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Bharatiya Itihas Kosh

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अनारकली
शाहजादा सलीम की, जो बाद में बादशाह जहाँगीर (१६०५-२७ ई.) बना, प्रेयसी। बादशाह ने १६१५ ई.में लाहौर में उसकी कब्र पर संगमरमर का मकबरा तैयार कराया और उस पर एक शेर नक्स कराया जिससे अनारकली के प्रति उसका गहन प्रेम प्रकट होता है।

अनुरुद्ध
सिंहली ऐतिहासिक अनुश्रुतियों के अनुसार उदायी के तत्काल बाद, राजा अजातशत्रु (५५४-५२७ ई. पू.) का पुत्र, जो मगध की गद्दी पर बैठा। पुराणों में उसका उल्लेख नहीं मिलता है। सिंहली इतिहास में भी उसका अधिक विवरण नहीं मिलता है, सिवा इसके कि वह पितृघातक था।

अन्हिलवाड़
आठवीं शताब्दी से १५वी. ईसवी शताब्दी तक गुजरात का प्रमुख नगर (अब यहाँ पर पाटन नामक नगर है )।अन्हिलवाड़ के राजा मूलराज ने ११७८ ई. में शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी का आक्रमण विफल कर दिया। मूलराज की इस विजय से गुजरात मुसलमानी आधिपत्य से एक शताब्दी तक बचा रहा।

अपराजित पल्लव
कांची का अन्तिम पल्लव राजा। उसने नवीं शताब्दी ई.के उत्तरार्ध में राज्य किया। ८६२-६३ ई.में उसने पांड्य राजा वरगुण वर्मा को श्री पुरम्विया के युद्ध में पराजित किया था, लेकिन बाद में नवीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में वह स्वयं चोल राजा आदित्य प्रथम (८८०-९०७ ई.) से पराजित हुआ और मारा गया। अपराजित की मृत्यु के बाद पल्लव राजवंश का अन्त हो गया।

अपोलोडोटस
युक्रेटी दस का पुत्र और भारत का एक यवन राजा (१७५-१५६ ई. पू. )। उसने अपने पिता की हत्या करके उसके रक्त पर अपना रथ चलाया और उसके शव का अंतिम संस्कार भी नहीं करने दिया। उसने अपने नाम के सिक्के चलाये। कुछ लोगों का कहना है कि अपोलोडोटस युक्रेटी दस का पुत्र नहीं वरन् उसका प्रतिद्वन्द्वी था। (पी. एच. ए. आई. पृष्ठ ३८६)

अप्पा साहब
भोंसला राजा रघुजी द्वितीय (१७८८-१८१६ ई.) के छोटे भाई व्यांकोजी का पुत्र। रघुजी द्वितीय की १८१६ ई. में मृत्यु होने पर उसका नाबालिग लड़का परसोजी, जो भोंदू किस्म का था, गद्दी पर बैठा। अप्पा साहब उसका संरक्षक नियुक्त किया गया। अप्पा साहब ने अपनी शक्ति दृढ़ करने के लिए मई १८१६ ई. में अंग्रेजों से आश्रित सन्धि कर ली। इस प्रकार नागपुर राज्य, जिसने रघुजी भोंसला द्वितीय के राज्यकाल में अंग्रेजों से इस प्रकार की सन्धि करने से इन्कार कर दिया था, उसकी स्वतंत्रता अप्पा साहब के शासनकाल में समाप्त हो गयी। लेकिन जब पेशवा बाजीराव द्वितीय ने १८१७ ई. में अंग्रेजों के विरुद्ध शस्त्र उठाया तो अप्पा साहब ने भी उसका साथ दिया। अंग्रेजों ने नवम्बर १८१७ ई. में उसकी सेना को सीताबल्डी की लड़ाई में पराजित कर दिया। अप्पा साहब पहले पंजाब भाग गया और बाद में जोधपुर चला गया जहाँ १८४० ई. में उसकी मृत्यु हो गयी।

