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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

जंगी घोड़ा कों भंगी असवार
जैसे को वैसा मिलने से ही काम चलता है।

जग दरसन कौ मेला
संसार में सबसे मिलजुल कर रहने का ही आनंद है।

जनम के आँदरे, नाव नैनसुख
गुण के विपरीत नाम।

जनम के कोढ़ी
सदा के रोगी, प्रायः गंदी आदतों वाले आदमी के लिए प्रयुक्त।

जनम कौ कोड़ एक ऐंतवार में नई जात
कोई बुरी आदत एक दिन में नहीं छूटती, चर्मरोग से मुक्ति पाने के लिए सूर्य भगवान की उपासना करते हैं और इतवार का व्रत रखते हैं, उसी से अभिप्राय है।

जब नटनी बाँसे चढ़ी तब काहे की लाज
जब कोई काम करने ही लगे तो फिर उसमें संकोच क्या।

जब लाद लाई तौ लाज काय की
जब बेशरमी ही लाद ली तो फिर शरम किस बात की, जब ओढ़ लीनी लोई तो क्या करेगा कोई।

जरे पै फोरा पारबो
दुःखी को और अधिक दुःख पहुंचाना।

जाँ की माटी उतई ठिकाने लगत
जहाँ मरना बदा होता है अंत समय आदमी वहीं खिंच कर पहुंचता है।

जाँ पंच ताँ परमेसुर
पंचों में परमेश्वर होते हैं।


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