का शाब्दिक अर्थ शत्रु-हन्ता है। यूनानी इतिहासकारों ने इस शब्द का अमित्रकाट्स रूप लिखा है और चन्द्रगुप्त मौर्य के पत्र बिन्दुसार को इस नाम से सम्बोधित किया है।
अमीचन्द
एक धनी किन्तु धूर्त सेठ, जो १८ वीं शताब्दी के मध्य में कलकत्ते में रहता था। उसने नवाब सिराजुद्दौला को अपदस्थ कर मीर जाफ़र को बंगाल का नवाब बनाने के लिए कलकत्ते में अंग्रेजों और मुर्शिदाबाद में नवाब के विरोधियों के बीच गुप्त वार्ताएँ चलायीं। जब यह गुप्त वार्ता काफी आगे बढ़ चुकी और नवाब सिराजुद्दौला के विरुद्ध पड़यंत्र में अंग्रेजों की पूर्ण भागीदारी स्पष्ट हो चुकी, अमीचन्द ने मुर्शिदाबाद में नवाब के खजाने की लूट से प्राप्त होनेवाले धन में से लम्बे कमीशन की मांग की तथा यह धमकी दी कि यदि उसे वांछित धनराशि न दी गयी तो वह नवाब को सारे पड़यंत्र की सूचना दे देगा। राबर्ट क्लाइव के सुझाव पर मीर जाफ़र के साथ होनेवाली संधि के दो प्रारूप तैयार किये गये। एक में उक्त कमीशन दिये जाने की बात थी और दूसरे में नहीं। जाली संधि-पत्र पर क्लाइव के तथा एडमिरल वाटसन को छोड़कर कलकत्ता कौंसिल के अन्य सभी सदस्यों के हस्ताक्षर थे। क्लाइवने उस जाली संधि-पत्र पर वाट्सन के भी जाली हस्ताक्षर कर लिये। किन्तु अमीचन्द को इस जाल बट्टे की जानकारी पलासी के युद्ध के उपरांत हुई और कहा जाता है कि अंततः वह निराश और पागल होकर मर गया।
अमीन खां
१६७२ ई. में अफगानिस्तान का मुगल सूबेदार। औरंगजेब के समय में जब अफरीदियों ने बादशाह के विरुद्ध विद्रोह किया उस समय अली मस्जिद की लड़ाई में अमीन खाँ बुरी तरह हारा।
अमीन खाँ
मुगल बादशाह मुहम्मद शाह के शासनकाल (१७१९-१७४८ ई.) में जब सैयद बंधुओं का पतन हो गया उस समय अमीन खाँ को दिल्ली का वजीर बनाया गया। उसकी मृत्यु १७२१ ई. में हुई।
अमीर अली, सैयद
(१८४९-१९२९ ई.) पहला भारतीय जिसको प्रिवी कौंसिल में न्यायाधीश नियुक्त किया गया। उसने अपना जीवन ऐडवोकेट के रूप में शुरू किया और १८९० ई.में कलकत्ता हाईकोर्ट का जज बनाया गया। इस पद पर वह १९०४ ई. तक रहा। १९०९ ई. में उसको इंग्लैण्ड में प्रिवी कौंसिल की जुडीशियल कमेटी में नियुक्त किया गया। उसकी मृत्यु इंग्लैण्ड में हुई। उसने 'हिस्ट्री आफ सराकेन्स' और कई कानून-सम्बन्धी पुस्तकें लिखी हैं।
अमीर उमर
सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी का भांजा, जिसने बदायूँ में सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह किया, जिसका आसानी से दमन कर दिया गया और अमीर उमर को मौत के घाट उतार दिया गया।
अमीर खां
बादशाह औरंगजेब का एक सेनापति, जो २१ वर्ष (१६७७-९८ ई.) काबुल में मुगल सूबेदार रहा और उसने बड़ी योग्यता से प्रशासन चलाया।
अमीर खां
पिंडारियों का सरदार और भाड़े पर लड़नेवाले पठानों और लुटेरों का नेता। १९ वीं शताब्दी के आरम्भ में मध्य-भारत में जब तीसरा आंग्ल-मराठा युद्ध हुआ तो अमीर खाँ पहले होल्कर के संरक्षण में रहकर लड़ा। लेकिन बाद में अंग्रेजों ने उसे अपने पक्ष में मिला लिया और उसे टोंक रियासत का नवाब मान लिया जहाँ उसके परिवार के लोग १९४८ ई. तक नवाब रहे। १९४८ ई. में टोंक रियासत का भारत में विलयन हो गया।
अमीर खुसरो
तोतए-हिन्द' उपनाम से प्रसिद्ध एक विद्वान् कवि और लेखक, जिसने फारसी, उर्दू और हिन्दी में अपनी रचनाएँ कीं। उसने प्रचुर मात्रा में पद्य और गद्य दोनों लिखा है और संगीत की भी रचना की है। उसने लंबी उम्र पायी और उसे दिल्ली के कई सुल्तानों-बलबन से गयासुद्दीन तुगलक तक का संरक्षण मिला। उसकी मृत्यु १३२४-२५ ई. में हुई। उसकी कृतियों में बहुत-सी कविताएँ, ऐतिहासिक मसनवी, 'तुगलक नामा' और 'तारीख-ए-अलाइ' नामक दो इतिहास ग्रंथ हैं।
अमृतराव
रघुनाथ राव (राघोबा) का दत्तक पुत्र, जो पेशवा बाजीराव प्रथम का दूसरा पुत्र था। उसने पेशवा के रूप में केवल एक वर्ष (१७७३ ई.) राज्य किया। पूना की लड़ाई के बाद जब पेशवा बाजीराव द्वितीय (१७९६-१८१८) अक्तूबर १८०३ ई. में वसई भाग गया था तब अमृतराव को पेशवा बनाया गया। अमृत राव ने पेशवा बाजीराव द्वितीय को १८०३ ई. के आरम्भ में अंग्रेजों द्वारा दुबारा पेशवा बनाने का विरोध नहीं किया और वह पेंशन पाकर बनारस में रहने लगा।