अफगान
उन पर्वतीय जन-जातियों के लिए प्रचलित शब्द जो न केवल अफगानिस्तान में बसती हैं, बल्कि पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त में भी रहती हैं। इतिहास के आरम्भ काल से भारत के साथ इस दुर्धर्ष जाति के सम्बन्ध मित्रता के भी रहे, और शत्रुता के भी। भारत की सम्पदा पर लुब्ध होकर ये लोग व्यापारियों और लुटेरों दोनों रूपों में भारत आते रहे। सुल्तान महमूद (गजनवी) पहला अफगान सुल्तान था, जिसने भारत पर आक्रमण किया। शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी पहला अफगान सुल्तान था जिसने भारत में मुसलमानी शासन की नींव डाली। दिल्ली के जिन सुल्तानों ने १२०० से १५२६ ई. तक यहाँ राज्य किया वे सभी अफगान अथवा पठान पुकारे जाते थे। लेकिन उनमें से अधिकांश तुर्क थे। केवल लोदी राजवंश के सुल्तान (१४५०-१५२६ ई.) ही असल पठान थे। प्रथम मुगल बादशाह बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई में भारत में पठान शासन का अन्त कर दिया। शेरशाह ने दुबारा पठान राज्य (१५३९-४२ ई.) स्थापित किया और पानीपत की दूसरी लड़ाई (१५५६ ई.) को जीतकर अकबर ने उसे समाप्त कर दिया।

