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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

कै हंसा मोती चुगे, कै लंघन मर जाय
बड़े आदमी अपनी आन-बान को नहीं छोड़ेतें।

कौऊकौ घर जरै कोऊ तापै
किसी की तो हानि हो और कोई दूसरा लाभ उठाये।

कोऊ मताई के पेट से सीक कें नई आऊत
कोई माँ के पेट से सीख कर नहीं आता, अर्थात् करने से ही सब काम आता है।

कोऊ मरै काऊ कौ घर भरे
किसी की हानि से किसी को लाभ होना।

कोठन कोठन जी दुकाउत
कोठे-कोठे जी छिपाते हैं, काम से जी चुराते हैं, जिम्मेवारी से भागते हैं।

कोढ़ और कोढ़ में खाज
विपत्ति में और विपत्ति।

कोरी की बिटिया केसर कौ तिलक
हैसियत के विरुद्ध काम।

कोरी कौ सुआ का पढ़ै- तगा पौनी
कोरी का तोता क्या पढ़ता है, सूत और पौनी, जो जिसका धंधा होता है उसके घर में उसी की चर्चा रहती है।

कोस कोस पै पानी बदले, बारा कोस पै बानी
कोस-कोस पर पानी और बारह कोस पर भाषा बदल जाती है।

कौंड़ी कौंड़ी माया जुरे
थोड़े-थोड़ा करके बहुत इकट्ठा हो जाता है।


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