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Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

व्यञ्जन वर्णों के तवर्ग का द्वितीय अक्षर। कामधेनुतन्त्र में इसका तान्त्रिक मतहत्त्व निम्नलिखित प्रकार से बताया गया है :
थकारं चञ्चलापाह्गि कुण्डलीमोक्षदायिनी। त्रिशक्तिसहितं वर्ण त्रिबिन्दुसहितं सदा।। पञ्चदेवमयं वर्णं पञ्चप्राणात्मकं सदा। अरुणादित्यसंकाशं थकारं प्रणमाम्यहम्।।
तन्त्रशास्त्र में इसके अनेक नाम बतलाये गये हैं :
थः स्थिरामी महाग्रन्थिर्ग्रन्थिग्राहो भयानकः। शिलो शिरसिजो दण्डी भद्रकाली शिलोच्चयः।। कृष्णो बुद्धिर्विकर्मा च दक्षनासाधिपोऽमरः। वरदा योगदा केशो वामजानुरसोऽनलः।। लोलौजज्जयिनी गुह्यः शरच्चन्द्रविदारकः।
इसके ध्यान की विधि निम्नांकित है :
नीलवर्णां त्रिनयनां षद्भुजां वरदां पराम्। पीतवस्त्रपरीधानां सदा सिद्धिप्रदायिनीम्।। एवं ध्यात्वा थकान्तु तन्मन्त्रं दशधा जपेत्। पञ्चदेवमयं वर्णं पञ्चप्राणमयं सदा।। तरुणादित्यसंकाशं थरारं प्रणमाम्यम्।।

थं
यह माङ्गलिक ध्वनि है (मेदिनी)। इसीलिए संगीत के ताल में इसका संकेत होता है। इसका तात्त्विक अर्थ है रक्षण। दे० एकाक्षरकोश।

मेदिनीकोश के अनुसार इसका अर्थ है 'पर्वत'। तन्त्र में यह भय से रक्षा करने वाला माना जाता है। कहीं-कहीं इसका अर्थ 'भयचिह्न' भी है। शब्दरत्नावली में इसका अर्थ 'भक्षण' भी दिया हुआ है।

थानेसर (स्थानण्वीश्वर) तीर्थ
यह तीर्थस्थान हरियाणा प्रदेश में स्थित है और थानेसर शहर से लगभग दो फर्लांग की दूरी पर अत्यन्त ही पवित्र सरोवर है। इसके तट पर स्थाण्वीश्वर (स्थाणु-शिव) का प्राचीन मन्दिर है। कहा जाता है कि एक बार इस सरोवर के कुछ जलबिन्दुओं के स्पर्श से ही महाराज वेन का कुष्ठ रोग दूर हो गया था। यह भी कहा जाता है कि महाभारतीय युद्ध में पाण्डवों ने पूजा से प्रसन्न शंकरजी से यहीं विजय का आशीर्वाद ग्रहण किया था। पुष्यभूति वंश के प्रसिद्ध राजा हर्षवर्द्धन तथा उसके पूर्वजों की यह राजधानी थी। प्राचीन काल से यह प्रसिद्ध शैव तीर्थ है।


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