साहित्य में नीर-क्षीर विवेक का और धर्म-दर्शन में परमात्म तत्त्व का प्रतीक पक्षी है : योग और तन्त्र में इस प्रतीक का बहुत उपयोग हुआ है। हंस का ध्यान इस प्रकार बतलाया गया है।
पुरुष सूक्त के मंत्रों का उच्चारण करते हुए स्नान करना चाहिए। उन्हीं से तर्पण तथा जप करना चाहिए। अष्टदल कमल के मध्य भाग में पुष्पादिक से भगवान् जनार्दन की, जिन्हें हंस भी कहा जाता है, पूजा करनी चाहिए। पूजन में ऋग्वेद के दशम मण्डल के 90 मंत्रों का उच्चारण किया जाय। पूजन के उपरान्त हवन विहित है। तदनन्तर एक गौ का दान करना चाहिए। एक वर्षपर्यन्त इस व्रत का अनुष्ठान विहित है। इससे व्रती की सम्पूर्ण मनःकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
हत्या
हनन के लिए निषिद्धप्राणियों को मारना। सामान्य रूप से जीव मात्र के मारने को हत्या कहा जाता है। हत्या पातक है। ब्रह्महत्या (मनुष्य वध) की गणना महापातकों में की गयी है।
[ब्रह्म हत्या, सुरापान; स्तेय (चोरी), गुरु पत्नी से समागम---ये महापातक हैं और इनके करने वालों के साथ संसर्ग भी महापातक है।]
हनुमान्
वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक वानर वीर। [वास्तव में वानर एक विशेष मानव जाति ही थी, जिसका धार्मिक लांछन (चिन्ह) वानर अथवा उसकी लाङ्गल थी। पुरा कथाओं में यही वानर (पशु) रूप में वर्णित है।] भगवान् राम को हनुमान् ऋष्यमूक पर्वत के पास मिले भक्त सिद्ध हुए। सीता का अन्वेषण करने के लिए ये लङ्का गए। राम के दौत्य का इन्होंने अद्भुत निर्वाह किया। राम-रावण युद्ध में भी इनका पराक्रम प्रसिद्ध है। रामावत वैष्णव धर्म के विकास के साथ हनुमान् का भी दैवीकरण हुआ। वे राम के पार्षद और पुनः पूज्य देव रूप में मान्य हो गये। धीरे धीरे हनुमत् अथवा मारुति पूजा का एक सम्प्रदाय ही बन गया है। 'हनुमत्कल्प' में इनके ध्यान और पूजा का विधान पाया जाता है।
हमुमज्जयन्ती
चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को इस उत्सव का आयोजन किया जाता है।
हम्पी
दक्षिण भारत के प्राचीन विजयनगर राज्य की राजघानी, अब हम्पी कही जाती है। इसके मध्य में विरूपाक्ष मन्दिर है। इसे लोग हम्पीश्वर कहते हैं।
हयग्रीव
महाभारत के अनुसार मधु-कैटभ दैत्यों द्वारा हरण किए हुए वेदों का उद्धार करने के लिए विष्णु ने हयग्रीव अवतार धारण किया। इनके विग्रह का वर्णन इस प्रकार है :
देवीभागवत (प्रथम स्कन्ध, पञ्चम अध्याय) में हयग्रीवक दूसरी कथा मिलती है। इसके अनुसार दैत्य का वध करने के लि ही विष्णु ने हयग्रीव का रूप धारण किया था। हेमचन्द्र ने इस कथा का समर्थन किया है। (विष्णुवध्य दैत्यविशेषः)। किन्तु एक दूसरी परम्परा के अनुसार जब कल्पान्त में ब्रह्मा सो रहे थे तब हयग्रीव नामक दैत्य ने वेद का हरण कर लिया। वेद का उद्धार करने के लिए विष्णु ने मत्स्यावतार धारण किया और उसका वध किया।
विद्या प्राप्ति के लिए वेदोद्धारक हयग्रीव भगवान् की उपासना विशेष चमत्कारकारिणी मानी गयी है।
हयपञ्चमी अथवा हयपूजाव्रत
चैत्र मास की पंचमी को इन्द्र का प्रसिद्ध अश्व, उच्चैःश्रवा समुद्र से आविर्भूत हुआ था। अतएव गन्धर्वों सहित (जैसे चित्ररथ, चित्रसेन जो वस्तुतः उच्चैःश्रवा के बन्धु-बान्धव ही हैं) उच्चैःश्रवा का संगीत, मिष्ठान्न, पोलिकाओं, दही, गुड़, दूध, चावल आदि से पूजन करना चाहिए। इसके फलस्वरूप शक्ति, दीर्घायु, स्वास्थ्य की प्राप्ति तथा युद्धों में सदा विजय होती है।
हर
शिव का एक नाम। इसका अर्थ है पापों तथा सांसारिक तापों का हरण करने वाला (हरित पापान् सांसारिकान् क्लेशाञ्च)।