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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

मायें गिरौ तौ कुआ, मायें गिरौ तौ खाई
दोनों ओर विपत्ति।

मंगलवारी परै दिवारी, मूँड़ पर रोवे व्यापारी
लोक-विश्वास है कि मंगलवार को दिवाली पड़े तो वह व्यापारियों के लिए शुभ नहीं होती।

मँड़पुआ की नाक पोंछने परत
जिस आदमी से कोई काम लेना होता है उसकी सब तरह से खुशामत करनी पड़ती है।

मँड़वा बाँदबे सब आऊत, छोरबे कोऊ नई आऊ
मंडप बांधने सब आते हैं, छोरने कोई नहीं आता। बने काम में सब साथ देते हैं।

मउअन के टपकें धरती नई फटत
किसी अत्यंत तुच्छ आदमी से बड़े काम की आशा व्यर्थ है।

मउआ मेवा बेर कलेवा गुलगुच बड़ी मिठाई, इतनी चीजें चाहो तो गड़ाने करौ सगाई
महुए का मेवा, बेर का कलेवा और गुलगुच की मिठाई खाना चाहते हो तो गोंडवाने में विवाह करो।

मकर चकर की धानी, आदो तेल आदो पानी
धूर्त और कपटी व्यवसायी के लिए प्रयुक्त।

मगरै बुड़कैया सिखाउत
मगर को डुबकी मारना सिखाते हैं। चालाक को चालाकी क्या सिखाना?।

मघा न बरसे भरे न खेत। माता न परसे भरे न पेट
मघा में पानी बरसे बिना खेत नहीं भरते, और माता के परसे बिना पेट नहीं भरता।

मछरी के जाये, किन तैराये
मछली के बच्चों को तैरना कौन सिखाता है? जिसका जो स्वभाव है वह अपने आप आ जाता है।


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