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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

घर आय नाग न पूजें, बाँमी पूजन जायें
अवसर से लाभ न उठाना।

घरई की कुरइया से आँख फूटत
छप्पर के छावन में लगने वाली लकड़ी, यह प्रायः ओलती से बाहर निकली रहती है और ओलती यदि नीची हो तो उसके आँख में लगने का डर रहता है, घर के आदमी से ही अधिक हानि पहुंचती है।

घर की खाँड़ किरकिरी लागै, बाहर कौ गुर मीठो
घर की वस्तु की कद्र नहीं होती, घर की मुर्गी दाल बराबर।

घर के वीरन खों गुर कौ मलीदा
घर के आदिवासियों की अपेक्षा बाहर वालों का अधिक आदर-सत्कार करना।

घर कों उसारों, लरकै सारो
घर में आँगन चाहिए और लड़के के साला।

घर घर मटया चूले हैं
सब घरों का एक सा हाल है, अथवा सब घरों में कुछ न कुछ भेद की बात रहती है।

घर बरो सो बरो, चोंखरन की ऐंड़ तै खुल गई
घर जला तो जला, चोंखरों की अकड़ तो खुल गयी, घर के जलने से वे भी जल गये अथवा भाग गये, जब कोई थोड़े से लाभ के लिए अपनी बड़ी हानि कर बैठे तब उस पर व्यंग्य।

घरबारों मेंड़ में, मेंड़-कटा खेत में
खेत का मालिक तो मेंड़ पर खड़े होकर खेत की रक्षा कर रहा है, परन्तु मेंड़ पर की घास को चोरी से काट कर ले जाने वाला खेत में घुसा है और अधिक स्वच्छंदतापूर्वक चोरी कर रहा है।

घाट घाट कौ पानी पिये हैं
बड़े अनुभवी है, दुनिया देखे हुए हैं।

घायल की गत घायल जानें
दुखी का दुख दुखी आदमी ही समझ सकता है।


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