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Bharatiya Itihas Kosh

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अबुल फ़ज़ल
शेख मुबारक का पुत्र। वह बहुत पढ़ा-लिखा और विद्वान् था और उसकी विद्वत्ताका लोग आदर करते थे। वह बहुत वर्षों तक अकबर का विश्वासपात्र वजीर और सलाहकार रहा। वह केवल दरबारी और आला अफसर ही नहीं था, वरन् बड़ा विद्वान् था और उसने अनेक पुस्तकें लिखी थीं। उसकी 'आईन-ए-अकबरी' में अकबर के साम्राज्य का विवरण मिलता है और 'अकबरनामा' में उसने अकबर के समय का इतिहास लिखा है। उसका भाई फैजी भी अकबर का दरबारी शायर था। १६०२ ई. में बुंदेला राजा वीर सिंह ने शाहजादा सलीम के उकसाने से अबुल फ़ज़ल की हत्या कर डाली।

अबुल हसन
गोलकुंडा राज्य के कुतुबशाही सुल्तानों में अन्तिम सुल्तान। मुगल सम्राट् औरंगजेब उससे नाराज हो गया और १६८७ ई. में उसने उसे पराजित कर दिया और गद्दी से हटा कर दौलताबाद के किले में कैद रखा जहाँ कुछ वर्षों के बाद उसकी मौत हो गयी।

अब्दाली, अहमद शाह
दुर्रानी कबीले का एक अफगान सरदार, जिसने १७४७ ई. में नादिरशाह (दे.) की हत्या के बाद अफगान सिंहासन पर अपना अधिकार जमा लिया। उसने १७४७ से १७७३ ई. तक शासन किया। अपने शासन काल में उसने आठ बार भारत पर हमले किये। उसने पंजाब पर अधिकार कर लिया और १७६१ ई. में पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों को पराजित किया। अफगान सैनिकों ने उस युद्ध के बाद मथुरा की ओर बढ़ने से इन्कार कर दिया क्योंकि चार साल पहले वहाँ पर अफगान सैनिकों में हैजा फैल गया था जिसमें बहुतों की मृत्यु हो गयी थी। इससे मज़बूर होकर अब्दाली अफगानिस्तान लौट गया और पानीपत में मिली विजय के बाद पूरे हिन्दुस्तान में अपना साम्राज्य स्थापित करने का उसका स्वप्न टूट गया। अब्दाली के आक्रमण का संकट १७६७ ई. तक बना रहा और उसका प्रभाव भारत में अंग्रेजों की नीति पर कई वर्षों तक पड़ा। अहमद शाह अब्दाली का देहान्त १७७३ ई. में हुआ। (यदुनाथ सरकार-फाल आफ मुगल इम्पायर, भाग दो, पृ. ३७६)

अब्दुर्रज्ज़ाक लारी
गोलकुंडा के आखिरी सुल्तान का दरबारी और सिपहसालार। १६८७ ई. नें जब औरंगजेब ने गोलकुंडा पर अन्तिम आक्रमण किया तो उसने अब्दुर्रज्ज़ाक को अनेक लालच दिये, पर वह न डिगा और बहादुरी से गोलकुंडा की रक्षा करते हुए उसके ७० घाव लगे। बाद में औरंगजेब ने उसका इलाज कराया और उसे मुगल दरबार में ऊँचा पद प्रदान किया।

अब्दुर्रज्ज़ाक हेरात
१४४८ ई. में फारस के सुलतान शाहरुख का राजदूत होकर भारत आया। पहले वह कालीकट पहुँचा और वहाँ से विजय नगर गया जहाँ का दिलचस्प वर्णन उसने किया है।

अब्दुर्रहमान, अमीर
१८८० ई. में दूसरे अफगान युद्ध के बाद अंग्रेजों की मदद से अफगानिस्तान के सिंहासन पर बैठाया गया। वह चतुर राजनीतिज्ञ था, और उसने इंग्लैण्ड और रूस दोनों से मित्रता रखी। उसने अफगानिस्तान का आन्तरिक शासन बड़ी कुशलता से चलाया और उसकी अखंडता कायम रखी। उसके शासन काल में भारत-अफगानिस्तान सीमा निर्धारण डूरंड रेखा के आधार पर १८९३ ई. में किया गया।

