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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

ऐसे होते कंत तौ काय कों जाते अंत
यदि किसी योग्य होते तो घर छोड़ क्यों जाते।

ओंधे मों डरे
परास्त हुए पड़े हैं।

ओई पतरी में खायें, ओई में छेद करें
जिसका खायें उसी में हानि पहुँचायें।

ओछी पूँजी खसमें खाय
थोड़ी पूँजी धनी को खा जाती है।

ओली में गुर फोरबो
लुके-छिपे काम करने का प्रयत्न।

ओस के चाटें प्यास नई बुझत
जहाँ अधिक की आवश्यकता है वहाँ थोड़े से काम नहीं चलता।

आँगन बिना गाड़ी नई ढँड़कत
गाड़ी की घुरी में लगाई जाने वाली चिकनाई जिससे पहिया आसानी से फिरे, ओंगन के बिना गाड़ी नहीं चलती, अर्थात् पैसा दिये लिये बिना काम नहीं चलता।

औसर तब खाँ सेतिये, गुनें न पूँछे कोय
अवगुण से तभी काम लो जब कोई गुण को न पूछे।

औसर के गीत औसर पै गाये जात
अवसर के अनुकूल ही काम अच्छा लगता है।

कंडी कंडी जोरें बिटा जुरत
थोड़ा-थोड़ा इकट्ठा करके बहुत होता है।


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