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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

लंका कों सोनों बताबो
लंका कोक सोना बताना, जहाँ जो वस्तु पहिले से प्रचुर मात्रा में मौजूद है वहाँ उसे ले जाने की हास्यजनक चेष्टा करना।

लँगड़े लूले गये बराते। आगौनी में खाई लातें
कहीं जाने पर अच्छी खातिर न होना।

लँगोटी में फाग खेलबो
थोड़ा खर्च करके अपना काम बना लेना, फाग केवल लँगोटी में नहीं खेली जाती, उसमें तो अच्छे कपड़े पहिने जाते हैं।

लंका कँसी बोंड़ी खटकबो
एक घास का काँटा जो बहुत बारीक होता है और चुभ जाने पर कसकता है, हृदय में किसी बात का चुभ जाना और बराबर खटकना।

लंपा कैसे ऐंठत
लंपा की तरह ऐंठते हैं, बहुत अकड़ते हैं, घमंड करते हैं सीधे बात नहीं करते, लंपीले घास पर पानी डालने से वह एँठता है।

लकरी बेंचत लाखन देखे घास खोदतन धनधनरा, अमर हते ते मरतन देखे, तुमई भले मोरे ठनठनरा
किसी स्त्री का अपने मूर्ख पति के प्रति कथन। यह पाली नाम-सिद्धि जातक है। बुन्देली में इसकी कथा इस प्रकार है - एक स्त्री के पति का नाम था ठनठनरा। उसको यह नाम पसंद नहीं था। वह पति के लिए कोई अच्छा नाम ढूढंने के लिए निकली। व्यक्ति लकड़ियों का बोझ लिए जा रहा था। उसका नाम था लाखन। दूसरा घास खोद रहा था। उसका नाम था धन-धनरा। एक व्यक्ति मर गया था और उसकी अरथी जा रही थी, उसका नाम था अमर। स्त्री ने यह सब देख सुन कर मन में सोचा कि नाम से कुछ आता जाता नहीं मेरे पति का जो नाम है वही अच्छा और उसने ऊपर की गाथा कही।

लकीर के फकीर
पुरानी ही चाल पर चलने वाले।

लग गाओ तौ तीर नई तौ तुक्का
काम करने पर कुछ न कुछ तो होगा ही।

लगन में बिघन
शुभकार्य में विघ्न।

लगी बुरई होत
मन में कोई बात चुभ जाने पर चैन नहीं पड़ता।


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