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Bharatiya Itihas Kosh

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अब्दुस्समद
अकबर का चित्रकला का उस्ताद, जिसे बाद में अकबर ने टकसाल का अधिकारी बनाया। वह अपने समय का नामी कलाकार माना जाता था।

अभिषेक
का अर्थ है जल छिड़कना। राजपद पर निर्वाचित होने पर राजा का अभिषेक आवश्यक माना जाता था। इस अवसर पर ब्राह्मण पुरोहित, निर्वाचित राजा का कोई निकट सम्बन्धी या भाई, एक मित्र नरेश और एक वैश्य उस पर १७ तीर्थों का पवित्र जल छिड़कते थे।

अभिसार
एक जनजाति, जो सिकंदर के आक्रमण के समय कश्‍मीर के पुंछ तथा पड़ोस के कुछ जिलों में तथा उत्‍तर-पश्चिमी सीमा प्रांत के हजारा जिले में निवास करती थी। अभिसारेश - सिकंदर के आक्रमण के समय अभिसार जनपद का राजा। वह बड़ा चतुर राजनीतिज्ञ था। जब सिकंदर तक्षशिला पहुँचा तो उसने कहलाया कि मैं यवन आक्रमणकारियों के सामने आत्मसमर्पण करने को तैयार हूँ। इसके साथ ही वह पोरस से मिलकर सिकंदर से लड़ने के लिए भी संधि-वार्ता चलाता रहा। यह वार्ता सफल नहीं हो सकी और अंत में अभिसार जनपद के राजा को सिकंदर के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए बाध्य होना पड़ा।

अमरकोट
सिन्ध का एक नगर और राज्य, जहाँ २३ नवम्बर १५४२ ई. को अकबर का जन्म हिन्दु राजा राणा प्रसाद की शरण में हुआ। मार्च १८४३ ई. में सर चार्ल्स ने पियर के नेतृत्व में भारत की अंग्रेजी सेना ने उस पर कब्जा कर लिया और उसके साथ ही पूरे सिन्ध पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। अब यह पाकिस्तानी क्षेत्र में है।

अमरदास
सिखों के तीसरे गुरु (१५५२-७४ ई.)। वे चरित्रवान् और सदाचारी थे। उन्होंने सिख धर्म का काफी प्रचार किया।

अमर सिंह
मेवाड़ का राणा (१५९६-१६२० ई.)। वह प्रसिद्ध राणाप्रताप सिंह का पुत्र और उत्तराधिकारी था। उसने अपनी स्वतंत्रता के लिए बादशाह अकबर से बहादुरी से युद्ध किया, लेकिन १५९९ ई. में वह पराजित हो गया। वह अकबर की परतंत्रता से अपनी मातृभूमि को बचाने में तो सफल नहीं हुआ, लेकिन उसने १६१४ ई. तक मुगलों के विरुद्ध अपनी लड़ाई जारी रखी। लगातार विफलता और मुगल साम्राज्य के बढ़ते हुए दबाव के कारण, उसने बादशाह जहाँगीर से सम्मानपूर्वक सन्धि कर ली। जहाँगीर ने मेवाड़ के राणा को मुगल दरबार में हाजिर होने और किसी राजकुमारी को मुगल हरम में भेजने की अपमानजनक शर्त नहीं रखी। मेवाड़ और मुगलों के बीच मित्रता के जो सम्बन्ध स्थापित हो गये थे वे औरंगजेब के समय में उसकी धार्मिक असहिष्णुता की नीति के कारण समाप्त हो गये।

अमरसिंह थापा
सन् १८१४-१६ ई. के आंग्ल-नेपाल युद्ध के समय नेपाली सेना का सेनापति, जिसने बड़ी वीरता से जनरल आक्टर लोनी के नेतृत्व में लड़ने वाली अंग्रेज सेना से मालौन के किले की रक्षा १५ मई १८१५ ई. तक की, जब उसे बाध्य होकर किला छोड़ना पड़ा। इसके कुछ महीने बाद १८१५ ई. की सुगौली की सन्धि के द्वारा यह युद्ध समाप्त हो गया।

अमात्य
गुप्त-शासन काल में उच्च प्रशासकीय अधिकारी का पद, जो मंत्री के समकक्ष माना जाता था। मराठा छत्रपति शिवाजी ने भी इस पद को प्रचलित किया था। शिवाजी के समय में अमात्य का अर्थ वित्तमंत्री था जिसको सरकारी हिसाब-किताब की जाँच करके उसपर हस्ताक्षर करने पड़ते थे।

अमानुल्लाह
अफगानिस्तान का बादशाह (१९१९-१९२९ ई.)। वह अपने पिता अमीर हबीबुल्ला (१९०१-१९ई.) के उत्तराधिकारी के रूप में गद्दी पर बैठा था। गद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद ही उसने भारत के ब्रिटिश शासकों से लड़ाई छेड़ दी जो तीसरे आंग्ल-अफगान युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है। अंग्रेजों की भारतीय सेना अफगान सेना के मुकाबले में कहीं श्रेष्ठ थी। उसके पास विमान, बेतार से खबर भेजने की व्यवस्था और शक्तिशाली विस्फोटक पदार्थ थे। अंग्रेजों ने अमानुल्लाह की सेना को आसानी से पराजित कर दिया। अमानुल्लाह ने अगस्त १९१९ ई. में सन्धि का प्रस्ताव किया जिसकी पुष्टि १९२९ ई. में हुई। इस सन्धि के बाद अमानुल्लाह को अंग्रेजों से आर्थिक सहायता मिलनी बन्द हो गयी लेकिन उसे अपनी वैदेशिक नीति में आजादी मिल गयी। अफगानिस्तान और इंग्लैण्ड में राजनयिक सम्बन्ध स्थापित हो गये और एक दूसरे की राजधानियों में राजदूत भेजे गये। इसके बाद अंग्रेजों और अफगानों के सम्बन्धों में सुधार हो गया। अमानुल्लाह शाह ने उसके बाद यूरोप की यात्रा की और वहाँ से लौटने पर अपने देश में यूरोपीय ढंग के सुधार किये। इन सुधारों से पुरातनपंथी अफगान नाराज हो गये और अफगानिस्तान में गुहयुद्ध छिड़ गया जिससे मजबूर होकर अमानुल्लाह ने १९२९ में गद्दी छोड़ दी। उसके बाद वह अपनी मलका सुरैया के साथ यूरोप चला गया जहाँ वह मृत्युपर्यंत प्रवास में रहा।

अमरावती
आन्ध्र प्रदेश के गुंटूर जिले का एक नगर, जो सातवाहन राजाओं के शासनकाल में हिन्दू संस्कृति का केन्द्र था। अशोक की मृत्यु के बाद करीब चार शताब्दी तक दक्षिण भारत में सातवाहन शासन रहा। अमरावती में कला, वास्तुकला और मूर्तिकला की स्थानीय मौलिक शैली विकसित हुई थी। अमरावती में मिली मूर्तियों की कोमलता और भाव-भंगिमा दर्शनीय हैं। प्रत्येक मूर्ति का अपना आकर्षण है और पेड़-पौधों, फूलों, विशेषरूप से कमल के फूलों को बड़े सुन्दर ढंग से बनाया गया है। बुद्ध मूर्तियों को मानव आकृति के बजाय प्रतीकों के द्वारा गढ़ा गया है जिससे पता चलता है कि अमरावती-शैली मथुरा और गांधार शैलियों से पहले की है। वह यूनानी प्रभाव से सर्वथा मुक्त है।


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