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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

कऊँ की ईंट कऊ कौ रोरा, भानमती ने कुनबा जोरा
ये दक्षिण देश की एक जादूगरनी थीं, कुछ लोग इन्हें राजा भोज की पत्नी भी बतलाते हैं। इधर-उधर की वस्तु इकट्ठी करके कोई चीज तैयार करना।

कड़ी मुराई ना मुरै, बरिन खाँ हाथ पसारें
कढ़ी, दही और बेसन से बना भोज्य पदार्थ, कढ़ी तो दाँतों से चबाते नहीं बनती, पकौड़ियों को हाथ फैलाते हैं, छोटा काम तो बनता नहीं, बड़ा काम सिर पर लेना चाहते हैं।

कड़ेरे कें लरका कुँदेरे कें बधाई
बेमेल काम।

कतन्नी गुद्द सोवें, मरजादी बैठे रोवें
मर्यादा वाले, प्रतिष्ठावान जिनके पास ओढ़ने को फटे-पुराने चिथड़े हैं वे उनमें ही सुख की नींद सोते हैं, परन्तु बड़े आदमी बैठे होते हैं, इसलिए कि उनके पास कीमती कपड़े नहीं, तात्पर्य यह कि गरीबों का काम थोड़े में चल जाता है, अथवा संतोष बड़ी चीज है।

कथनी से करनी बड़ी
कहने की अपेक्षा काम करना अच्छा।

कनवाँ से कनवाँ नई कई जात
काने से काना नहीं कहा जाता।

कपड़ा पैरै जग भाता, खाना खैये मन भाता
वस्त्र दूसरे की रूचि का पहने और भोजन अपनी रूचि का करें।

कपड़ा पैरे तीन बार, बुद्ध, बृहस्पति, शुक्रवार
नया वस्त्र पहिनने के संबंध में व्यवस्था।

कपूत से तौ निपूतेई भेले
कपूत से तो निपूते ही अच्छे।

कफन को बैठे
कफन के लिए बैठे हैं, बिलकुल गरीब हैं, कफन के लिए भी पैसा नहीं।


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