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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

धजी कौ साँप बनाबो
धजी का साँप बनाना, थोड़ी बात का बहुत विस्तार करना, झूठ बात बान कर खड़ी करना।

धड़ी धड़ी करबो
किसी की मरम्मत करना,पीटना, बदनामी करना, घड़ी घड़ी करकें लूटौ-अच्छी तरह लूटा।

धन के अँगारूँ मक्कर नाच
धन के आगे मककर नाच,पैस के लिए आदमी सौ तरह की चालबाजियाँ करता है।

धन के धिंगानें हैं
सब पैसे का खेल है, या सब पैसे का झगड़ा है।

धन्नौं दै कें बैठबो
कोई काम कराने के लिए किसी के पास अड़ कर बैठना, और जब तक कम न हो तब तक अन्न-जल ग्रहण न करना।

धन्नासेठ के नाती बनें फिरत
थोड़ी पूँजी वाला जब अपने को बड़ा धनाढय समझे तब।

धरती कोऊ की रई न रैये
धरती न तो किसी की रही, न रहेगी।

धरती ठौर नई देत
अत्यन्त दीन और दुखी व्यक्ति के लिए।

धरती सबकी भार सँभारें
धरती सबका भार सँभाले हुए है।

धरम के दूने
धोखा-धड़ी का व्यापार करने वाले के लिए व्यंग्य में, दूने तो किसी धंधे में नहीं होते।


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