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Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

अथर्वाङ्गिरसः
परवर्ती ब्राह्मणों के अनेक परिच्छेदों में अथर्ववेद के इस सामूहिक नाम का उल्लेख है। एक स्थान पर स्वयं अथर्ववेद में भी इसका उल्लेख है, जबकि सूत्र काल के पहले 'अथर्ववेद' शब्द नहीं पाया जाता। ब्लूम-फील्ड के मत से यह समास दो तत्त्वों का निरूपण करता है, जो अथर्ववेद की विषयवस्तु के निर्माणकर्ता हैं। इसका प्रथम भाग प्राणियों के शुभ कार्यों (भेषजानि) का निरूपण करता है, इसके विपरीत दूसरा जादू-टोना (यातु वा अभिचार) का। इस मत की पुष्टि दो पौराणिक व्यक्तियों 'घोर-आङ्गिरस' एवं 'भिषक्-आङ्गिरस' के नाम से एवं पञ्चविश ब्राह्मणं में उद्धृत 'अथर्वाणः' तथा 'आथर्वणानि' के भेषज के साथ सम्बन्ध निर्देश से होती है। अथर्ववेद में भेषज का तात्पर्य अथर्ववेद के अर्थ में एवं शतपथब्राह्मण में यातु का तात्पर्य अथर्ववेद लगाया गया है।

अथर्वोपनिषद्
इसका बहुभाषित नाम 'याज्ञिकी' तथा नारायणीयोपनिषद्' है। 'अथर्वोपनिषद्' नाम द्रविड देश, आन्ध्र प्रदेश, कर्णाटक आदि में प्रचलित है। तैत्तिरीय-आरण्यक का सातवाँ, आठवाँ, नवाँ एवं दसवाँ प्रपाठक ब्रह्मविद्या सम्बन्धी होने से 'उपनिषद्' कहलाता है। यह उपनिषद् दसवाँ प्रपाठक है। सायणाचार्य ने इस पर भाष्य लिखा है एवं विज्ञानात्मा ने एक स्वतन्त्र वृत्ति और 'वेद-शिरोभूषण' नाम की एक अलग व्याख्या लिखी है। याज्ञिकी 'नारायणीय-उपनिषद्' में ब्रह्मतत्त्व का विवरण है। शङ्कराचार्य ने भी इसका भाष्य लिखा है।

अदारिद्रय षष्ठी
स्कन्द पुराण के अनुसार एक वर्ष तक प्रत्येक षष्ठी को यह व्रत करना चाहिए। इसमें भास्कर (सूर्य) की पूजा की जाती है। व्रती को तेल एवं लवण त्यागना चाहिए तथा ब्राह्मण को खीर (दूध और चीनी में पका चावल) खिलाना चाहिए। इस व्रत से परिवार में न कोई दरिद्र उत्पन्न होता है और न दरिद्र बनता है।

अदिति
वरुण, मित्र एवं अर्यमा की माता अथवा देवमाता। इसको स्वाधीनता तथा निरपराधिता का स्वरूप कहा गया है। बारह आदित्य अदिति के पुत्र माने जाते हैं। अदिति का भौतिक आधार असीमित क्षितिज है जिसके और आकाश के बीच में बारहों आदित्य भ्रमण करते हैं। पुराणों में इस कल्पना का विस्तार से वर्णन है। कश्यप की दो पत्नियाँ थीं-अदिति और दिति। अदिति से देव और दिति से दैत्य उत्पन्न हुए। ऋग्वेद (1.89.10) के अनुसार अदिति निस्सीम है। वही आकाश, वही वायु, वही माता, वही पिता, वही सर्वदेवता, वही सर्व मानव, वही भूत, वर्तमान और भविष्य है।

