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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

काबूल में का गधा नई होत
काबुल में क्या गधे नहीं होते, जानकारों में भी मूर्खों की कमी नहीं होती।

काम परे कुछ और है काम सरे कुछ और तुलसी भाँवर के परे नदी सिरावत मौर
काम निकल जाने पर आदमी का रूख बदल जाता है।

काम प्यारो होत, चाम प्यारो नई होत
काम प्यारा होता है, आदमी की सूरत शक्ल नहीं, प्रायः ऐसे व्यक्ति के लिए कहते हैं जो मनोनुकूल काम नहीं करता।

कारे कोसन
काले कोसों, अर्थात् बहुत दूर-पल में परलै होत है, फिर करेगा कब-जिस काम को करना है उसे तुरंत करना ही चाहिए।

काल कौ भरोसा आज नइयाँ
कल क्या होगा इसका आज भी ठीक निश्चिय नहीं किया जा सकता, फिर पहिले से उसका निश्चिय तो और भी कठिन है।

काल की कीनें जानी
कल क्या होने वाला है इसे कौन जान सकता है।

कीनें अपनी मताई कौ दूद पिऔ
किसने अपनी माँ का दूध पिया है, कौन इतना बहादुर है।

कीनें तुमें पीरे चाँवर दये ते
तुम्हें पीले चावल किसने दिये थे, अर्थात् तुम्हें यहाँ कौन बुलाने गया था, ब्याह आदि में पीले चावल हल्दी की गाँठ देकर सगे- संबधियों को न्योतने की प्रथा बुन्देलखंड में प्रचलित है, उसी से कहावत बनी, जब कोई अनाधिकृत रूप से दूसरे के काम में हस्तक्षेप करने पहुंच जाय और मना करने पर भी न माने तब कहते हैं।

कुँआन में बाँस डारबो
कुँओं में बाँस डालना, किसी वस्तु की गहरी छानबीन करना।

कुआ का माटी कुअई खों नई होत
कुआँ खोदने पर जो मिट्टी निकलती है वह कुएँ में ही लग जाती है,जहाँ का पैसा वहीं खर्च हो जाता है।


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