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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

अपनों हाथ, जगन्नाथ को भात
अपने हाथ से बना भोजन मानों जगन्नाथ का भात, अपने हाथ का कार्य सर्वोत्तम होता है।

अफरो भूँके की कदर का जाने
जिसका पेट भरा है वह भूखे की वेदना को क्या समझे।

अबै तो बिटिया बापई की
अभी तो बेटी की है, अर्थात् अभी कुछ नहीं बिगड़ा, बात अब भी संभाली जा सकती है, हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार जब तक वर के साथ कन्या की पूरी सात भाँवर नहीं पड़ जातीं तब तक उसे पत्नीत्व प्राप्त नही होता और उस पर अपने पिता का ही अधिकार माना जाता है, उसी से कहावत बनी।

अभागी की पतरी में छेद
भाग्यहीन को सब जगह विपत्ति भोगनी पड़ती है।

अमरौती खाकें को आओ
अमर होकर कोई नहीं आया।

अरे दरे खों गुपला नउआ
इधर-उधर के फालतू काम के लिए गुपला नाई, हर काम के लिए जब किसी एक ही व्यक्ति से कहा जाय तब कहते हैं।

अल्ला देवे खाने को, तौ कौन जाय कमाने को
मुफ्त का खाने को मिले तो कमाने कौन जाय।

असाड़ को पजो लड़इया, भादों कहै मौत बरसा भई
असाढ़ में से गीदड़ का जन्म हुआ, भादों में कहता है बहुत वर्षा हुई, ऐसे अनुभवहीन व्यक्ति के लिए प्रयुक्त जिसने दुनिया का कुछ देखा-सुना न हो, फिर भी जो बड़ी शेखी मारे।

अस्सी की आमद चौरासी कौ खर्च
आमदनी कम और खर्च ज्यादा।

आँखन के आँदरे, नाव नैनसुख
नाम तो अच्छा पर गुण उसके विपरीत।


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