अदितिकुण्ड तथा सूर्यकुण्ड
कुरुक्षेत्र से पाँच मील दूर दिल्ली-अम्बाला रेलवे लाइन पर अमीनग्राम के पूर्व में दो सरोवर हैं, जिनमें एक तो सूखा रहता है परन्तु दूसरे में जल भरा रहता है। इनमें पहला अदितिकुण्ड और दूसरा सूर्यकुण्‍ड कहलाता है। यहीं पर महर्षि कश्यप तथा उनकी पत्नी अदिति का आश्रम था और माता अदिति ने वामन भगवान् को पुत्र रूप मे पाया था।

अदुःखनवमी
सबके लिए, विशेषतः स्त्रियों के लिए, भाद्र शुक्ला नवमी को इस व्रत का विधान है। इसमें पार्वती का पूजन किया जाता है। दे. व्रतराज, 332, 337; स्क. पु.। बंगाली महिलाँ अवैधव्य के लिए इस व्रत का अनुष्ठान करती हैं।

अदृष्ट
ईश्‍वर की इच्‍छा, जो प्रत्‍येक आत्‍मा में गुप्‍त रूप से विराजमान है, अदृष्‍ट कहलाती है। भाग्‍य को भी अदृष्‍ट कहते हैं। मीमांसा दर्शन को छोड़ अन्‍य सभी हिंदू दर्शन प्रलय में आस्‍था रखते हैं। न्‍याय-वैशेषिक मतानुसार ईश्‍वर प्राणियों को विश्राम देने के लिए प्रलय उपस्थित करता है। आत्‍मा में, शरीर, ज्ञान एवं सभी तत्‍त्‍वों में विराजमान अदृष्‍ट शक्ति उस काल में काम करना बंद कर देती है ((शक्ति-प्रतिबंध)। फलत: कोई नया शरीर, ज्ञान अथवा अन्‍य सृष्टि नहीं होती। फिर प्रलय करन के लिए अदृष्‍ट सभी परमाणुओं में पार्थक्‍य उत्‍पन्‍न करता है तथा सभी स्‍थूल पदार्थ इस क्रिया से परमाणुओं के रूप में आ जाते हैं। इस प्रकार अलग हुए परमाणु तथा आत्‍मा अपने किए हुए धर्म, अधर्म तथा संस्‍कार के साथ निष्‍प्राण लटके रहते हैं।
पुनः सृष्टि के समय ईश्वर की इच्छा से फिर अदृष्ट लटके हुए परमाणुओं एवं आत्माओं में आन्दोलन उत्पन्न करता है। वे फिर संगठित होकर अपने किये हुए धर्म, अधर्म एवं संस्कारानुसार नया शरीर तथा रूप धारण करते हैं।

अदेश (आदेश)
इस शब्द का सम्बन्ध केशवचन्द्र सेन तथा ब्रह्मसमाज से है। केशवचन्द्र ब्रह्मसमाज के प्रमुख नेता थे, किन्तु तीन कारणों से समाज ने उनका विरोध किया- उनकी अहम्मन्यता, आदेश का सिद्धान्त एवं स्त्रियों को पूर्ण स्वाधीनता देने की नीति। उनके आदेश का अर्थ था ईश्वर का सीधा आदेश, जो उन्हें जीवन की विभिन्‍न घड़ियों में ईश्वर से विशेष रूप में प्राप्त होता था। अपने अनुयायियों द्वारा इन आदेशों का पालन वे आवश्यक समझते थे।

अद्भुत
शुभाशुभ शकुन का एक प्रकार। वैदिक विचार-प्रणाली में छः शुभारम्भ शकुन अथवा लक्षण उल्लिखित हैं-(1) अशुभ रूप तथा पशुओं के कृत्य, (2) अद्भुत्, अर्थात् प्रकृति के सामान्य रूप के साथ विभिन्न दूसरे उग्र रूप, (3) भौतिक चिह्न, (लक्षण), (4) ज्योतिषिक प्रकृति सम्बन्धी, (5) यज्ञ की घटनाओं से सम्बन्ध रखने वाले तथा (6) स्वप्न।

अद्भुत गीता
एक संस्कृत ग्रन्थ का नाम, जो सिक्ख गुरू नानकदेव (1469-1539) द्वारा रचित माना जाता है।


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