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Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

स्वरवर्ण का एकादश अक्षर। कामधेनुतन्त्र में इसका धार्मिक माहात्म्य वर्णित है :
एकारं परमं दिव्यं ब्रह्मविष्णुशिवात्मकम्। रञ्जिनी कुसुमप्रख्यं पञ्चदेवमयं सदा।। पञ्चप्राणात्मकं वर्णं तथा बिन्दुप्रयात्पकम्। चतुर्वर्गप्रदं देवि स्वयं परमकुण्डली।। तन्त्रशास्त्र में एकार के कई नाम दिये हुए हैं:, एकारो वास्तवः शक्तिर्झिण्टी सोष्ठो भगं मरुत्। सूक्ष्मा भूतोर्जकेशी च ज्योत्सना श्रद्धा प्रमर्दनः।। भयं ज्ञानं कृशा धीरा जङ्घा सर्वसमुद्भवः। वह्निर्विष्णुर्भगवती कुण्डली मोहिनी रुरुः।। योषिदाधारशक्तिश्च त्रिकोणा ईशसंज्ञकः। सन्धिरेकादशी भद्रा पद्मनाभः कुलाचलः.।

एककुण्डल
जिसके कान में एक ही कुण्डल है; बलराम। मेदिनीकोश के अनुसार यह कुबेर का भी पर्याय है।

एकचक्र
एक नगरी, इसके पर्याय हैं --हरिगृह, शुम्भपुरी। सूर्य का रथ, असहायचारी। ऋग्वेद (1.164.2) में कथन है :
सप्त युञ्जन्ति रथमेकचक्रमेकोऽश्वो वहति सप्तनामा। त्रिनाभिचक्रमजरमनर्वं यत्रेमा विश्वा भुवनाधि तस्थुः।।
एक राजा। हरिवंश (3.84) में कहा गया है :
एकचक्रो महाबाहुमहाबाहुस्‍तारकश्‍च महाबल:। इस नाम का एक असुर भी था: एकचक्र इति ख्यात आसीद् यस्तु महासुरः। प्रतिविन्ध्य इति ख्यातो बभूव प्रथितः क्षितौ।।
[जो एकचक्र नाम का महान् असुर था, वह 'प्रति विन्ध्य' नाम से पृथ्वी में विख्यात हुआ।]

एकजन्मा
शूद्र; द्विजातिभिन्न; जिसका दूसरा जन्म नहीं हो। जब मनुष्य का दूसरा जन्म (उपनयन संस्कार) होता है तब वह द्विज अर्थात् द्विजन्मा होता है। शूद्र का यह संस्कार नहीं होता।

एकतीर्थी
जिसका समान तीर्थ (गुरू) हो, सतीर्थ्य, सहपाठी, गुरुभाई। धर्मशास्त्र में एकतीर्थी होने के अधिकारों और दायित्वों का वर्णन है।

एकदन्त
जिसके एक दाँत हो, गणेश। परशुराम के द्वारा इनके उखाड़े गये दाँत की कथा ब्रह्मवैवर्तपुराण में इस प्रकार है-- एक समय एकान्त में बैठे हुए शिव-पार्वती के द्वारपाल गणेशजी थे। उसी समय उनके दर्शन के लिए परशुराम आये। शिवदर्शन के लिए लालायित होने पर भी गणशजी ने उन्हें भीतर नहीं जाने दिया। इस पर गणेशजी के साथ उनका तुमुल युद्ध हुआ। परशुराम के द्वारा फेंके गये परशु से गणेशजी का एक दाँत टूट गया। उस समय से गणेशजी एकदन्त कहलाने लगे।

एकदण्डी
शङ्कराचार्य द्वारा स्थापित दसनामी संन्यासियों में से प्रथम तीन (तीर्थ आश्रम एवं सरस्वती) विशेष सम्मान्य माने जाते हैं। इनमें केवल ब्राह्मण ही सम्मिलित हो सकते हैं। शेष सात वर्गों में अन्य वर्णों के लोग भी आ सकते हैं, किन्तु दण्ड धारण करने के अधिकारी ब्राह्मण ही हैं। इसका दीक्षाव्रत इतना कठिन होता है कि बहुत से लोग दण्ड के बिना ही रहना पसन्द करते हैं। इन्हीं संन्यासियों को 'एकदण्डी' कहते हैं। इसके विरुद्ध श्रीवैष्णव संन्यासी (जिनमें केवल ब्राह्मण ही सम्मिलित होते हैं) त्रिदण्ड धारण करते हैं। दोनों सम्प्रदायों में अन्तर स्पष्ट करने के लिए इन्हें 'एकदण्डी' तथा 'त्रिदण्डी' नामों से पुकारते हैं।

एकदंष्ट्र
दे० 'एकदन्त'।

एकनाथ
मध्ययुगीन भारतीय सन्तों में एकनाथ का नाम बहुत प्रसिद्ध है। महाराष्ट्रीय उच्च भक्तों में नामदेव के पश्चात् दूसरा नाम एकनाथ का ही आता है। इनकी मृत्यु 1608 ई० में हुई। ये वर्ण से ब्राह्मण थे तथा पैठन में रहते थे। इन्होंने जातिप्रथा के विरुद्ध आवाज उठायी तथा अनुपम साहस के कारण कष्ट भी सहा। इनकी प्रसिद्धि भागवतपुराण के मराठी कविता में अनुवाद के कारण हुई। इसके कुछ भाग पंढरपुर के मन्दिर में संकीर्तन के समय गाये जाते हैं। इन्होंने 'हरिपद' नामक छब्बीस अभंगों का एक संग्रह भी रचा। दार्शनिक दृष्टि से ये अद्वैतवादी थे।

एकनाथी भागवत
एकनाथजी द्वारा भागवतपुराण का मराठी भाषा में रचा गया छन्दोबद्ध रूपान्तर। यह अपनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति, रहस्य भेदन तथा हृदयग्राहकता के लिए प्रसिद्ध है।


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