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Pramanik Vrihad Bundeli Shabd Kosh : Bundeli Kahavaten

अपने दये कौ का लियत
दी हुई वस्तु क्या माँगना, जो वस्तु अपनी ही है उसका क्या लेना।

अपने दाम खोटे तो परखैये का दोस
जब घर का ही आदमी बात न सुने अथवा खोटा काम करे तब दूसरों से क्या कहा जाय।

अपने बाप की सौ बहोर लई
अपने बाप से सौ बार क्षमा माँगी जा सकती है, पर दूसरों के साथ ऐसा नहीं किया जा सकता।

अपने मरे बिना सरग नई दिखात
अपने हाथ से किये काम नहीं होता।

अपनों अपनों दुख सब रोउत
अपना-अपना दुखड़ा सब रोते हैं।

अपनों पूत, पराओ ढटींगर
फालतू आदमी, आवारा, अपना पुत्र तो पुत्र, दूसरे का ढटीगर, अपने पुत्र को लोग जितना प्यार करते हैं उतना दूसरे के पुत्र को नहीं।

अपनों पेट तो कुत्ता भर लेत
अपना पेट तो कुत्ता भी भर लेता है, स्वार्थी व्यक्ति के लिए।

अपनों मों चीकनों करें फिरत
अपना मुँह चिकना किये फिरते हैं, केवल अपनी ही चिन्ता करना जानते हैं।

अपनों लैने का, पराओ देने का
अपना लेना क्या, पराया देना क्या, दोनों में कोई आसान नहीं।

अपनों सो अपनों, पराओ सो सपनो
समय पर अपना आदमी ही काम आता है, दूसरा नहीं।


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