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Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

व्यञ्जन वर्णों के टवर्ग का द्वितीय अक्षर। कामधेनुतन्त्र में इसका स्वरूप इस प्रकार बतलाया गया है :
ठकारं चञ्चलापाङ्गि कुण्डली मोक्षरूपिणी। पीतविद्युल्लताकारं सदा त्रिगुण संयुतम्।। पञ्चदेवात्मकं वर्णं पञ्चप्राणमयं सदा। त्रिबिन्दुसहितं वर्णं त्रिशक्तिसहितं सदा।।
तन्त्रशास्त्र में इसके अनेक नामों का उल्लेख है :
ठः शून्यों मञ्जरी बीजः पाणिनी लाङ्गली क्षया। वनगो नन्दजो जिह्वा सुनञ्जो घूर्णकः सुधा। वर्तुलः कुण्डलो वह्निरमृतं चन्द्रमण्डलः। दक्षजानूपादञ्च देवभक्षो बृहद्मुनिः।। एकपादो विभूतिश्च ललाटं सर्वमित्रकः। वृषघ्‍नो नलिनी विष्णुर्मेशो ग्रामणी शशी।।

यह शिव का एक विरुद है। एकाक्षरकोश में इसका अर्थ 'महाध्वनि' तथा 'चन्द्रमण्डल' है। दोनों ही शिव के प्रतीक हैं।
ठकारं चञ्चलापाङ्गि कुण्डली मोक्षरूपिणी। पीतविद्युल्लताकारं सदा त्रिगुण संयुतम्।। पञ्चदेवात्मकं वर्णं पञ्चप्राणमयं सदा। त्रिबिन्दुसहितं वर्ण त्रिशक्तिसहितं सदा।।

ठक्कुर
देवता का पर्याय। ब्राह्मणों (भूसुरों) के लिए भी इसका प्रयोग होता है। अनन्तसंहिता में इसी अर्थ में यह प्रयुक्त है :
श्रीदामनामा गोपालः श्रीमान् सुन्दरठक्कुरः।'
प्रायः विष्णु के अवतार की देवमूर्ति को ठक्कुर कहते हैं। उच्च वर्ग के क्षत्रिय आदि की प्राकृत उपाधि 'ठाकुर' भी इसी से निकली है। किसी भी प्रसिद्ध व्यक्ति को ठक्कुर या ठाकुर कहा जा सकता है, जैसे 'काव्यप्रदीप' के प्रख्यात लेखक को गोविन्द ठक्कुर कहा गया है, बंगाल के देवेन्द्रनाथ, रवीन्द्रनाथ आदि महानुभाव ठाकुर कहे जाते थे।


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