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Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

चक्र
(1) विष्णु के चार आयुधों--शङ्ख चक्र, गदा और पद्म में से एक आयुध। यह उनका मुख्य अस्त्र है। इसका नाम सुदर्शन है। चक्रनेमि (पहिया का घेरा) के मूल अर्थ में यह अव गति अथवा प्रगति का प्रतीक है। दर्शन में भवचक्र अथवा जन्ममरणचक्र के प्रतीक के रूप में भी इसका प्रयोग होता है।
(2) शाक्तमत में देवी की चार प्रकार की आऱाधना होती है। प्रथम मन्दिर में देवी की जनपूजा, द्वितीय में चक्रपूजा, तृतीय में साधना एवं चतुर्थ में अभिचार (जादू) द्वारा, जैसा कि तन्त्रों में बताया गया है।
चक्रपूजा एक महत्त्वपूर्ण तान्त्रिक साधना है। इसे आजकल वामाचार कहते हैं। बराबर संख्या के पुरुष एवं स्त्रियाँ जो किसी भी जाति के हों अथवा समीपी सम्बन्धी हों, यथा पति पत्नी, माँ, बहिन, भाई-एक गुप्त स्थान में मिलते तथा वृत्ताकार बैठते हैं। देवी की प्रतिमा या यन्त्र सामने रखा जाता है एवं पञ्चमकार --मदिरा, मांस, मत्स्य, मुद्रा एवं मैथुन का सेवन होता है।

चक्रधर
(1) विष्णु का एक पर्याय है। वे चक्र धारण करते हैं, अतः उनका यह नाम पड़ा।
(2) एक सन्त का नाम। इनका जीवनकाल तेरहवीं शती का मध्य है। ये ही मानभाऊ सम्प्रदाय के संस्थापक थे। इनके अनुयायी यादवराजा रामचन्द्र (1271-1309 ई०) के समकालीन नागदेव भट्ट एवं ज्ञानेश्वरी के रचयिता ज्ञानेश्वर हुए। इनका परवर्ती इतिहास अज्ञात है। इनका वैष्णवमत बड़ा उदार था। इसमें जाति अथवा वर्णभेद नहीं माना जाता था। इसलिए रूढ़िवादियों द्वारा इस मत का तीव्र विरोध हुआ। चक्रधर करहाद ब्राह्मण थे तथा मानभाऊ (सं० महानुभाव) सम्प्रदाय वाले इन्हें अपने देवता दत्तात्रेय का अवतार मानते हैं।

चक्रधरचरित
यह मानभाऊ (सं० महानुभाव) सम्प्रदाय का एक ग्रन्थ है जो मराठी भाषा में लिखा गया है। सम्प्रदाय के संस्थापक के जीवनचरित का विवरण इसमें पाया जाता है।

चक्रपूजा
दे० 'चक्र'।

चक्रवर्ती
(1) जिस राजा का (रथ) चक्र समुद्रपर्यन्त चलता था, उसको चक्रवर्ती कहते थे। उसको अश्वमेध अथवा राजसूय यज्ञ करने का अधिकार होता था। भारत के प्राचीन साहित्य में ऐसे राजाओं की कई सूचियाँ पायी जाती हैं। मान्धाता और ययाति प्रथम चक्रवर्तियों में से थे। समस्त भारत को एक शासनसूत्र में बाँधना इनका प्रमुख आदर्श होता था।
(2) शास्त्रों में प्रकाण्ड योग्यता प्राप्त करने पर विद्वानों को भी यह उपाधि दी जाती थी।

चक्रवाक्
चकवा नामक एक पक्षी। यह नाम ध्वन्यात्मक है। इसका उल्लेख ऋग्वेद एवं यजुर्वेद में अश्वमेध के बलिपशुओं की तालिका में आता है। अथर्ववेद एवं परवर्त्ती साहित्य में सच्चे दाम्पत्य का उदाहरण इससे दिया गया है।

चक्रायुध (चक्री)
विष्णु का पर्याय। इसका अर्थ है 'चक्र है आयुध (अस्त्र) जिसका।' मूर्तिकला में विष्णु के आयुधों का आयुधपुरुष के रूप में अंकन हुआ है।

चक्रोल्लास
आचार्य रामानुज कृत एक ग्रन्थ। विशिष्टाद्वैत सम्प्रदाय में इसका बड़ा आदर है।

चक्षुर्व्रत
नेत्रव्रत के समान इस व्रत में चैत्र शुक्ल द्वितीया को अश्विनीकुमारों (देवताओं के वैद्य) की पूजा की जाती है, एक वर्ष तक अथवा बारह वर्ष तक। उस दिन व्रती को दधि अथवा घृत का आहार करना चाहिए। इस व्रत के आचरण से व्रती के नेत्र अच्छे रहते हैं और बारह वर्ष तक व्रत करने से वह राजयोगी बन जाता है।

चण्डमारुत
श्रीवैष्णव संप्रदाय का एक तार्किक ग्रन्थ, जिसके रचयिता चण्डमारुताचार्य थे। यह ग्रन्थ 'शतदूषणी' नामक ग्रन्थ का व्याख्यान है। चण्डमारुताचार्य को दोद्दयाचार्य रामानुजदास भी कहते हैं।


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