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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

आँखन देखो चेतना, मों देखो ब्योहार
दुनिया में आँख के सामने आये का स्नेह, और मुँह देखा व्यवहार होता है, अर्थात् सच्चा प्रेम कम देखने में आता है।

आँख मींचे भुनसारो होत
आँख मूँदे सबेरा होता है, समय जाते देर नहीं लगती।

आँखें न साँखें, कजरौटा नौ ठउआ
व्यर्थ का आडंबर दिखाना।

आँदरी घुरिया, फँफूड़े चना, चले आउन दो घना के घना
घोड़ी अंधी है, और चने भी फफूंड़े हैं, फिर क्या है उसे चाहे जितना खिलाते चले जाओ, जैसे को तैसा मिलना मूर्ख को गुण की पहिचान नहीं होती।

आई बऊ, आओ काम, गई बऊ, गओ काम
जितने आदमी हो उतना ही काम बढ़ता है।

आग लगा पानी खों दौरें
झगड़ा कराकर फिर मेल का उद्योग करना।

आग लगै, मँड़वा धुँधआय, दूला-दुलैया सरगे जाय
दूसरे के नफे-नुकसान की परवाह न करना, लड़ाई-झगड़े से तटस्थ रहना।

आज इतै, तौ काल उतै, परों पराये देस
ससुराल जाती हुई लड़की के लिए प्रयुक्त।

आजे न बाजे, दूला आन बिराजे
बिना साज-बाज का काम।

आटे में नोन समा जात, पै नोन में आटो नई समात
आटे में नमक समा जाता है, पर नमक में आटा नहीं, अर्थात् झूठ अधिक नहीं बोलना चाहिए।


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