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Hindu Dharmakosh (Hindi-Hindi)

अनन्दानवमी व्रत
इस व्रत में फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रारम्भ कर एक वर्षपर्यन्त देवी-पूजा की जाती है। दे. कृत्यकल्पतरू; व्रतकाण्ड, 299-301; हेमाद्रि, व्रतखण्ड, 1, 948-950।

अनन्य
(1) परमात्मा अथवा विश्वजनीन चेतना से व्यक्तिगत आत्मा के अभेद के सिद्धान्त को अनन्यता कहते हैं।
(2) यह भक्ति का भी एक प्रकार है, जिसके अनुसार भक्त एक भगवान् के अतिरिक्त अन्य किसी पर अवलम्बित नहीं होता है।

अनन्यानुभव
एक सिद्ध संन्यासी महात्मा। इनका जीवनकाल दसवीं शताब्दी के पश्चात् तथा तेरहवीं शताब्दी के पहले माना जा सकता है। इनको ब्रह्म साक्षात्कार हुआ था- ऐसा इनके शिष्य प्रकाशात्मयति के अद्वैतवादी ग्रन्थ 'पञ्चपादिका-विवरण' से ज्ञात होता है। प्रकाशात्मयति ने लिखा है कि गुरु से ब्रह्मविद्या प्राप्त करके ग्रन्थ-रचना की है।

अनर्क व्रत
मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा को यह ऋतुव्रत किया जाता है। इसका अनुष्ठान दो ऋतुओं (हेमन्त तथा शिशिर) में होता है। इसमें केशवपूजा की जाती है। 'ओं नमः केशवाय' मन्त्र का 108 बार जप किया जाता है। दे. हेमाद्रि, व्रतखण्ड, 2, 839 -42; विष्णुरहस्य।

अनशन
(1) भोजन का अभाव, इसे उपवास भी कहते हैं। यह एक धार्मिक क्रिया है जो शरीर और मन की शुद्धि के लिए की जाती है। व्रत अथवा अनुष्ठान में अनशन किया जाता है। बहुत-से लोग मरने के कुछ दिन पूर्व से अनशन करते हैं। मरणान्त अनशन को 'प्रायोपवेशन' भी कहते हैं। यह जैन सम्प्रदाय में अधिक प्रचलित है।
(2) पुरुषसूक्त के चौथे मन्त्र में (ततो विश्वङ व्यक्रामत्, अर्थात् यह नाना प्रकार का जगत् उसी पुरुष के सामर्थ्य से उत्पन्न हुआ है) इस शब्द का उल्लेख है एवं इस जगत् के दो विभाग किये गये हैं : 'साशन' (चेतन) जो भोजनादि के लिए चेष्टा करता है और जीव से युक्त है और दूसरा 'अनशन' (जड़) जो अपने भोजन के लिए चेष्टा नहीं करता और स्वयं दूसरे का अशन (भोजन) है।
(3) आजकल राजनीतिक अथवा सामाजिक साधन के रूप में भी इसका उपयोग होता है। अपनी बात अथवा आग्रह मनवाने के जब अन्य साधन असफल हो जाते हैं तब इसका प्रयोग किया जाता है।

अनसूया
(1) एक धार्मिक गुण, असूया का अभाव। इसका लक्षण बृहस्पति ने दिया है :
न गुणान् गुणिनो हन्ति स्तौति मन्दगुणानपि। नान्यदोषेषु रमते सानसूया प्रकीर्तिता।। (एकादशी तत्त्व)
[गुणियों के गुणों का विरोध न करना, अल्प गुण वालों की भी प्रशंसा करना, दूसरों के दोषों को न देखना अनसूया है।]
(2) अत्रि मुनि की पत्नी का नाम भी अनसूया है। भागवत के अनुसार ये कर्दम मुनि की कन्या थीं। वाल्मीकि-रामायण में सीता और अनसूया का अत्रि-आश्रम में संवाद पाया जाता है।

अन्नकूटोत्सव
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा या द्वितीया को यह उत्सव मनाया जाता है। यह गोवर्धन पूजन का ही एक अङ्ग है। इस दिन मिष्ठान्न अथवा विविध पकवानों का कूट (पर्वत) प्रस्तुत कर उसका भगवान् को समर्पण किया जाता है।

अनादि
आदिरहित (अन् + आदि)। प्रकृति और पुरुष दोनों को अनादि कहा गया है :
प्रकृतिं पुरुषञ्चैव विद्धयनादी उभावपि। (गीता)

अनामा (अनामिका)
ब्रह्मा का सिर छेदन कर देने पर भी जिसका नाम निन्दित नहीं है उसे अनामा कहते हैं। पुराणों के अनुसार इस अंगुलि से शिव ने ब्रह्मा का शिरश्छेद किया था। यह पवित्र मानी जाती है, धार्मिक कृत्य करते समय इसी अंगुलि में पवित्री धारण की जाती है।

अनाहत
(1) जिस वस्त्र का खण्ड, धुलना और भोग नहीं हुआ है, कोरा। धार्मिक कृत्यों में ऐसे ही वस्त्र को धारण करने का विधान है।
(2) तन्त्रोक्त छः चक्रों के अन्तर्गत चतुर्थ चक्र, जो हृदय में स्थित, क से लेकर ठ तक के वर्णों से युक्त, उदित होते हुए सूर्य के समान प्रकाशमान, बारह पँखुड़ियों वाले कमल के आकार वाला, मध्य में हजारों सूर्यों के तुल्य प्रकाशमान और ब्रह्मध्वनि से शब्दायमान है :
शब्दो ब्रह्मयः शब्दोऽनाहतो यत्र दृश्यते। अनाहताख्यं तत्पद्मं मुनिभिः परिकीर्तितम्।।
[जहाँ पर शब्द ब्रह्ममय है और अनाहत दिखाई देता है, उस पद्म को मुनियों ने अनाहत कहा है।]
हठयोग में जब साधक कुण्डलिनी को जागृत कर उसे ऊर्ध्वमुखी कर लेता, है, उसके उद्गमन के समय जो विस्फोट होता है वह नाद कहलाता है। यह नाद अनाहत रूप से समस्त विश्व में व्याप्त है। यह पिण्ड में भी वर्तमान रहता है, किन्तु मूढ़ अज्ञानी पुरुष उसको सुन नहीं सकता। जब हठयोग की क्रिया से सुषुम्ना नाड़ी का मार्ग खुल जाता है तब यह नाद सुनाई पड़ने लगता है जो कई प्रकार से सुनाई देता है, जैसे समुद्रगर्जन, मेघ-गर्जन, शङ्गध्वनि, घण्टाध्वनि, किङ्किणी, वंशी, भ्रमरगुञ्जन आदि। उपाधि युक्त होने के कारण यह नाद सात स्वरों में विभक्त हो जाता है, जिनके द्वारा जगत् के विविध शब्द सुनाई पड़ते हैं। यह निरुपाधि होकर 'प्रणव' अथवा 'ओंकार' का रूप धारण करता है। इसी को शब्दब्रह्म भी कहते हैं। सन्तों ने इसको 'सोंहं' कहा है।


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