अब्दुर्रहीम, खानखाना
बैरम खाँ का लड़का। १५६१ ई. में पिता की मृत्यु के समय अब्दुर्रहीम नाबालिग था। अकबर के शासन में उसने तरक्की की और 'खानखाना' की उपाधि से सम्मानित किया गया। अनेक युद्धों में उसने भाग लिया। वह प्रसिद्ध कवि भी था। उसके दोहे हिंदी में प्रसिद्ध हैं। उसने बाबर की आत्मकथा का तुर्की से फारसी में अनुवाद किया। उसके आश्रित अब्दुल बाकी ने मआसिर-ए-रहीमी नामक पुस्तक में उसकी प्रशंसा की है। वह लम्बी अवस्था तक जीवित रहा और जहाँगीर के शासन काल में उसकी मृत्यु हुई।

अब्दुल गफ्फार खां
बादशाह खान और सीमांत गांधी के नाम से भी प्रसिद्ध पठानों के नेता। वे पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के राष्ट्रीयतावादी मुस्लिम नेताओं में मुख्य रहे हैं। उन्होंने अपने प्रान्त में पहले 'खुदाई खिदमतगार' संगठन बनाया और बाद में गांधीजी के अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन में शामिल हो गये। १६३७ ई. के आम चुनाव में उनके नेतृत्व में कांग्रेस को बड़ी सफलता मिली और पश्चिमोत्तर प्रान्त में कांग्रेस मंत्रिमंडल बनाया गया जिसके मुख्यमंत्री अब्दुल गफ्फार खाँ के छोटे भाई, डाक्टर खान साहब हुए। स्वतंत्रता के समय भारत के विभाजन के बाद पश्चिमोत्तर प्रान्त पाकिस्तान का एक हिस्सा बन गया। अब्दुल गफ्फार खाँ ने वहाँ पख्तून आन्दोलन चलाया जिससे पाकिस्तान सरकार ने उन्‍हें लम्बे समय तक जेल में रखा। जेल से रिहा होने पर वे चिकित्सा के लिए काबुल में रहने लगे। १९७० में दिसम्बर के चुनाव में नेशनल आवामी पार्टी को पश्चिमोत्तर प्रान्त में सफलता मिली। १९७१ ई. के अन्त में पाकिस्तान के राष्ट्रपति श्री जुल्फिकार अली भुट्टो बने। उन्होंने १९७२ ई. में अब्दुल गफ्फार खाँ को पाकिस्तान लौटने की अनुमति दे दी।

अब्दुल हमीद लाहौरी
शाहजहाँ (दे.) का सरकारी इतिहासकार। उसकी रचना का नाम 'पादशाहनामा' है जो शाहजहाँ के शासन का प्रामाणिक इतिहास माना जाता है।

अब्दुल्ला, बड़ा सैयद
सैयद बंधुओं (दे.) में बड़ा भाई। सैयद अब्दुल्ला और उसके छोटे भाई हुसैन ने १७१३ से १७१९ ई. तक मुगल सल्तनत का संचालन किया। इन लोगों ने फर्रुख़सियर को १७१३ ई. में सिंहासन पर बैठाया। १८१९ ई. में उसे गद्दी से हटा दिया और उसकी हत्या करवा दी। उसी एक वर्ष के भीतर उन्होंने चार मुगल बादशाहों को गद्दी पर बैठाया और हटाया। जब उन लोगों ने पाँचवें बादशाह मुहम्मद शाह को १८१९ ई. में गद्दी पर बैठाया तो उसने हुसैन का कत्ल करवा दिया और अब्दल्ला को कैद करा दिया, जहाँ उसे जहर देकर १८२२ ई. में मार डाला गया।


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