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Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

तक्षक वैशालेय
तक्षक वैशालेय (विशाला का वंशज) अप्रसिद्ध ऋत्विज् है, जिसे अथर्ववेद (7.10, 29) विराज का पुत्र कहा गया है। पञ्चविंश ब्राह्मण वर्णित सर्पयज्ञ में इसे ब्राह्मणाच्छंसी पुरोहित कहा गया है।

तक्षशिला
बृहत्तर भारत का एक प्राचीन और महत्त्वपूर्ण विद्या केन्द्र तथा गन्धार प्रान्त की राजधानी। रामायण में इसे भरत द्वारा राजकुमार तक्ष के नाम पर स्थापित बताया गया है, जो यहाँ का शासक नियुक्त किया गया था। जनमेजय का सर्पयज्ञ इसी स्थान पर हुआ था (महाभारत 1.3.20)। महारत अथवा रामायण में इसके विद्याकेन्द्र होने की चर्चा नहीं है, किन्तु ई० पू० सप्तम शताब्दी में यह स्थान विद्यापीठ के रूप में पूर्ण रूप से प्रसिद्ध हो चुका था तथा राजगृह, काशी एवं मिथिला के विद्वानों के आकर्षण का केन्द्र बन गया था। सिकन्दर के आक्रमण के समय यह विद्यापीठ अपने दार्शनिको के लिए प्रसिद्ध था।
कोसल के राजा प्रसेनजिन् के पुत्र तथा बिम्बिसार के राजवैद्य जीवक ने तक्षशिला में ही शिक्षा पायी थी। कुरु तथा कोसलराज्य निश्चित सख्या में यहाँ प्रति वर्ष छात्रों को भेजते थे। तक्षशिला के एक धनुःशास्त्र के विद्यालय में भारत के विभिन्न भागों से सैकड़ों राजकुमार युद्धविद्या सीखने आते थे। पाणिनि भी इसी विद्यालय के छात्र रहे होंगे। जातकों में यहाँ पढ़ाये जाने वाले विषयों में वेदत्रयी एवं अठारह कलाओं एवं शिल्पों का वर्णन मिलता है। सातवीं शती में जब ह्वेनसाँग इधर भ्रमण करने आया तब इसका गौरव समाप्तप्राय था। फाहियान को भी यहाँ कोई शैक्षणिक महत्त्व की बात नहीं प्राप्त हुई थी। वास्तव में इसकी शिक्षा विषयक चर्चा मौर्यकाल के बाद नहीं सुनी जाती। सम्भवतः बर्बर विदेशियों के आक्रमणों ने इसे नष्ट कर दिया, संरक्षण देना तो दूर की बात थी।

तंजौर
कर्नाटक प्रदेश में कावेरी नदी के तट पर बसा हुआ एक सांस्कृतिक नगर। चोलवंश के राजराजेश्वर नामक नरेश ने यहाँ बृहदीश्वर नाम से भगवान् शंकर के भव्य मन्दिर का निर्माण कराया था। इसकी स्थापत्य कला बहुत प्रशंसनीय है। मन्दिर का शिखर 200 फुट ऊँचा है और नन्दी की मूर्ति 16 फुट लम्बी, 13 फुट ऊँची तथा 7 फुट मोटी एक ही पत्थर की बनी है। इसका शिल्प कौशल देखने के लिए विदेश के यात्री भी आते हैं। तंजौर का दूसरा तीर्थ अमृतवापिका सरसी है। पुराणों के अनुसार यह पराशरक्षेत्र है। पूर्वकाल में यह तंजन नामक राक्षस का निवास स्थान था जिसको ऋषियों ने तीर्थ में परिवर्तित कर दिया।

तत्व
किसी वस्तु का निश्चित अस्तित्व या आन्तरिक भाव। सूक्ष्म अन्तरात्मा से लेकर मानव और भौतिक सम्बन्धों को सुव्यवस्थित करने वाले नियमों तक के लिए इसका प्रयोग होता है। सांख्य के अनुसार प्रकृति के विकास तथा पुरुष को लेकर छब्बीस तत्त्व हैं। त्रिक सिद्धान्त के अनुसार छत्तीस तत्त्व हैं, जिनका स्वरूप उस समय प्रकट होता है जब शिव की चिच्छक्ति के विलास से प्रेरित होकर विश्व की सृष्टि होती है। इस प्रक्रिया को 'आभास' भी कहते हैं।

ततत्वकौमुदी
आचार्य वाचस्पति मिश्र ने सांख्यकारिका पर तत्वकौमुदी नामक टीका की रचना की है।

तत्वकौमुदीव्याख्या
चौदहवी शती वि० के उत्तरार्ध में भारती यति ने वाचस्पतिमिश्ररचित 'सांख्यतत्त्वकौमुदी' पर 'तत्वकौमुदीव्याख्या' नामक टीका लिखी है।

तत्वकौस्तुभ
भट्टोजि दीक्षितकृत 'तत्वकौस्तुभ' नामक वेदान्त विषयक ग्रन्थ है। इसमें द्वैतवाद का खण्डन किया गया है।

तत्वचिन्तामणि
नव्य न्याय पर मैथिल विद्वान् गङ्गेशोपाध्याय रचित यह अति प्रसिद्ध ग्रन्थ है। अनेक आचार्यों ने इस पर टीका व भाष्य लिखे हैं।

तत्वचिन्तामणिव्याख्या
वासुदेव सार्वभौम (1533 वि०) ने गङ्गेशोपाध्याय रचित प्रसिद्ध न्यायग्रन्थ 'तत्वचिन्तामणि' पर यह व्याख्या लिखी है।

तत्वटीका
वेदान्ताचार्य वेङ्कटनाथ (1325 वि०) ने तत्वटीका नामक ग्रन्त तमिल भाषा में लिखा। भगवद्भक्ति इसमें कूट-कूटकर भरी है।


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