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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

आलसी निगइया, असगुन की बात हेरें
आलसी चलने वाला अशकुन की प्रतीक्षा करता है कि मुझे चलना न पड़े काम न करने के लिए बहाना ढूँढ़ने पर।

इक लख पूत सवा लख नाती, ता रावन घर दिया न बाती
धन, यौवन और बड़े कुटुम्ब का गर्व नहीं करना चाहिए, ईश्वर का कोप होने पर सब पल भर में विलीन हो जाता है जैसे रावण का हुआ।

इकल सुंगरा
अकेला रहने वाला सुअर, स्वार्थी व्यक्ति।

इतके बराती, न उनके न्योतार
कहीं के भी नहीं।

इमली के पत्ता पै कुलाँट खाओ
अर्थात् मौज करो, चैन की बंसी बजाओ, अवसर चूके व्यक्ति के लिए प्रायः व्यंग्य में प्रयुक्त।

ईट खिसकी सो खिसकी
दीवार की एक ईंट खिसक जाए तो फिर संभालना मुश्किल होता है। उसी प्रकार एक बार बिगड़ा काम फिर नहीं सँभलता।

उँगरकटा नाव धर दओ
उँगली काट खाने वाला नाम रख दिया, व्यर्थ बदनाम कर दिया।

उँगरिया पकर कें कौंचा पकरबौ
उँगली पकड़ कर पहुँचा पकड़ना, थोड़ा सहारा पाकर गले पड़ जाना।

उखरी में मूँड़ दओ, तौ मूसरन कौ का डर
जब कोई भला या बुरा काम करने पर उतारू ही हुए तो फिर डर किस बात का।

उजरूऊ के संगे कपला कौ नास।
उजाड़ करने वाली, चोरी से दूसरों का खेत चरने वाली गाय, कपिला-सीधी गाय, बुरे के साथ सीधे आदमी को भी कष्ट भोगना पड़ता है।


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