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Bharatiya Itihas Kosh

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अमृतसर
पंजाब में सिखों का तीर्थस्थान। सिखों के चौथे गुरु रामदास को १५७७ ई. में बादशाह अकबर १५५६-१६०५ ई.) ने यह स्थान दिया था। बाद में इस नगर का विकास हुआ और सिखों के दान से स्वर्ण मंदिर का निर्माण किया गया।

अमृतसर की संधि
२५ अपैल, १८०९ ई. को रणजीत सिंह और ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच हुई। उस समय लार्ड मिन्टो (१८०७-१३ ई.) भारत के गवर्नर-जनरल थे। इस सन्धि के द्वारा सतलज पार की पंजाब की रियासतें अंग्रेजों के संरक्षण में आ गयीं और सतलज के पश्चिम में पंजाब राज्य का शासक रणजीत सिंह को मान लिया गया।

अमृतसर की संधि
१६ मार्च १८४६ ई. को प्रथम आंग्ल सिख युद्ध (१८४५-४६ ई.) के समाप्त होने पर अमृतसर में की गयी। इस सन्धि के द्वारा कश्मीर जो रणजीत सिंह के राज्य का हिस्सा था उसे राज्य दलीप सिंह से ले लिया गया और अंग्रेजों ने उसे गुलाब सिंह को दे दिया। गुलाब सिंह लाहौर दरबार का एक सरदार था। इसके बदले में उसने अंग्रेजों को दस लाख रुपये दिये।

अमोघ वर्ष
दक्षिण के राष्ट्रकूट राजवंश में इस नाम के तीन राजा हुए। अमोघ वर्ष प्रथम ने सबसे लम्बे समय तक (८१४-८७७ ई.) राज्य किया। उसे अपने पूर्वी पड़ोसी वेंगि के चालुक्य राजाओं से अनेक युद्ध करने पड़े। वह अपनी राजधानी नासिक से हटाकर मान्यखेट (आधुनिक मालखेड़) ले गया। अरब सौदागर सुलेमान ने ८५१ ई. में उसका उल्लेख 'बलहरा' के नाम से किया है और उसे संसार का चौथा सबसे बड़ा राजा बतलाया है। वृद्ध होने पर अमोघ वर्ष प्रथम ने राजपाट छोड़कर संन्यास ले लिया और अपने पुत्र कृष्ण द्वितीय को राजा बनाया। वह जैन धर्म का संरक्षक था।

अमोघवर्ष द्वितीय
अमोघवर्ष प्रथम का पौत्र। उसने केवल एक वर्ष (९१७-९१८ ई.) राज्य किया। उसके भाई गोविन्द चतुर्थ ने उसे गद्दी से हटा दिया और स्वयं राजा बन गया। गोविन्द चतुर्थ ने ९१८ से ९३४ ई. तक राज्य किया।

अमोघवर्ष तृतीय अथवा बड्डिग
अमोघवर्ष द्वितीय के पौत्र का दूसरा पुत्र। वह गोविन्द चतुर्थ के बाद ९३४ ई. में राजा बना और पाँच वर्ष (९३४-९३९ ई.) राज्य किया। उसके शासनकाल में दक्षिण के राष्ट्रकूटों और सुदूर दक्षिण के चोल राजाओं के मध्य शत्रुता आरम्भ हो गयी।

अम्बर, मलिक
एक हब्शी गुलाम, जो अहमद नगर में बस गया था। चाँद सुल्ताना (दे.) की मृत्यु के बाद वह तरक्की करके वजीर के पद पर पहुँच गया। उसने अहमदनगर को बादशाह जहाँगीर के पंजे से बचाने का जी-तोड़ प्रयास किया। उसमें नेतृत्व के सहज गुण थे और मध्ययुगीन भारत के सबसे बड़े राजनीतिज्ञों में उसकी गणना की जाती है। उसने अहमदनगर राज्य की राजस्व व्यवस्‍था सुधारी और सेना को छापामार युद्ध की शिक्षा दी। इस प्रकार अहमद नगर को मुगलों के आक्रमण से बचाया। लेकिन १६१६ ई. में जब बहुत बड़ी मुगल सेना ने अहमद नगर पर चढ़ाई कर दी तो मलिक अम्बर को आत्मसमर्पण करना पड़ा। उस समय शाहजादा खुर्रम मुगल सेना का नेतृत्व कर रहा था। मलिक अम्बर ने बड़े सम्मान के साथ जीवन बिताया और १६३६ ई. में बहुत वृद्ध हो जाने पर उसकी मृत्यु हुई।

अम्बष्ठ
गण के लोग सिकन्दर के आक्रमण के समय भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में चनाब और सिन्धु के संगम स्थल के उत्तरी हिस्से में रहते थे। यूनानी इतिहासकारों ने इनका उल्लेख 'अम्बप्टनोई' नाम से किया है, जो संस्कृत भाषा के अम्बष्ठ शब्द का रूपान्तर है। ऐतरेय ब्राह्मण, महाभारत और बार्हस्पत्य अर्थशास्त्र में अम्बष्ठ गण का उल्लेख मिलता है। यह प्रारम्भ में एक युद्धोपजीवी गण था। यह प्रारंभ में एक युद्धोपजीवी गण था, लेकिन बाद में इस गण के लोग पुरोहित, कृषक और वैद्य भी होने लगे थे।

अम्बाजी
एक मराठा सरदार, जो राजपूताना तक धावे मारता था। आठ वर्षों (१८०९-१८१७ ई.) में उसने अकेले मेवाड़ से करीब दो करोड़ रुपये वसूले।

अम्बेडकर, डा. भीमराव रामजी
भारत की परिगणित जातियों के प्रमुख नेता। उनकी शिक्षा अमेरिका और इंग्लैण्ड में हुई थी। उन्होंने अपना जीवन सरकारी कार्यालय में एक लिपिक के रूप में शुरू किया, लेकिन शीघ्र ही सवर्ण हिन्दुओं के विरोध के कारण उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी। सवर्णों के व्यवहार से रुष्ट होकर उन्होंने अछूतों को संगठित किया और उनका राजनीतिक दल बनाया। संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य होने के साथ ही वे भारत के कानून मंत्री भी बनाये गये और उन्होंने भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार करके उसे संविधान निर्मात्री सभा से पास कराया। इस संविधान के द्वारा भारत को सार्वभौमसत्ता सम्पन्न गणतंत्र घोषित किया गया है। डाक्टर अम्बेडकर ने भारतीय संसद में हिन्दू कोड बिल भी पेश किया और उसे पास कराया।


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