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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

तकदीर सूदी तौ सब कछू
भाग्य प्रबल है तो सब कुछ।

ततैया से नचत फिरत
बर्र, बहुत व्याकुल।

तनक सी कहानियाँ, सबरी रात
किस्सा तो थोड़ा, उसमें सारी रात बिता दी।

तन पै नइयाँ लत्ता, पान खायें अलबत्ता
घर में खाने को न होने पर भी शौक करना।

तपा तप रये
भीषण गर्मी पड़ रही है, जून के महीने में जेठ दशहरा से जेठ सुदी 15 पूर्णिमा के दिन तक कहलाते हैं।

तबा की तोरी, मटेलनी की मोरी
रोटी रखने का मिट्टी का बना बासन, तवे पर जो रोटी सिक रही है वह तुम्हारी और जो बन चुकी है वह मेरी, स्वार्थी के लिए।

तबा कैसी बूँद
शीघ्र नष्ट हो जाने वाली वस्तु।

तर के दाँत तरै और ऊपर के ऊपर रै गये
तले के दाँत तले और ऊपर के ऊपर रह गये, अर्थात् कुछ बोलते नहीं बना, चुप हो गये।

तला खूदौ नइयाँ, मगर सुसानई लगे
तालाब तो खुदा नहीं, और मगर पैर पसार कर सोने के लिए आ गये, अर्थात् कोई वस्तु बन कर तो तैयार नहीं हुई और चाहने वालों की भीड़ लग गयी।

ताताथेई मचा दैबो
ताताथेई मचा देना, उतावली पाड़ देना, आफत कर देना।


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