों, धर्मशालाओं, और अन्नसत्रों का निर्माण कराया। कलकत्ता से बनारस तक की सड़क, बनारस में अन्नपूर्णा का मंदिर, गया में विष्णु मंदिर उनके बनवाये हुए हैं। उन्होंने अपने समय की हलचल में प्रमुख भाग लिया। उनके एक ही पत्र मल्लेराव था जो १७६६ ई. में दिवंगत हो गया। १७६७ ई. में अहिल्याबाई ने तुकोजी होल्कर को सेनापति नियुक्त किया। अहिल्याबाई के निधन के बाद तुकोजी इन्दौर की गद्दी पर बैठा।

अहसानशाह, जलालुद्दीन
मअबर का सूबेदार था, जिसने १३३५ ई. में सुल्तान मुहम्मद तुगलक (दे.) के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और अपने को सुल्तान घोषित कर दिया। उसने मदुरा में अपना स्वतंत्र मुसलमानी राज्य स्थापित किया जिसको बाद में विजयनगर के हिन्दू राजा (१३७७-७८ ई.) ने जीत लिया।


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