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Awadhi Sahitya-Kosh

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आधुनिक काल में अवधी काव्य तथा उसके कवि
यह अवधी साहित्य का परिचयात्मक ग्रंथ है, जिनका संपादन-लेखन डॉ. दुर्गाशंकर मिश्र द्वारा सम्पन्न हुआ है। यह कृति सन् १९९५ में प्रकाशित हुई है। इसमें सैकड़ों आधुनिक अवधी कवियों का परिचय दिया गया है जिनका परिचय प्रायः अप्राप्त रहा है।

आधुनिक बैताल
आधुनिक रहीम के सदृश इनका अवधी काव्य भी बड़ा सरस और मनोरंजक है।

आधुनिक रहीम
ये अवधी में हास्य-विनोद और व्यंग्य के प्रमुख लेखक हैं। हिन्दी के पाठकों का इनके काव्य से बड़ा निकटस्थ परिचय है। इनका कोई काव्यग्रंथ अभी प्रकाशित नहीं हो पाया है फिर भी ये स्फुट काव्य लेखन में लब्धप्रतिष्ठ रचनाकार हैं।

आधुनिक सूरदास
भक्तिकालीन महाकवि सूरदास ने ब्रजभाषा में अपने अमर काव्य की रचना की है, किंतु इन्होंने अवधी में काव्य रचना कर अपनी भावनाओं को समाज के बीच सम्प्रेषित किया है।

आनंदी दीन
ये आधुनिक काल के प्रतिनिधि अवधी कवि हैं। विशेष विवरण अनुपलब्ध है।

आनन्द प्रकाश अवस्थी आनन्द’ उर्फ नन्हें भइया
बैसवारी अवधी के श्रेष्ठ रचनाकार आनन्द प्रकाश अवस्थी ’आनन्द’ रायबरेली जिले के ग्राम चिलौली (इन्हौना) में सन् १९३९ ई. में जनमें थे। अभी ये राजकीय दीक्षा विद्यालय शिवगढ़ ‘रायबरेली’ में प्रशिक्षक पद पर कार्य कर रहे हैं। इनकी अवधी की प्रमुख काव्य-कृतियाँ इस प्रकार हैं:- ‘हियरा हँसे हमार’, ‘पैकरमा’, ’नींद अउते नहीं’, ‘देवी-पंचाष्टक’, ‘देवी अहोखा’, ‘जस-चालीस’ तथा ‘मन्दिरनामा’ आदि। आनन्द जी की रचनायें सरस हैं। उनमें ग्राम्य जीवन की संस्कृति रची-बसी है। राष्ट्रीय भावना- इनकी कविता का मुखरित स्वर है। इनकी कविता में सहजता है, आडम्बर शून्यता है। यहाँ भारत भूमि के प्रति स्तवन-भाव व्यक्त किया गया है। आधुनिक अवधी के विकास में कवि आनन्द से बड़ी सम्भावनायें हैं।

आलम
जनश्रुतियों के आधार पर कहा जाता है कि आलम धनाढ्य ब्राह्मण थे और जौनपुर निवासी थे। बाद में शेख रंगरेजिन के कारण मुसलमान हो गये थे। आलम का काव्य काल सं. १६४० से सं. १६८० के मध्य का है। आलम की प्रामाणिक चार रचनाएँ है:- (१) माधवानल कामकंदला (२) सुदामा चरित (३) स्याम सनेही (४) आलमकेलि। ‘माधवानल कामकंदला’ नामक रचना का निर्माण परिष्कृत अवधी में प्रबन्ध रूप में किया गया है। यह प्रेमपरक काव्य है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य का इतिहास ( पृ. १९३) में आलम नाम के दो कवियों का उल्लेख किया है- एक अकबर कालीन ‘माधवानल-कामकंदला’ के प्रणेता और दूसरे ‘आलम केलि’ के प्रणेता। परन्तु कुछ विद्वानों एवं सुधी आलोचकों ने दोनों को एक ही माना है।

आल्हखण्ड
यह वीरगाथा काल के महाकवि जगनिक द्वारा प्रणीत अवधी का सर्वप्रथम काव्य-ग्रन्थ है। इसका प्रणयन सं. १२५० में हुआ। इसमें महोबे के वीर आल्हा-ऊदल की कथा है। इस ग्रन्थ को लिपिबद्ध करने का श्रेय सर चार्ल्स इलियट को प्राप्त है। उन्होंने इसे सन् १९६५ में फर्रुखाबाद जिले में लिपिबद्ध कराया था। यह श्रीरामचरितमानस के बाद अवध प्रदेश का सबसे लोकप्रिय ग्रन्थ है।

आल्हा
यह अवधी का महत्वपूर्ण छन्द है। भानु कवि कृत ‘छन्द प्रभाकर’ में इसके अन्य नाम हैं - वीर, अश्वावतारी, मात्रिक, सवैया। इनमें १६-१५ मात्राएँ होती हैं अंत में जगण होता है। ‘आल्हखण्ड’ की रचना इसी छंद में हुई है। दूसरे संदर्भ में आल्हा ‘आल्हखंड’ महाकाव्य के नायक एवं महोबा के वीर क्षत्रिय हैं। यह अवध और बुंदेलखण्ड की लोकप्रिय वीर गाथा भी है। पावस ऋतु में सामूहिक रूप से अथवा निजीस्तर पर इसका गायन प्रायः होता दिखता है। इसके मूलरूप के सम्बन्ध में अनेक विवाद हैं। जगनिक को आल्हखण्ड का रचयिता कहा गया है, पर उस अपभ्रंश-रचना का अवधी ‘आल्हा’ पर प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं परिलक्षित होता। वर्तमान आल्हा की अनेक लड़ाइयों के रचयिता प्रतापनारायण मिश्र को कहा जाता है। आल्हा के अनेक संस्करण हैं, जिनमें कहीं ५२ लड़ाइयाँ और कहीं ५६ लड़ाइयाँ वर्णित हैं। इसे आशुगायक प्रायः गढ़ते रहते हैं। इसमें अनुरणनात्मक ध्वनियों का बाहुल्य है। आल्हा के गायक अल्हैतों की पाठ प्रविधि स्वयं में विशिष्ट है।

इन्दरचंद तिवारी ‘बौड़म लखनवी’
तिवारी जी का जन्म बराबंकी जनपद के याकूत गंज नामक ग्राम में ३० मई सन् १९३३ को हुआ, किन्तु इनका लालन पालन लखनऊ में हुआ। लखनऊ विश्वविद्यालय से हिन्दी से एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। अनेक विभागों में सेवा करते हुए इन्होंने काव्य सृजन भी शुरू किया। प्रारम्भ में अवधी भाषा को माध्यम बनाया बाद में खड़ी बोली अपना ली। इनकी कृतियाँ हैं- हीरक कण (लघु कथा में), जय बांग्ला (उपन्यास), बाल-साहित्य में इनकी कृतियाँ हैं- जब वे मौत से मिलने चले (शहीदों की कहानियाँ), बौड़म बसंत (हास्य-व्यंग्य) आदि। अवधी में इन्होंने अनेक हास्य नाटक लिखे, जैसे- भूखा भेड़िया, मंगरे मामा, स्वांग हरि के जन जगमग दीप जले आदि। ये लखनऊ दूरदर्शन से प्रसारित भी हो चुके हैं। इनका हास्य-व्यंग्य-लेखकों में सम्मानित स्थान है।


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