एक आनद्ध वर्ग का वाद्य, जो देवमन्दिरों में विशेष अवसरों पर बजाने के लिए रखा रहता है : "ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।"
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ढुण्ढिराजपूजा
माघ शुक्ल चतुर्थी को इस व्रत का अनुष्ठान करना चाहिए। व्रती को तिल के लड्डुओं का नैवेद्य गणेशजी को अर्पण करना चाहिए तथा बाद में प्रसाद रूप में वही ग्रहण करना चाहिए। तिल तथा घृत की आहुतियों से होम का विधान है। 'ढुण्ढि' की व्युत्पत्ति के लिए दे० स्कन्दपुराण का काशीखण्ड, 57.32 तथा पुरुषार्थचि०, 95।
ढौकन
किसी देवता के अर्पण के लिए प्रस्तुत नैवेद्य या उपहार को 'ढौकन' कहते हैं।