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Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

अनन्‍तज्ञान
गौतमलिखित 'पितृमेधसूत्र' पर अनन्तज्ञान ने टीका लिखी है। कुछ विद्वानों के अनुसार ये गौतम न्यायसूत्र के रचने वाले महर्षि गौतम ही हैं।

अनन्‍त तृतीया
भाद्रपद, वैशाख अथवा मार्गशीर्ष शुक्ल को तृतीया से प्रारम्भ कर एक वर्ष पर्यन्त इसका व्रत किया जाता है। प्रत्येक मास में विभिन्न पुष्पों से गौरी-पूजन होता है। दे. हेमाद्रि का व्रतखण्ड, 422-426 ; पद्मपुराण; कृत्यरत्नाकर, 265-270।

अनन्त द्वादशी
इसके व्रत में भाद्र शुक्ल द्वादशी से प्रारम्भ कर एक वर्षपर्यन्त हरिपूजा की जाती है। दे. विष्णुधर्मोत्तर पुराण, 3-14-1-5; हेमाद्रि, व्रतखण्ड 1, 1200-1201 (विष्णुरहस्य)।

अनन्तदेव
जीवनकाल 17वीं शताब्दी। इनके पिता 'आपदेव' थे जिन्होंने 'मीमांसान्यायप्रकाश' (दूसरा नाम आपोदेवी) की रचना की थी। अनन्तदेव रचित 'स्मृति कौस्तुभ' प्रकरण ग्रन्थ है, जो मीमांसा के सिद्धान्तों का प्रयोग बतलाता है। देश के विभिन्न भागों में इस ग्रन्थ का प्रचार है।

अनन्तदेव (भाष्यकार)
वाजसनेयी संहिता' के भाष्यकारों में अनन्तदेव भी एक हैं।

अनन्तनाग
कश्मीर का एक तीर्थ, जो पहलगाँव से सात मील पर स्थित है। यहाँ डाकबँगला है किन्तु मेले के दिनों में भीड़ अधिक होती है। उस समय तम्बू लगाकर ठहरना पड़ता है। तम्बू पहलगाँव से किराये पर ले जाना होता है। आगे चन्दनवाड़ी से शेषनाग की तीन मील कड़ी चढ़ाई है। शेषनाग झील का सौन्दर्य अद्भुत है।

अनन्तफला सप्तमी
इस व्रत में भाद्र शुक्ल सप्तमी से प्रारम्भ कर एक वर्षपर्यन्त सूर्य का पूजन किया जाता है। दे. हेमाद्रि, व्रतखण्ड 1, 751; भविष्यपुराणः कृत्यकल्पतरु; व्रतकाण्ड 148-149।

अनन्त मिश्र
उडि़या भाषा में महाभारत का भाषांतर करने वाले लोकप्रिय विद्वान। आज से एक हजार वर्ष पहले लोगों को यह आवश्‍यकता प्रतीत हो चुकी थी कि सद्धर्म एवं सदाचार तथा ज्ञान-विज्ञान की जो विधि संस्‍कृत में निहित है उसे उस काल की प्रकृति प्राकृत भाषाओं में जनता के लिए सुलभ बनाया जाय। यह काम भारत में सर्वत्र होने लगा। इस आन्‍दोलन के फलस्‍वरूप तमिल, तेलगु, कन्‍नड़, मलयालम, बँगला, मराठी आदि भाषाओं में संस्‍कृतग्रंथों का अनुवाद हुआ। उडि़या प्राकृत में महाभारत का रूपान्‍तर कई लेखकों ने किया। इनमें अनन्‍त मिश्र एक प्रसिद्ध भाषान्‍तरकार थे।

अनन्त व्रत
अनन्त देवता का व्रत। भाद्रपद की शुक्ल चतुर्दशी को अनन्तदेव का व्रत करना चाहिए। माहात्म्य निम्नाङ्कित है :
अनन्तव्रतमेतद्धि सर्वपापहरं शुभम्। सर्वकामप्रदं नृणां स्त्रीणाञ्चैव युधिष्ठिर।। तथा शुक्लचतुर्दश्यां मासि भाद्रपदे भवेत्। तस्यानुष्ठानमात्रेण सर्वपापं प्रणश्यति।।
[यह अनन्त व्रत सब पापों का विनाश करने वाला तथा शुभ है। हे युधिष्ठिर ! यह पुरुषों तथा स्त्रियों को सब कामों की सिद्धि देता है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को व्रत करने मात्र से सब पाप नष्ट हो जाते हैं।]
एक अन्य मतानुसार यह मार्गशीर्ष मास में तब प्रारम्भ किया जाता है, जिस दिन मृगशिरा नक्षत्र हो। एक वर्षपर्यन्त इसका अनुष्ठान होता है। प्रत्येक सास में भिन्न भिन्न नक्षत्रानुसार पूजन होता है। यथा, पौष में पुष्य नक्षत्र में तथा माघ में मघा नक्षत्र में। इसी तरह अन्य मासों में भी समझना चाहिए। यह व्रत पुत्रदायक है। दे. हेमाद्रि, व्रतखण्ड, 2, पृष्ठ 667-671; विष्णुधर्मोत्तर पुराण 173, 1-30।

अनन्ताचार्य
ये यादवगिरि के समीप मेलकोट में रहते थे तथा 'श्रुतप्रकाशिका' के रचयिता सुदर्शनसूरि के पश्चात् लगभग सोलहवीं शताब्दी में हुए थे। इन्होंने अपने ग्रन्थ 'ब्रह्मलक्षण निरूपण' में 'श्रुतप्रकाशिका' का उल्लेख किया है। इन्होंने रामानुज मत का समर्थन करने के लिए बहुत से ग्रन्थों की रचना कर अक्षय कीर्ति का अर्जन किया। इनके ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं- ज्ञानयथार्थवाद, प्रतिज्ञावादार्थ, ब्रह्मपदशक्तिवाद, ब्रह्मलक्षणनिरूपण, विषयतावाद, मोक्षकारणतावाद, शरीरवाद, शास्त्रारम्भ समर्थन, शास्त्रैक्यवाद, संविदेकत्वानुमाननिरासवादार्थ, समासवाद, समानाधिकरणवाद और सिद्धान्तसिद्धाञ्जन। इन सब ग्रन्थों से आचार्य की दार्शनिकता एवं पाण्डित्य का पूरा परिचय मिलता है।


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