Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten
अधरम से धन होत है बरस पाँच के सात
अन्याय से कमाया गया धन बहुत दिनों नहीं रहता।
अधीरे को लेवे नई, उछीने की खावे नई
उतावले से कभी ऋण न ले, ओछे का कभी अन्न ग्रहण न करे, क्योंकि उतावला आदमी जल्दी पैसा वापिस माँगेगा, और ओछा खिलाने-पिलोने का अहसान जतायेगा।
अनगायें खेती, बनबायें बंज
किसी गाँव में खेती और किसी दूसरे में व्यापार, यह नीति ठीक नहीं।
बिना बँधा बछड़ा, स्वतंत्र व्यक्ति।
जो गाय बियानी नहीं उसके घी की आशा करना।
अनमाँगें मोती मिलें माँगे मिलै न भीख
बिना माँगे मोती मिलते हैं, माँगने से भीख नहीं मिलती, माँगना बुरा है।
अनो चूकें हजार बरस की आरबल
अवधि, संकट की घड़ी, आयुर्बल, उम्र, सिर पर आयी विपत्ति टल जाने पर मानों हजार वर्ष की आयु मिली।
अनोखी नान, बाँस की नहन्नी
नाइन, नाई की स्त्री, कोई नया अनोखा शौक करने पर।
अन्न से ही जीवन की रक्षा होती है, और अन्न ही प्राण-घातक भी होता है।
अपनी-अपनी ढफली, अपनो-अपनो राज
मन माना काम, नियम व्यवस्था का अभाव।