अफगानिस्तान
पाकिस्तान की पश्चिमोत्तर सीमा पर स्थित देश। पेशावर के आगे डूरंड रेखा से इसकी सीमा शुरू होकर हिन्दूकुश तक जाती है। अफगानिस्तान का सदियों से भारत से सम्बन्ध रहा है। महाभारत के अनुसार कुरु नरेश धृतराष्ट्र ने गंधार की राजकुमारी से विवाह किया था। गंधार को आजकल कंधार कहते हैं। सिकंदर के हमले के पहले यह क्षेत्र तीन प्रान्तों में विभाजित था-परोपनिसदै, प्रादिया और आर्कोसिया जो आज के काबुल, हिरात और कंधार प्रान्त हैं। सिकंदर ने इस प्रदेश को जीता था। उसकी मृत्यु के बाद यह प्रदेश उसके सेनापति सेल्यूकस निकेटर को मिला और सेल्यूकस निकेटर को यह प्रदेश चन्द्रगुप्त मौर्य को समर्पण कर देना पड़ा। इस प्रकार अफगानिस्तान भारत का अभिन्न अंग बन गया। अभी हाल में जलालाबाद और कंधार के पास जो अशोक स्तम्भ मिले हैं उनसे प्रकट होता है कि अफगानिस्तान में भारतीय संस्कृति का कितना प्रभाव था। यह एशिया जानेवाले बौद्धधर्म-प्रचारकों के मार्ग पर पड़ता था और बौद्धधर्म का केन्द्र था। यह प्रदेश कुषाण साम्राज्य का अंग था। कुषाणों के पतन के बाद ईसा की तीसरी शताब्दी में यहाँ पारसियों का शासन हो गया। गुप्त शासन काल में इसको गुप्त साम्राज्य में नहीं मिलाया जा सका और ईसा की आठवीं शताब्दी में पड़ोसी पश्चिमी और उत्तरी राज्यों की भांति अफगानिस्तान में मुसलमानी शासन स्थापित हो गया। इस्लाम ने इस देश के लड़ाकू पर्वतीय लोगों में धर्मोन्माद पैदा कर दिया और भारत की सम्पदा ने उनके मन में लोभ भर दिया। इसके फलस्वरूप गजनी और गोरके मुसलमान शासकों ने भारत पर बार-बार आक्रमण किये। अन्त में शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी ने ११९३ ई. में दिल्ली को जीत लिया और भारत में मुसलमानी शासन की नींव डाली।
दिल्ली के सुल्तानों को 'पठान' कहा जाता है, यद्यपि वे ज्यादातर तुर्क थे। ये लोग अफगानिस्तान पर अधिक समय तक अपना अधिकार नहीं रख सके। अफगानिस्तान पर क्रूर और दुर्धर्ष मंगोलों का अधिकार हो गया और वहां से उन्होंने भारत पर आक्रमण किये। १५०४ ई. में बाबर ने इस देश पर अधिकार कर लिया और काबुल को अपनी राजधानी बनाया। काबुल से उसने भारत पर आक्रमण किया और १५२६ ई. में पानीपत की पहली लड़ाई जीतकर भारत में मुगल-साम्राज्य की स्थापना की। १५९५ ई. में अकबर ने कंधार को जीता और अफगानिस्तान को फिर से मुगल-साम्राज्य का हिस्सा बना लिया। १६२२ ई. में कंधार जहाँगीर के हाथ से निकल गया। १६३८ ई. में शाहजहाँ ने उस पर पुनः अधिकार कर लिया, लेकिन १६४८ ई. में वह पुनः उसके हाथ से निकल गया। इसके बाद कंधार पर फिर से अधिकार करने के प्रयास विफल रहे, लेकिन काबुल १७३९ ई. तक मुगल साम्राज्य का हिस्सा बना रहा। उस वर्ष नादिरशाह ने, जो १७३६ ई.में फारस का शाह बना था, काबुल को जीत लिया और दिल्ली को लूटा। इस प्रकार अफगानिस्तान भारतीय शासकों के हाथ से निकल गया लेकिन संबंध बिल्कुल टूट नहीं गये। १७४७ ई. में नादिरशाह की हत्या के बाद अफगान सरदार अहमद शाह अब्दाली या दुर्रानी, ने अफगानिस्तान में अपना राज्य स्थापित किया। अहमद शाह दिल्ली के मुगल बादशाहों के लिए सिरदर्द बन गया। उसने पंजाब पर आक्रमण करके उसे अपने राज्य में मिला लिया। १७६१ ई. में पानीपत की तीसरी लड़ाई को जीतकर उसने मुगल-साम्राज्य की जड़ खोद डाली। अहमदशाह का, दिल्ली का बादशाह बनने का सपना पूरा नहीं हुआ और उसके बाद अफगानिस्तान कभी भारतीय राज्य का भाग नहीं बना। वहाँ अफगान बादशाहों का राज्य रहा और भारत को उस तरफ से खतरा बना रहा। जमानशाह (१७९३-१८०० ई.) ने १७९८ ई. में लाहौर पर कब्जा कर लिया और भारत पर आक्रमण करने का इरादा किया। लेकिन १८०० ई. में वह अपदस्थ कर दिया गया। इसके बाद अफगानिस्तान में अराजकता का दौर शरू हो गया जो दोस्त मोहम्मद (१८२६-६३ ई.) के शासक बनने पर खत्म हुआ। उसने अफगानिस्तान में शान्ति-व्यवस्था स्थापित की। लेकिन उसी समय से अफगानिस्तान मध्य एशिया में बढ़ते हुए रूस और भारत के ब्रिटिश साम्राज्य के बीच प्रतिद्वन्द्विता का मोहरा बन गया। दोनों शक्तियाँ अफगानिस्तान में अपना प्रभुत्व जमाना चाहती थीं। अफगानिस्तान इस प्रभुत्व से बचने के लिए दोनों को एक दूसरे से लड़ाता रहता था। इस प्रतिद्वन्द्विता के कारण १९वीं शताब्दी में अफगानिस्तान और भारत की ब्रिटिश सरकार में दो युद्ध हुए (युद्धों का विवरण, 'आंग्‍ल-अफगान युद्ध' शीर्षक में देखें)। दूसरे अफगान युद्ध के परिणामस्वरूप अफगानिस्तान अपने वैदेशिक मामलों में एक प्रकार से भारत की ब्रिटिश सरकार के अधीन हो गया। १८२३ ई. में अफगानिस्तान और ब्रिटिश भारत की जो सीमा निश्चित की गयी उसे 'डूरंड रेखा' कहा जाता है। १९०४ ई. में अमीर हबीबुल्लाह को अंग्रेजों ने 'हिज़ मैजेस्टी' का खिताब दिया और उसको स्वतंत्र शासक के रूप में मान्यता दी। पहले महायुद्ध में अफगानिस्तान ने तटस्थता की नीति बरती जो ब्रिटिश शासकों के अनुकूल थी। हबीबुल्लाह के उत्तराधिकारी अमीर अमानुल्लाह से तीसरा आंग्‍ल अफगान युद्ध (अप्रैल-मई १९१९ ई.) में हुआ जिसमें अफगानिस्तान हार गया। अफगानिस्तान को भारत के मार्ग से विदेशी शस्त्रास्त्रों को आयात करने का अधिकार नहीं रहा और भारत की ब्रिटिश सरकार ने उसे सहायता देना भी बन्द कर दिया लेकिन उसको अपने वैदेशिक सम्बन्धों में आज़ादी मिल गयी और दोनों सरकारों ने एक दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान करने का वचन दिया। अमानुल्लाह ने उसके बाद यूरोप की यात्रा की और वहाँ से लौटकर उसने अफगानिस्तान में सामाजिक, शैक्षणिक और वैधानिक सुधारों की नीति अपनायी। इन सुधारों का कट्टरपंथी अफगानों ने विरोध किया और मई १९२९ में वहाँ गृहयुद्ध शुरू हो गया। अमानुल्लाह को गद्दी छोड़नी पड़ी। कुछ समय के लिए अफगानिस्तान पर बच्चा सक्का का अधिकार हो गया। अंग्रेजों ने वहाँ हस्तक्षेप नहीं किया। अन्त में बच्चा-सक्का पराजित हुआ और मुहम्मद नादिरशाह ने जो पुराने राजपरिवार का था और अमानुल्लाह का एक योग्य सरदार था, उसका वध कर दिया। वह नादिरशाह के नाम से अफगानिस्तान का शासक बना और १९३३ ई. तक योग्यता के साथ राज्य किया। उस वर्ष उसकी हत्या कर दी गयी। उसका पुत्र महमूद जहीरशाह उसका उत्तराधिकारी बना। नादिरशाह और जहीरशाह के शासन में अफगानिस्तान और भारत के सम्बन्ध संतोषजनक रहे। पाकिस्तान के बनने के बाद भारत से अफगानिस्तान का भौगोलिक सम्बन्ध कट गया, किन्तु दोनों के बीच मित्रता के सम्बन्ध बने रहे।

