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Bharatiya Itihas Kosh

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अर्थशास्त्र
देखो 'कौटिल्य'।

अर्हत्
उन बौद्ध और जैन श्रमणों की पदवी, जिन्होंने आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत उच्च स्तर प्राप्त कर लिया था। जो बौद्ध या जैन भिक्षु अपने जीवनकाल में निर्वाण प्राप्त कर लेता था उसे अर्हत् कहा जाता था।

अल-जुर्ज
भिन्नमाल अथवा भड़ौच के चारों ओर के गुर्जर क्षेत्र का पुराना अरबी नाम।

अलबुकर्क, अलफोसो द
पुर्तगाली अधिकार में आये भारतीय क्षेत्र का दूसरा गवर्नर (१५०९-१५१५ ई.)। उसने पूर्व में पुर्तगाली साम्राज्य की स्थापना के उद्देश्य से कई महत्त्वपूर्ण ठिकानों में पुर्तगाली शासन और व्यापारी कोठियाँ स्थापित कीं, और कुछ स्थानों में पुर्तगाली बस्तियाँ बसायीं, भारतीयों और पुर्तगालियों में विवाह सम्बन्धों को प्रोत्साहित किया। उसने ऐसे स्थानों में किले बनवाये जहाँ न तो पुर्तगाली बस्तियाँ बसायी जा सकती थीं और जो न तो जीते जा सकते थे। जहाँ यह भी संभव न था उसने स्थानीय राजाओं को पुर्तगाल के राजा की प्रभुता स्वीकार करने और उसे भेंट देने को प्रेरित किया। उसने बीजापुर के सुल्तान से १५१० ई. में गोआ छीन लिया, १५११ ई. में मलक्का पर और १५१५ ई. में ओर्मुज पर अधिकार कर लिया। अलबुकर्क अपने उद्देश्य को पूरा करने में गलत-सही तरीकों का ख्याल नहीं रखता था। उसने कालीकट के जमोरिन की हत्या जहर देकर करवा दी, जिसने पुर्तगालियों के आगमन पर उनसे मित्रता का व्‍यवहार किया था। पुर्तगालियों के हिन्दुस्तानी औरतों से शादी कर यहाँ बसाने की नीति भी सफल नहीं हुई और इसके परिणामस्वरूप पूर्तगाली-भारतीयों की मिश्रित जाति बन गयी जिससे पूर्व में पुर्तगाली साम्राज्य की स्थापना में कोई खास मदद नहीं मिली। उसने मुसलमानों के नर-संहार की नीति अपनायी जिससे पुर्तगालियों के साथ हिन्दुस्तानियों की हमदर्दी खत्म हो गयी और अलबुकर्क ने जिस पुर्तगाली साम्राज्य की स्थापना का स्वप्न देखा था वह उसकी मृत्यु के बाद बिखर गया।

अल्प खाँ
को अलाउद्दीन खिलजी ने १२९७ ई. में गुजरात जीतने के बाद वहाँ का सूबेदार बनाया। १३०७ ई. में अल्प खाँ ने मलिक काफूर और ख्वाजा हाजी के नेतृत्व में मुसलमानी सेना के साथ देवगिरि राज्य के विरुद्ध दूसरे अभियान में हिस्सा लिया, जिसमें गुजरात की राजकुमारी देवल देवी पकड़ी गयी। राजकुमारी देवल देवी ने गुजरात विजय के बाद अपने पिता कर्णदेव के साथ देवगिरि के राजा रामचन्द्र देव के दरबार में जाकर शरण ली थी। अल्प खाँ ने देवल देवी को अलाउद्दीन के दरबार में भेजा, जहाँ उसकी शादी सुल्तान के बड़े बेटे खिजिर खाँ के साथ कर दी गयी।

अल्प खाँ
मालवा के मुल्तान दिलावर खाँ गोरी का बेटा और उत्तराधिकारी। दिलावर खाँ ने १४०१ ई. में मालवा में अपना राज्य स्थापित किया था। गद्दी पर बैठने के बाद अल्प खाँ ने हुरांगशाह की उपाधि धारण की और १४३५ ई. में अपनी मृत्यु तक मालवा में राज्य किया। उसे जोखिम उठाने और युद्ध करने में आनन्द मिलता था। उसने दिल्ली, जौनपुर, गुजरात के सुल्तानों और बहमनी सुल्तान अहमद शाह से युद्ध किये, लेकिन अधिकांश युद्धों में उसे विफलता ही मिली।

अल्प्तगीन
मध्य एशिया के सामानी शासकों का भूतपूर्व गुलाम, जो ९६२ ई. में गजनी का शासक बन बैठा। उसने काबुल के राज्य का कुछ भाग जीतकर भारत की उत्तर पश्चिमी राज्य का कुछ भाग जीतकर भारत की उत्तर पश्चिमी सीमा पर मुसलमानी राज्य कायम किया। उसकी मौत ९६३ ई. में हुई।

अल्प्तगीन
सुल्तान बलबन (१२६६-८६ ई.) का एक सेनापति। उसको अमीर खाँ का खिताब दिया गया था। सुल्तान बलबन ने उसे बंगाल में तोगरल खाँ के विद्रोह का दमन करने के लिए भेजा था। अल्प्तगीन को तोगरल खाँ ने पराजित कर दिया और उसके बहुत से सैनिकों और सामान को अपने कब्जे में कर लिया। अपने सेनापति की पराजय से बलबन को इतना क्रोध आया कि उसने अल्प्तगीन को दिल्ली के फाटक पर फांसी पर लटकवा दिया। अल्प्तगीन योग्य सेनापति और अमीरों में लोकप्रिय था। उसको फांसी दिये जाने से अमीरों में काफी रोष पैदा हो गया था।

अलबेरूनी
(९७३-१०४८ ई.) रबीवा का रहनेवाला। सुल्तान महमूद के समय (९९७-१०३० ई.) में उसे कैदी अथवा बन्धक के रूप में गजनी लाया गया था। वह सुल्तान महमूद की सेना के साथ भारत आया और कई वर्षों तक पंजाब में रहा। उसका असली नाम अबु-रैहान मुहम्मद था, लेकिन वह 'अलबेरूनी' के नाम से ही प्रसिद्ध है जिसका अर्थ 'उस्ताद' होता है। वह बड़ा विद्वान था। भारत में रह कर उसने संस्कृत पढ़ी और हिन्दू दर्शन और दूसरे शास्त्रों का अध्ययन किया। इसी अध्ययन के आधार पर उसने 'तहकीक-ए-हिन्द' ( भारत की खोज ) नामक पुस्तक रची इसमें हिन्दुओं के इतिहास चरित्र, आचार- व्यवहार, परम्पराओं और वैज्ञानिक ज्ञान का विशद वर्णन किया गया है। इसमें मुसलमानों के आक्रमण के पहले के भारतीय इतिहास और संस्कृति का प्रामाणिक और अमूल्य विवरण मिलता है। उसकी अनेक पुस्तकें अप्राप्य हैं, लेकिन जो मिलता है उसमें सचाऊ द्वारा अंग्रेजी भाषा में अनुदित 'दि कानोलाजी आफ एंसेण्ट नेशन्स' (पुरानी कौमों का इतिहास ) उसकी विद्वत्ता को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है।

अलमसूदी
एक अरब यात्री, जिसने ९१५ ई. में प्रतिहार राजा महिपाल प्रथम के राज्यकाल में उसके राज्य की यात्रा की। अलमसूदी ने उसके घोड़ों और ऊँटों का विवरण दिया है।


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