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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

उजरे गाँव में अरंडई रूख
जहाँ कोई वृक्ष नहीं होता वहाँ अरंड को ही लोग बड़ा वृक्ष मानते हैं।

उठते पाँव दुनिया तकत
पदच्युत होते हुए व्यक्ति पर सबकी दृष्टि रहती है, सब उसकी संकटापन्न स्थिति से लाभ उठाना चाहते हैं।

उठाई जीब तरूआ से दै मारी
जो मन में आया सो कह दिया।

उठौवल चूल्हो
ऐसे व्यक्ति के लिए प्रयुक्त जिसके रहने का कोई पक्का ठिकाना न हो।

उड़त चिरइयाँ परखत
उड़ती चिड़िया परखता है अर्थात् बहुत होशियार है।

उड़ौ चून पुरखन के नाव
चक्की पीसते समय जो चून उड़ गया या नष्ट हो गया वह पितरों को समर्पित, किसी को ऐसी वस्तु देकर अहसान करना जो अपने काम न आये।

उधार कौ खाबौ और फूस कौ तापबौ
उधार का खाना और फूस का तापना बराबर होता है। जैसे फूस की आग अधिक देर नहीं ठहरती वैसे ही उधार लेकर खाना भी बहुत दिनों नहीं चल सकता।

उरबतिया कौ पानी मँगरी नई चड़त
छप्पर के ढाल का आगे का हिस्सा जिससे वर्षा का जल नीचे टपकता है, ओलती, छप्पर के ऊपर का हिस्सा ओलती का पानी मेंगरी पर नहीं चढ़ता, वह तो नीचे धरती पर ही आता है, असंभव बात संभव नहीं होती।

उलटो चोर गुसैये डाँटे
अपराध करके स्वयं उसी मनुष्य को झिड़कना जिसका नुकसान हुआ हो।

ऊँची दुकान फीको पकवान
दिखावट तो बहुत पर तत्व कुछ नहीं।


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