logo
भारतवाणी
bharatavani  
logo
Knowledge through Indian Languages
Bharatavani

Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

धनत्रयोदशी
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी का एक नाम। व्यापारी लोग इस दिन वाणिज्य सामग्री को परिष्कृत, सुसज्जित कर धन के देवता की पूजा का त्रिदिनव्यापी उत्सव आरम्भ करते हैं, नये-पुराने आर्थिक वर्ष का लेखा जोखा तैयार किया जाता है और इस दिन नयी वस्तु का क्रय-विक्रय शुभ माना जाता है।
आयुर्वेद के देवता धन्वन्तरि का यह जन्मदिन है, इसलिए चिकित्सक वैद्य लोग आज धन्वन्तरिजयन्ती का उत्सव मनाते हैं।

धनपति
ये 'शङ्करदिग्विजय' (माधवाचार्यकृत) के एक भाष्यकार थे।

धनसंक्रान्तिव्रत
यह संक्रान्तिव्रत है, एक वर्ष पर्यन्त चलता है। इसके सूर्य देवता हैं। प्रतिमास जलपूर्ण कलश, जिसमें सुवर्णखण्ड पड़ा हो, निम्नांकित मन्त्र बोलते हुए दान करना चाहिए : 'हे सूर्य! प्रसीदतु भवान्।' व्रत के अन्त में एक सुवर्णकमल तथा धेनु दान में देनी चाहिए। विश्वास किया जाता है कि इससे व्रती जन्मजन्मान्तरों तक सुख, समृद्धि, सुस्वास्थ्य तथा दीर्घायु प्राप्त करता है।

धन्ना (धना)
वैष्णवाचार्य स्वामी रामानन्द के कुछ ऐसे भी शिष्य हो गये हैं, जिन्होंने किसी सम्प्रदाय की स्थापना या प्रचार नहीं किया, किन्तु कुछ पदरचना की है। धन्ना ऐसे ही उनके एक शिष्य थे।

धनावाप्तिव्रत
(1) श्रावण पूर्णिमा के पश्चात् प्रतिपदा को यह व्रत आरम्भ होता है, एक मास तक चलता है, नील कमलों से विष्णु तथा संकर्षण की पूजा होती है। साथ ही घृत तथा सुन्दर नैवेद्य भगवच्चरणों में अर्पित करना चाहिए। भाद्रपद मास की पूर्णिमा से तीन दिन पूर्व उपवास रखना चाहिए। व्रत के अन्त में एक गौ का दान विहित है।
(2) इसमें एक वर्ष पर्यन्त भगवान् वैश्रवण (कुबेर) की पूजा होती है। विश्वास है कि इसके परिणामस्वरूप अपार सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।

धनी धर्मदास
मध्ययुगीन सुधारवादी आन्दोलनों में जिन सन्त कवियों ने योगदान किया है, धनी धर्मदास उनमें से एक हैं। इनके रचे अनके पद पाये जाते हैं।

धन्यव्रत अथवा धन्यप्रतिपदाव्रत
मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा को इस व्रत का अनुष्ठान किया जाता है। उस दिन नक्त व्रत करना चाहिए तथा विष्णु भगवान् का (जिनका अग्नि नाम भी हैं) रात्रि को पूजन करना चाहिए। प्रतिमा के सम्मुख एक कुण्ड में हवन किया जाता है। तदनन्तर यावक तथा घृतमिश्रित खाद्य ग्रहण करना होता है। इसी प्रकार का आचरण कृष्ण पक्ष में भी करना चाहिए। चैत्र से आठ मास तक इसका अनुष्ठान होना चाहिए। व्रतान्त में अग्नि देव की सुवर्ण की प्रतिमा का दान किया जाता है। इस व्रत से दुर्भाग्यशाली व्यक्ति भी सुखी, धन-धान्यादि से समृद्ध तथा पापमुक्त हो जाता है।

धनुर्वेद
मधुसूदन सरस्वती ने अपने ग्रन्थ 'प्रस्थानभेद' में लिखा है कि यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद है, इसमें चार पाद हैं, यह विश्वामित्र का बनाया हुआ है। पहला दीक्षा पाद है, दूसरा संग्रह पाद है, तीसरा सिद्ध पाद है और चौथा प्रयोग पाद। पहले पाद में धनुष का लक्षण और अधिकारी का निरूपण है। जान पड़ता है कि यहाँ धनुष शब्द का अभिप्राय चारों प्रकार के आयुधों से हैं, क्योंकि आगे चलकर आय़ुध चार प्रकार के कहे गये हैं : (1) मुक्त, (2) अमुक्त, (3) मुक्तामुक्त, (4) यन्त्रमुक्त। मुक्त आयुध चक्रादि हैं। अमुक्त खड्गादि हैं। मुक्तामुक्त शल्य और उस तरह के अन्य हथियार हैं। यन्त्रमुक्त बाण आदि हैं। मुक्त को अस्त्र कहते हैं और अमुक्त को शस्त्र। ब्राह्म, वैष्णव, पाशुपत, प्राजापत्य और आग्नेय आदि भेद से नाना प्रकार के आयुध हैं। साधिदैवत और समन्त्र चतुर्विध आयुधों पर जिनका अधिकार है वे क्षत्रिय कुमार होते हैं और उनके अनुवर्ती जो चार प्रकार के होते हैं वे पदाति, रथी, गजारोही और अश्वारोही हैं। इन सब बातों के अतिरिक्त दीक्षा, अभिषेक, शकुन और मङ्गल आदि सभी का प्रथम पाद में वर्णन किया गया है।
आचार्य का लक्षण और सब तरह के अस्त्र-शस्त्रादि के विषय का संग्रह द्वितीय पाद में दिखाया गया है। तीसरे पाद में गुरु और विशेष-विशेष साम्प्रदायिक शस्त्र, उनका अभ्यास, मन्त्र, देवता और सिद्धिकरणादि वर्णित हैं। चौथे पाद में देवार्चना, अभ्यासादि और सिद्ध अस्त्र-शस्त्रादि के प्रयोगों का निरूपण है।

धनुष
ऋग्वेद में इसका उल्लेख अनेक बार हुआ है। वैदिक कालीन भारतीयों का यह प्रमुख आयुध रहा है। दाह क्रिया में अन्तिम कार्य मृतक के दायें हाथ से धनुष को हटाया जाना होता था।

धनुषतीर्थ
श्रीनगर (गढ़वाल) में जिस स्थान पर अलकनन्दा धनुषाकार हो गयी है वह धनुषतीर्थ कहा जाता है। यहाँ स्नान करना पुण्यकारक है।


logo