अफजल खां
बीजापुर के सुल्तान का सेनापति, जिसे १०,००० सैनिकों के साथ शिवाजी का दमन करने के लिए भेजा गया था जो उस समय विद्रोही शक्ति के रूप में उभर रहे थे। प्रारम्भ में अफजल खाँ सफलता प्राप्त करता हुआ १५ दिनों के भीतर सतारा से २० मील दूर वाई नामक स्थान तक पहुँच गया। लेकिन शिवाजी प्रतापगढ़ किले में सुरक्षित थे। जब अफजल खाँ शिवाजी को उस किले से बाहर निकालने में सफल नहीं हुआ तो उसने सुलह की बात चलायी और दोनों के एक खेमें में मिलने की बात तय हुई। शिवाजी को अफजल खाँ की ओर से धोखेबाजी का संदेह था, इसलिए उन्होंने कपड़ों के नीचे बख्तर पहन लिया और अपने हाथ में बघनखा लगा लिया था ताकि अफजल खाँ की ओर से घात होने पर उसका प्रतिकार कर सकें। जब शिवाजी अफजल खाँ से मिले तो उसने शिवाजी को अपनी बाहों में भर लिया और इतना कसकर दबाया जिससे शिवाजी का दम घुट जाय। शिवाजी ने अपने पंजे में लगे बघनख से अफजल खाँ का पेट फाड़ दिया और उसे मार डाला। उसके बाद मराठों ने खुले युद्ध में बीजापुर की फौज को पराजित कर दिया।

अफ्रीदी
सीमा प्रांत का एक लड़ाकू कबीला, जो खैबर क्षेत्र में निवास करता है। ये लोग भारतीय प्रशासन के लिए बराबर सिरदर्द बने रहते थे। १६६७ ई. में इन लोगों ने औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और लम्बे संघर्ष के बाद उनका दमन किया जा सका। १८९३ ई. के बाद जब अफगानिस्तान और भारत की ब्रिटिश सरकार के अधीन आ गया। ब्रिटिश शासकों को इस क्षेत्र पर नियंत्रण करने के लिए अनेक फौजी अभियान चलाने पड़े और अफ्रीदी सरदारों को अपनी ओर मिलाने के लिए उन्हें आर्थिक सहायता भी देनी पड़ी।


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