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Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

स्वरवर्ण का पञ्चम अक्षर। कामधेनुतन्त्र में इसका तान्त्रिक महत्त्व निम्नांकित है :
उकारः परमेशानि अधः कुण्डली स्वयम्। पीतचम्पकसंकाशं पञ्चदेवमयं सदा।। पञ्चप्राणमयं देवि चतुर्व्‍वर्गप्रदायकम्।।
[हे देवी! उकार (उ अक्षर) स्वयं अधः कुण्डली है। पीले चम्पक के समान इसका रंग है। सर्वदा पञ्चदेवमय है। पञ्चप्राणमय तथा चतुर्वर्ग (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) का देनेवाला है।] वर्णोद्धारतन्त्र में इसके नाम इस प्रकार हैं :
उः शङ्करो वर्तुलाक्षी भूतः कल्याणवाचकः। अमरेशो दक्षः कर्णः षड्वक्त्रो मोहनः शिवः।। उग्रः प्रभुर्धृतिर्विष्णुर्विश्वकर्मा महेश्वरः। शत्रुघ्नश्‍चरिका पुष्टिः पञ्चमी वह्निवासिनी।। कामघ्नः कामना चेशो मोहिनी विघ्नह्यन्मही। उढसूः कुटिला श्रोत्रं पारदीपो वृषो हरः।।

उक्थ
वेदमन्त्रात्मक स्तोत्र; यज्ञ का एक भेद; सामगान का एक प्रकार, सामवेद : 'विप्रा उक्थेभिः कवयो गृणन्ति।'
[बुद्धिमान् ब्राह्मण सामवेद के द्वारा स्तुति करते हैं।] अथ योसावन्तरक्षिणि पुरुषो दृश्यते सैवर्क् तत्साम तद् यजुः तद् उक्थं तद् ब्रह्म। (छान्दोग्योपनिषद्)
[यह जो आँख के भीतर पुरुष (आकार) दिखाई देता है वही ऋग्वेद, वही सामवेद, वही स्तोत्र (सामवेद का सूक्त), वही यजुर्वेद और वही ब्रह्म है।]

उखा
यज्ञों से सम्बन्धित हविष्य राँधने का बड़ा पात्र। यह मिट्टी का बना होता था (मृन्मयी)। दे. वाजसनेयी संहिता, 11.59, तैत्तरीय संहिता, 4.1.54।

उग्र
(1) शंकर का एक नाम; एकादश रुद्रों में से एक। वायुपुराण के अनुसार यह वायुमूर्ति है। (2) क्षत्रिय के द्वारा शूद्र स्त्री में उत्पन्न एक वर्णसंकर जाति। इस सम्बन्ध में मनु का कथन है :
क्षत्रियात् शूद्रकन्यायां क्रूराचारविहारवान्। क्षत्रशूद्रवपुर्जन्तुरुग्रो नाम प्रजायते।।
[क्षत्रिय और शूद्रकन्या से उत्पन्न क्रूर-आचार-विहारवान व्यक्ति उग्र कहा जाता है।] इसका कार्य बिलों में रहने वाले गोधा आदि को मारना अथवा पकड़ना है।

उग्रचण्डा
दुर्गा देवी का एक विरुद। महिषासुर के प्रति भगवती का कथन है :
उग्रचण्डेति या मूर्तिर्भद्रकाली ह्यहं पुनः। यया मूर्त्या त्वां हनिष्ये सा दुर्गेति प्रकीर्तिता।। एतासु मूर्तिषु सदा पादलग्नो नृणां भवान्। पूज्यो भविष्यसि त्वं वै देवानामपि रक्षसाम्।।
[उग्रचण्डा नाम से प्रसिद्ध जो मूर्ति है वह मैं भद्रकाली हूँ। जिस मूर्ति से मैं तुम्हें मारूँगी वह दुर्गा नाम से विख्यात है। इन मूर्तियों में सदा मेरे पाँव के नीचे दबे हुए तुम मनुष्यों, राक्षसों तथा देवताओं के द्वारा पूजित, होगे।]

उग्रतारा
(1) दुर्गा देवी का एक स्वरूप। जो उग्र भय से भक्तों की रक्षा करती है उसे उग्रतारा कहते हैं।

उग्रतारा
(2) देवी का एक प्रसिद्ध पीठ। यह सहरसा स्टोशन (दरभंगा) के पास वनगामहिसी नामक गाँव के समीप है। कुछ लोग इसे 'शक्तिपीठ' मानते हैं। सतीदेह का नेत्राभाग यहाँ गिरा था। यहाँ एक यन्त्र पर तारा, एकजटा तथा नीलसरस्वती की मूर्तियाँ अङ्कित हैं। इनके अतिरिक्त दुर्गा, काली, त्रिपुरसुन्दरी, तारकेश्वर तथा तारानाथ की भी मूर्तियाँ हैं।

उग्र नक्षत्र
तीनों पूर्वा (पूर्वाषाढ़, पूर्वाभाद्रपदा और पूर्वाफाल्गुनी), मघा तथा भरणी उग्र नक्षत्र कहलाते हैं। दे० वृहत्संहिता (97-98)। इनकी शान्ति के लिए धार्मिक कृत्यों का विधान है।

उग्रशेखरा
गङ्गा का एक पर्याय। (उग्र अर्थात शंकर के शेखर अर्थात् मस्तक पर गंगा रहती है।)

उग्रश्रवा
महाभारत का प्रवचन करने वाले एक ऋषि, जो सूत नामक निम्न जाति में उत्पन्न हुए थे।


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